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जीवन की सार्थकता है संकल्प में, अपने लिए कोई न कोई लक्ष्य व संकल्प जरुर तय करें

शिवमहापुराण कथा के चौथे दिन पं. प्रदीप मिश्रा का कथन

* मौन के महत्व को समझाया, मौन को बताया साधना के समकक्ष
* सनातन धर्म की ध्वजा को न झुकने देने का किया शिवभक्तों से आवाहन
अमरावती/दि.19 – प्रत्येक जीव जन्म लेने के उपरान्त मृत्यु को प्राप्त अवश्य होता है. इस दौरा प्रत्येक जीव के शरीर में सांस का जाना-आना चलता रहता है और सांस रुकते ही जीवन खत्म हो जाता है. यहीं प्रक्रिया इंसानों के साथ भी होती है. परंतु अन्य जीवों एवं इंसानों में यह फर्क होता है कि, हर व्यक्ति अपने पश्चात अपने कामों की यादे छोड जाता है. साथ ही अपने सतकर्मों व पुण्य की गठरी बांधकर इस दुनिया से विदा हो जाता है. आप याद करने लायक कामों को तब कर पाएंगे, जब आपमें कुछ करने का शुभ संकल्प होगा. ऐसे में बेहद जरुरी है कि, प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में कोई ना कोई शुभसंकल्प जरुर है. जिसे पूरा करने का भी इरादा हो और उस संकल्प को पूरा करने के लिए ईश्वर की शरण में जाने की भावना भी हो. यदि किसी व्यक्ति के जीवन में कोई संकल्प नहीं है, तो ऐसे व्यक्ति के जीवन को निरर्थक अथवा किसी अन्य जीव के बराबर कहा जा सकता है. इस आशय का प्रतिपादन अंतरराष्ट्रीय कथा प्रवक्ता पं. प्रदीप मिश्रा द्वारा किया गया.
समिपस्थ भानखेडा रोड स्थित हनुमान गढी में विगत 16 दिसंबर ेसे चल रही शिवमहापुराण कथा के चौथे दिन पं. प्रदीप मिश्रा ने कथा की यात्रा को आगे बढाते हुए उपरोक्त प्रतिपादन किया. साथ ही जीवन में मौन के महत्व को प्रतिपादित करते हुए मौन को एक तरह से साधना के समकक्ष बताया. इस समय पं. प्रदीप मिश्रा ने कहा कि, भगवान शिव हमेशा ही अपनी साधना में लीन रहते है तथा मौन भी रहते है. इससे यह स्पष्ट होता है कि, साधना में जाने के लिए व्यक्ति का एकाग्रचित्त होना जरुरी है. जिसके लिए मौन सबसे बेहतर उपाय है तथा साधना में जाने के बाद मौन और भी मुखर हो जाता है. क्योंकि तब किसी अन्य से नहीं, बल्कि खुद अपने अत्यंस्त और अपने ईष्ट से संवाद की यात्रा शुरु होती है.
चौथे दिन की कथा में पं. प्रदीप मिश्रा ने पाश्चात्य एवं भारतीय संस्कृति के फर्क को भी स्पष्ट किया तथा कहा कि, भारत यह देवी-देवताओं, साधु-संतों व महापुरुषों की भूमि है. यहां पर दशावतार होने के साथ ही अलग-अलग समय पर अलग-अलग महापुरुष, दार्शनिक व विचारक भी हुए है. मानव जीवन को लेकर जितना चिंतन हमारे संतों व विचारकों द्वारा किया गया. उतना दुनिया के किसी भी अन्य हिस्से में नहीं हुआ. यहीं वजह है कि, जीवन के रहस्यों को खोजने हेतु आज पश्चिम दुनिया के देश भारत का रुख कर रहे है. क्योंकि हमारे पास ही मानव जीवन के सुख व शांति की पुंजी है.

इसके साथ ही पं. प्रदीप मिश्रा ने यह भी कहा कि, अमरावती व विदर्भ क्षेत्र के लोगों पर तो भगवान की विशेष अनुकंपा है. क्योंकि आप लोगों का समधीयाना सीधे द्वारिका, मथुरा और अयोध्या के साथ है. रुख्मिणी का मायका होने के नाते अमरावती यह भगवान कृष्ण की ससुराल तथा रानी इंदूमति का मायका होने के नाते भगवान श्रीराम के पिता राजा दशरथ की ननीहाल है. आज यदि किसी व्यक्ति का किसी कलेक्टर या मिनिस्टर से भी थोडा बहुत परिचय हो, तो वह जमकर रुआब झाडता है. ऐसे में अमरावतीवालों की शान और ठाट का अंदाजा लगाया जा सकता है. जिनका सीधे भगवान श्रीकृष्ण और प्रभू श्रीराम के साथ रिश्ता जुडा हुआ है.
इस समय माता रुख्मिणी के संकल्प की कथा सुनाते हुए पं. प्रदीप मिश्राम ने समझाया कि, किस तरह से छोटे बच्चों में बचपन से ही भगवत भक्ति के भाव रोपित किए जा सकते है. साथ ही साथ उन्होंने यह भी बताया कि, किस तरह से शिवभक्ति करते हुए रुख्मिणी ने भगवान श्रीकृष्ण को प्राप्त किया था. चूंकि सालबर्डी में अंबेश्वर नामक स्थान पर भगवान शिव ने प्रकट होकर माता रुख्मिणी को वरदान दिया था और माता पार्वती भी वहां प्रकट हुई थी. ऐसे में यह स्थान उसी तीर्थक्षेत्र से कम नहीं है. साथ ही अमरावती में भगवान श्रीकृष्ण के भी पैरों का स्पर्श हुआ था तथा यह माता रुख्मिणी की व माता इंदूमति की बाललिलाओं से पवित्र हुई धरती है. ऐसे में पूरा विदर्भ क्षेत्र अपने आप में किसी तीर्थक्षेत्र की तरह है.
रोजाना की तरह आज भी पं. प्रदीप मिश्रा ने विभिन्न भाविक श्रद्धालुओं की ओर से भेजे गए पत्रों का वाचन करते हुए भाविकों के अनुभव सभी को सुनाए तथा सभी से शिवभक्ति का आवाहन करते हुए कहा कि, जो सच्चे मन से भगवान भोलेनाथ की आराधना करता है. उसे उसका मनवाच्छित फल जरुर प्राप्त होता है तथा भगवान भोलेनाथ इतने सहज व सरल है कि, अपने भक्त द्वारा चढाई जाने वाली वेल वृक्ष की तीन पत्तियों से ही प्रसन्न हो जाते है.

* अयोध्या व हनुमान गढी के महंतों की रही विशेष उपस्थिति
विशेष उल्लेखनीय है कि, आज चौथे दिन की शिवमहापुराण कथा में अयोध्या स्थित श्रीराम जन्मभूमि न्यास के महंत आचार्य सत्येंद्रनाथजी महाराज, श्री हनुमान गढी के महंत श्री राजूदासजी महाराज एवं उदासीन आश्रम के महंत श्री धर्मदासजी महाराज विशेष तौर पर उपस्थित थे तथा इन तीनों महंतों ने भी चौथे दिन की कथा के अंत में उपस्थित भाविक श्रद्धालुओं को अपना उद्बोधन प्रदान किया. साथ ही सभी से आगामी 22 जनवरी को अयोध्या में होने जा रहे श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के उद्घाटन व राम मूर्ति के प्राणप्रतिष्ठा समारोह में उपस्थित रहने का आवाहन किया.

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