प्रभु से प्रेम का अर्थ मानकार है : मां कनकेश्वरी देवी
अमरावती /दि. ३-माँ कनकेश्वरी देवी जनकल्याण ट्रस्ट अंतर्गत गठित माँ अंबा सत्संग समिति, अमरावती के तत्वाधान में चल रही श्री रामचरित मानस कथा गंगा के सातवें दिन व सातवें सत्र में हजारों भक्तों के बीच माँ ने गुरुवंदना से श्रीगणेश किया. बडनेरा झिरी स्थित श्री सदगुरु गणेश शाश्वत धाम में पिछले छह दिनों से जो कथा गंगा बह रही है उसमें सातवें सूत्र में माँ ने धनुष यज्ञ का प्रसंग आगे बढाया. माँ ने कहा कि प्रभु से प्रेम का अर्थ संसार से नफरत नहीं है बल्कि दुनिया के प्रति समतापूर्ण मानवता यह होता है. संसार से प्रेम यह दोष नहीं है बल्कि प्रभु से प्रेम न होना यह दोष है. दोष ही दु:ख का कारण है. संसार से अरुचि नहीं बल्कि संसार से समता होनी चाहिये. बिना प्रीति के भगवान की प्राप्ति कठिन लगती है और भगवान भयंकर लगते हैं. अर्जुन को विराट रूप दर्शन के प्रसंग पर माँ ने कहा कि विराट रूप देखकर अर्जुन डर गये थे, क्योंकि पर्याप्त सत्संग नहीं था. भगवान न तो सुंदर हैं, न ही असुंदर हैं बल्कि भगवान जो बस हैं. भक्त का प्रेम सुंदर होता है तो प्रभु सुंदर लगते हैं. वैचारिक अनुसंधान साधक के जीवन को यथार्थ सुंदर बनाता है. कथा पूर्व माँ का आशीर्वाद लेने वालों में मुख्ययजमान श्रीमती सरलादेवी नारायणदास सिकची परिवार के आनंद सिकची, प्रज्ञा सिकची, अनुप सिकची, वासुदेव वानखडे मुंडगाव, संतोष जगनाडे, सौ.सुगनाताई संपत शर्मा, निशा जाजू, सूरज ऊर्फ मुन्ना गुप्ता महाप्रसाद समिति प्रमुख, राजूभाई भंडारी शिरपुर, रूपाली खेडकर, निलेश कदम, शीतल कदम, अर्चना चांडक गुप्ता, राधेश्याम चांडक इत्यादि मान्यवरों का समावेश रहा. श्री हिरेन शास्त्री महाराज और श्री परमेश्वरानंदजी महाराज सहित सुश्री राम प्रियाजी, मंगलाश्रीजी की भी उपस्थिति सभामंडप में विराजित रहे.
* रामकथा का मुख्य लक्ष्य है प्रभु के प्रति व प्रेम जागृत करना
मां कनकेश्वरी देवी ने कहा कि, प्रभु मेरे लिए हैं यह संसार-बंधन का कारण भाव है तथा मैं प्रभु के लिए हूँ यह भावही संसार-मुक्ति का महामंत्र है. भजन मोक्ष के निकट ले जाता है और कर्म बंधन देता है. स्वभाव की कठोरता ईश्वर प्राप्ति में बाधक होती है. रामकथा का मुख्य लक्ष्य है प्रभु के प्रति व प्रेम जागृत करना. सूक्ष्म अहंकार से हमारी निजी जिम्मेदारी है इसीलिये हमें हर कोशिश करके हमारे व्यवहार में विवेक लाना चाहिये. व्यवहार में अभेद असंभव है. धनुष-भंग प्रसंग कहते हुए माँ ने कहा की स्वभाव की सरलता-सहजता से ही स्वभाव की कठोरता हो सकती है. सरलता ही स्वभाव की कठोरता को समाप्त कर सकती है. क्षमा ही अपराध को कर सकती है। सत्संग से दूरी के कारण स्वभाव कठोर हो जाता है.
* अपने स्वभाव को सुधारने की दी प्रेरणा
विविध प्रकार से माँ ने अपने स्वभाव को सुधारने की प्रेरणा दी. झूठे दिखावे पर कटाक्ष करते हुए माँ ने कहा कि कपडों का प्रभाव बहुत कम समय रहता है. धन का प्रभाव भी कुछ समय है किंतु स्वभाव का प्रभाव चिरस्थायी रहता है. हमें अपने स्वभाव के दोषों के प्रति सावधान रहना चाहिये. सरलता सहजता का ही निरंतर अभ्यास करना चाहिये. सच्ची लगन लगने पर थोडा भी भजन अधिक लाभ देता है. राम सीता विवाह प्रसंग पर माँ ने कहा कि अगन तिथि के बाद लगन तिथि शुभ होती है. संसार का स्वभाव ऐसा है कि जितने संबंध उतने बंधना मुक्त सद्गुरु का आश्रय लेने पर हमारे संबंध बढ़ेंगे किंतु बंधन कम होंगे. कर्तव्य बोध अधिकार बोध पर चिंतन करते हुए माँ ने कहा कि हमें सिर्फ अपने कर्तव्य के प्रति हमेंशा सजग रहना चाहिये अधिकार अपने आप मिलना शुरू हो जाएँगे.