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सहकार क्षेत्र के लब्ध प्रतिष्ठितों का एकाधिकार आयेगा खतरे में

कितना कारगर होगा मंडी में किसानों को मताधिकार देना

* सोसायटियों के अस्तित्व पर लग सकता है सवालिया निशान
* मंडी में सहकार की बजाय राजनीतिक वर्चस्व होगा भारी
* स्थानीय निकायों की तरह फसल मंडी में होंगे चुनाव
* नई पध्दति की वजह से किसानों के हाथ में होगा सत्ता सूत्र
अमरावती/दि.21– हाल ही में राज्य की शिंदे-फडणवीस सरकार ने फसल मंडियों में एक बार फिर किसानों को मताधिकार देने का फैसला लिया है. जिसके बाद से यह चर्चा चल पडी है कि, अगर इस फैसले पर अमल किया जाता है, तो इसका क्या असर होगा और यह फैसला किस हद तक कारगर साबित होगा. इस संदर्भ में फसल मंडी से जुडे अलग-अलग सूत्रों से बात करने पर इसके कई पहलू उभरकर सामने आये. जिसके मुताबिक इस फैसले का यद्यपि कुछ राजनीतिक दलों द्वारा अपने-अपने राजनीतिक दृष्टिकोण की वजह से विरोध किया जा रहा है. लेकिन इस फैसले के सहकार क्षेत्र एवं कृषि क्षेत्र में बेहद दुरगामी परिणाम होंगे और किसानोें के हितों के लिए बनाई गई फसल मंडियों की सत्ता के केंद्र में अब वाकई किसान ही रहेगा, क्योंकि अब कम से कम 10 गुुंठे जमीन रहनेवाले और पांच साल में कम से कम तीन बार फसल मंडी में अपनी उपज लाकर बेचनेवाले आम किसान को मंडी के चुनाव में वोट डालने के साथ-साथ खुद चुनाव लडने का भी अधिकार रहेगा. ऐसे में कहा जा सकता है कि, अब तक फसल मंडी के चुनाव पर रहनेवाला सेवा सहकारी सोसायटियों यानी सहकार क्षेत्र के दिग्गजों का वर्चस्व पूरी तरह से खत्म हो जायेगा और फसल मंडी के चुनाव विधानसभा व राज्यसभा की तरह प्रातिनिधिक नहीं, बल्कि जिला परिषद व मनपा की तरह आम चुनाव की तरह होंगे. ऐसे में अब फसल मंडियों में सहकार क्षेत्रों की पैनलबाजी के स्थान पर राजनीतिक दलों के वर्चस्व की लडाई दिखाई दे सकती है, लेकिन इसमें भी पूरी तरह से फसल मंडी के साथ वास्ता रखनेवाले आम किसान ही सत्ता के केंद्र में दिखाई देगा, क्योंकि सत्ता के सारे सूत्र किसानों के हाथ में रहेंगे.
बता देें कि, वर्ष 1963 के आसपास अस्तित्व में आयी फसल मंडी व्यवस्था में वर्ष 2014 तक संचालक मंडल चुनने का अधिकार मंडी क्षेत्र में शामिल गांवों की सेवा सहकार सोसायटियों एवं ग्रामपंचायतों के सदस्यों के हाथ में हुआ करता था. इस व्यवस्था के तहत ग्रामीण क्षेत्र के नागरिकों द्वारा पहले सेवा सहकारी सोसायटियों व ग्रामपंचायतों के सदस्य चुने जाते है और फिर इन सदस्यों द्वारा किसानों के प्रतिनिधि के तौर पर फसल मंडी के चुनाव में हिस्सा लेते हुए मंडी के संचालकों का चुनाव किया जाता है. इसके तहत फसल मंडी के संचालक मंडल का चुनाव लडने का अधिकार भी सोसायटियों व ग्राम पंचायतों के सदस्यों को ही रहता है. बता दें कि, 18 सदस्यीय संचालक मंडल में 11 सदस्य सोसायटी निर्वाचन क्षेत्र व 4 सदस्य ग्रापं निर्वाचन क्षेत्र से चुने जाते है. जिन्हें एक तरह से किसानों द्वारा और किसानोें के लिए निर्वाचित संचालक माना जाता है. वहीं खरीददार व अडत निर्वाचन क्षेत्र से 2 तथा हमाल-मापारी निर्वाचन क्षेत्र से 1 संचालक चुना जाता है. लेकिन वर्ष 2014 के दौरान राज्य की सत्ता में आयी भाजपा-सेना युती सरकार ने फसल मंडी के चुनाव में सीधे किसानों को मताधिकार देने का फैसला लिया था. जिसके तहत फसल मंडी के कार्यक्षेत्र अंतर्गत आनेवाले तहसील व ग्रामीण क्षेत्रों में कम से कम 10 गुंठे जमीन रखनेवाले और पांच वर्ष के दौरान कम से कम तीन बार अपनी उपज फसल मंडी में लाकर बेचनेवाले किसानों को फसल मंडी के चुनाव में वोट डालने और संचालक पद का चुनाव लडने का अधिकार दिया गया था. परंतू इसके बाद राज्य में हुए सत्ता परिवर्तन पश्चात अस्तित्व में आयी महाविकास आघाडी सरकार ने वर्ष 2020 में इस फैसले को स्थगित करते हुए पुरानी व्यवस्था को दुबारा कायम किया. हालांकि वर्ष 2020 से ही चहुंओर कोविड की संक्रामक महामारी का दौर शुरू हो गया और राज्य में कहीं पर भी फसल मंडियों के चुनाव नहीं कराये जा सके. यद्यपि इस दौरान कई फसल मंडियों के संचालक मंडल का कार्यकाल खत्म हुआ, जिसके चलते उन संचालक मंडलों को दो से तीन बार समयावृध्दि दी गई और इसके पश्चात संचालक मंडल को भंग करते हुए लगभग सभी फसल मंडियों में प्रशासक नियुक्त कर दिये गये. वहीं अब राज्य में एक बार फिर एक बडा राजनीतिक उलटफेर हुआ है. जिसके बाद राज्य में महाविकास आघाडी सरकार का पतन होकर शिंदे गुट व भाजपा की नई सरकार अस्तित्व में आयी है और इस नई सरकार ने फसल मंडियों में किसानोें को भी चुनाव लडने व वोट डालने का अधिकार देने के संदर्भ में निर्णय लिया है. जिसे लेकर अब समर्थन व विरोध का दौर तेज हो गया है.
ऐसे में दैनिक अमरावती मंडल ने मंडी से जुडे अलग-अलग सूत्रों से बात करते हुए यह जानना चाहा कि, आखिर इस फैसले का जमीनी स्तर पर क्या असर होगा. जिसके जवाब में पता चला कि, अब तक फसल मंडी पर एक तरह से सेवा सहकारी सोसायटियों के जरिये सहकार क्षेत्र में अच्छा-खासा दबदबा रखनेवाले कुछ चुनिंदा लोगों व परिवारों का ही वर्चस्व रहा करता था. ग्र्रामीण क्षेत्र में अपनी अच्छी-खासी पकड रखनेवाले लोग ही सेवा सहकारी सोसायटी में संचालक निर्वाचित होते थे. जिनके पास मंडी में चुनाव लडने व वोट डालने का अधिकार हुआ करता था. इसके अलावा ग्राम पंचायत सदस्य के तौर पर भी ग्रामीण स्तर पर धाकड रहनेवाले लोग ही चुने जाते थे, जो आगे चलकर मंडी के चुनाव में आते थे. ऐसे में किसानों के पास केवल सोसायटी और ग्राम पंचायत के सदस्य चुनने का ही काम व अधिकार हुआ करता था. परंतू अब नई पध्दति के चलते सोसायटियों के संचालक व ग्राम पंचायत सदस्य रहनेवाले लोग भी मंडी के चुनाव में आम मतदाता की भूमिका में आ जायेंगे और 10 गुंठे जमीन व पांच साल में तीन बार उपज बिक्री वाली शर्त के आधार पर ही उन्हें भी मंडी में वोट डालने व चुनाव लडने का अधिकार होगा. साथ ही उनके खिलाफ गांव का कोई आम किसान भी अब चुनाव लड सकेगा. ऐसे में कहा जा सकता है कि, फसल मंडी के चुनाव में अब सहकार क्षेत्र के दिग्गजों व सेवा सहकार सोसायटियों का वर्चस्व एक तरह से खत्म हो जायेगा. बल्कि अब सहकार क्षेत्र के दिग्गजों की पैनलबाजी भी खत्म होकर फसल मंडी के चुनाव में आम किसानों द्वारा अपना सक्रिय सहभाग लिया जा सकेगा.बता देें कि, अमरावती कृषि उत्पन्न बाजार समिती में अमरावती व भातकुली इन दो तहसीलों का समावेश होता है और अमरावती तहसील के 41 सोसायटियों व 41 ग्राम पंचायतों तथा भातकुली तहसील की 40 सोसायटियों व 40 ग्रामपंचायतों के 13-13 सदस्यों द्वारा अमरावती फसल मंडी के 15 संचालकों का चुनाव किया जाता है. यानी सेवा सहकारी सोसायटी के 11 व ग्रापं क्षेत्र के 4 ऐसे कुल 15 संचालकों के चुनाव हेतु मोटे तौर पर कुल 2 हजार मतदाताओं द्वारा अपने मताधिकार का प्रयोग किया जाता है और इन्हीं 2 हजार मतदाता प्रतिनिधियों को ही चुनाव लडने का अधिकार भी होता है. लेकिन अब दोनों तहसीलों के आम किसानों को फसल मंडी के चुनाव में वोट डालने तथा चुनाव लडने का अधिकार मिल जायेगा. ऐसे में अमरावती फसल मंडी के चुनाव में भी मतदाताओं की संख्या 60 हजार के आसपास जा पहुंचेगी. जिसके चलते सभी राजनीतिक दल इस चुनाव की ओर आकर्षित होंगे और इस चुनाव में सहकार क्षेत्र की राजनीति के बजाय मुख्य धारा की राजनीति का असर बडे पैमाने पर दिखाई देगा. वहीं यदि जिले की सभी 12 फसल मंडियों की बात की जाये, तो जिले की फसल मंडियों में कुल मतदाताओं की संख्या अब 4 लाख के आसपास जा पहुंचेगी और जिले की सभी फसल मंडियों की सत्ता के केंद्र में अब आम किसान होंगे. जिनके हितों के लिए फसल मंडियों की व्यवस्था को अमल में लाया गया है.

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