अमरावती

लड़कियों की शादी की उम्र 21 करने का मामला

पर्सनल लॉ को खत्म करने की साजिश

अमरावती/ दि.18 – भारत देश विभिन्न प्रकार की जाति, धर्म और समुदायों में विभाजित मगर एक देश है. यहां हर व्यक्ति बालिग होने पर मर्जी से शादी करता है. विवाह की आदर्श परंपरा हमारे देश के संस्कृति का गहना है. कुपोषण की आड में केंद्र सरकार ने हाल ही में लडकियों की शादी की उम्र 18 की बजाए 21 वर्ष करने का प्रस्ताव मंजूर किया. यह पर्सनल लॉ को खत्म करने की साजिश होने का विचार मुस्लिम युथ लीग के प्रदेशाध्यक्ष इमरान अशरफी ने व्यक्त किया.
इमरान अशरफी के मुताबिक कोरोना काल में फेल हो चुकी केंद्र सरकार ऐसे उटपटांग बिल पास कर अपनी सियासी जमीन बचाना चाहती है. तीन काले कृषि कानून का हश्र पूरा देश देख चुका है. इमरान अशरफी ने यह भी स्पष्ट किया है कि गरीब और मध्यमवर्गीय परिवार का पिता अपनी बेटी 18 साल की बालिग होने पर उसका विवाह करता है. विवाह की उम्र 21 साल करने से उसे तीन साल इंतजार करना होगा. अशरफी ने दलील दी कि 18 साल की उम्र में मतदान का अधिकार प्रदान किया गया है, तो शादी की उम्र तीन साल बढाने के पीछे की मंशा समझ से परे है. किसी को विश्वास में न लेते हुए यह बिल पास किया गया है. साथ ही अपराध का दायरा भी बढने का डर इमरान अशरफी ने व्यक्त किया है.
* आपतकालिन प्रस्ताव की नोटिस
उल्लेखनीय है कि लडकियों की शादी की उम्र 18 से बढाकर 21 करने की अनुमति देने वाली केंद्रीय केबिनेट की कार्रवाई पर चर्चा करने के लिए लोकसभा में मुस्लिम लीग के सांसद ई.टी. मोहम्मद बशीर (केरल),अब्दुल समद समदानी, नवाज गनी (तमिलनाडू) व राज्यसभा के सांसद अब्दुल वहाब ने संयुक्त रुप से दिया. संसद को शादी की उम्र बढाने और समाज पर उसके दुरगामी परिणामों पर बहस करनी चाहिए. आपातकालीन प्रस्ताव में मांग की गई है कि यह मुस्लिम पर्सनल लॉ के खिलाफ एक अपराध है और केंद्र सरकार को इस तरह के कदमों से पीछे हटना चाहिए.

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