अमरावतीलेख

सबसे अलहदा और सबसे जुदा डॉ. प्रफुल्ल कडू

हजारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है,

* बडी मुश्किल से होता है चमन में दिदावर पैदा.
मशहूर शायर डॉ. अल्लामा इकबाल द्वारा देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरु को लेकर कहा गया यह शेर यूं तो कई शख्सियतों के लिए भी उपयोग में लाया जा चुका है. लेकिन यह शेर आज के इस दौर में अमरावती निवासी वरिष्ठ स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. प्रफुल्ल कडू पर बेहद सटीक बैठता है. साथ ही डॉ. प्रफुल्ल कडू का जीवन इस शेर में उकेरे गए भावों को सही अर्थों में साकार करता है. स्थानीय रुख्मिणी नगर, श्रीविकास कालोनी व विवेकानंद कालोनी के त्रिवेणी संगम जैसे स्थान पर गुरुकृपा हॉस्पिटल संचालित करने वाले डॉ. प्रफुल्ल को न जानता हो, ऐसा कोई भी व्यक्ति अमरावती शहर सहित जिले और संभाग में मिलना मुश्किल है. डॉ. प्रफुल्ल कडू ने मरीजों को स्वास्थ्य लाभ करवाने से संबंधित अपने पेशे की जिम्मेदारियों का तो बखूबी निर्वहन किया ही. साथ ही साथ जो कुछ समाज से मिला, उसे समाज को और विशेषकर समाज के अंतिम घटक को वापिस देने की मानसिकता भी रखी. इसी मानसिकता के तहत डॉ. प्रफुल्ल कडू द्वारा अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों का बेहद अलहदा तरीके से निर्वहन किया गया और ऐसा करते हुए उन्होंने समाज के समक्ष एक आदर्श डॉक्टर का उदाहरण पेश किया, जिसकी बदौलत वे मशहूर शायर डॉ. अल्लामा इकबाल के उपरोक्त शेर की कसोटी का बेहद खरे उतरते हैं.
विगत साढे तीन दशकों के दौरान अपने द्वारा की जाती चिकित्सकीय सेवा के दम पर मरीजों के मसीहा का दर्जा प्राप्त कर चुके डॉ. प्रफुल्ल कडू का जन्म धामणगांव से करीब 9 किमी की दूरी पर स्थित अशोक नगर में रहने वाले हाईस्कूल टीचर बाबारावजी कडू व इंदूताई कडू की सबसे बडी संतान के तौर पर हुआ था. परिवार में उनके पश्चात दो भाई सुनील व अभय तथा एक बहन ज्योति का भी जन्म हुआ. डॉ. प्रफुल्ल कडू की प्राथमिक शिक्षा-दीक्षा उनके पैतृक गांव में ही पूरी हुई. पश्चात वे कक्षा 11 वीं व 12 वीं की पढाई करने हेतु अमरावती पहुंचे और मणिबाई गुजराती हाईस्कूल से बेहतरीन अंकों के साथ कक्षा 12 वीं की परीक्षा पूर्ण की, जिसके दम पर उन्हें नागपुर के सरकरी मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस पाठ्यक्रम हेतु प्रवेश मिला, जिसे पूरा करने के बाद वे प्रफुल्ल कडू से डॉ. प्रफुल्ल कडू बन गए. वर्ष 1981 में एमबीबीएस उत्तीर्ण होने के बाद उन्होंने अगले एक वर्ष तक इर्विन अस्पताल व वलगांव के स्वास्थ्य केंद्र में इंटर्न के तौर पर काम किया. एमबीबीएस की पढाई पूरी करने के दौरान डॉ. प्रफुल्ल कडू मेडिसीन विषय में द्वितीय स्थान पर थे. ऐसे में उन्होंने वर्ष 1982 में एमडी मेडिसीन पाठ्यक्रम में प्रवेश लेते हुए अगले तीन साल तक डॉ. बी. एस. चौबे के मार्गदर्शन में पढाई पूरी की और 1986 में एमडी उत्तीण करने के बाद डॉ. पंजाबराव देशमुख स्मृति मेडिकल कॉलेज में बतौर लेक्चरर काम करना शुरु किया. साथ ही रेल्वे स्टेशन रोड पर खंडेलवाल सिमेंट डिपो के पास ठाकुरजी के वाडा में अपना छोटा सा क्लिनीक शुरु करते हुए अपनी प्रैक्टीस प्रारंभ की. इसी दौरान वर्ष 1989 में परतवाडा के निकट परसापुर से वास्ता रखने वाली एमडी पैथॉलॉजिस्ट डॉ. संगीता से उनका विवाह हुआ. जिसके बाद कडू दम्पति ने वर्ष 1992 में गुरुकृपा हॉस्पिटल की नींव रखी. जिसके जरिए उपलब्ध कराई जाती चिकित्सकीय सेवाओं व सुविधाओं ने डॉ. प्रफुल्ल कडू को अमरावती शहर व जिले सहित समूचे संभाग के चिकित्सा क्षेत्र में स्थापित करने के साथ ही उन्हें एक अलग पहचान दिलाई.

वर्ष 1992 में स्थापित गुरुकृपा हॉस्पिटल के लिए अपने आप को पूरी तरह से समर्पित कर देने वाले डॉ. प्रफुल्ल कडू ने पूरी निष्ठा व ईमानदारी के साथ अपने काम पर ध्यान देते हुए जहां एक ओर मरीजों की सेवा का सतत व अनवरत काम किया. वहीं दूसरी ओर चिकित्सकों के हितों को लेकर भी वे हमेशा पूरी तरह से सजग व सक्रिय रहे. इसी के तहत वे इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्षव सचिव रहने के ेसाथ ही डायबिटीक एसोसिशन तथा एसोसिशन ऑफ फिजिशियन के विदर्भ अध्यक्ष भी रहे. साथ ही उन्होंने अमरावती फिजिशियन एसोसिएशन की स्थापना भी की. इसके अलावा उन्होंने नाशिक स्वास्थ्य विद्यापीठ के सिनेट सदस्य और संत गाडगे बाबा अमरावती विद्यापीठ के रंजन मंडल सदस्य के तौर पर भी काम किया. इसके अलावा शहर की कई सामाजिक संस्थाओं के साथ डॉ. प्रफुल्ल कडू का काफी गहरा जुडाव रहा, जिसके चलते वे दो बार रिफॉर्म क्लब के अध्यक्ष व एक बार आजाद हिंद गणेशोत्सव मंडल के अध्यक्ष भी रहे और लंबे समय तक लायंस क्लब के साथ सदस्य के तौर पर जुडे रहे.

मौजूदा दौर में जहां हर डॉक्टर रोजाना अधिक से अधिक मरीजों की स्वास्थ्य जांच करने पर जोर देेते हैं और लगभग सभी डॉक्टरों की ओपीडी मरीजों से भरी पडी दिखाई देती है, ताकि अधिक से अधिक धर्नाजन किया जा सके और उस धन से अस्पताल सहित खुद के व्यक्तिगत जीवन के जरुरतों को पूरा किया जा सके. वहीं डॉ. प्रफुल्ल कडू शहर के पहले ऐसे डॉक्टर रहे, जो शुरुआत से ही रोजाना बेहद सीमित संख्या में अपनी ओपीडी के तहत मरीजों को देखते हैं. जबकि उनसे अपनी स्वास्थ्य जांच करवाने के लिए लोग कई घंटों तक कतार लगाकर बैठने हेतु तैयार रहते हैं. लेकिन इसके बावजूद धर्नाजन को लेकर डॉ. प्रफुल्ल कडू ने अपने मन में कभी किसी तरह का कोई लोभ नहीं रखा. बल्कि उनका हमेशा से यह मानना रहा कि, वे बिना थके जितना काम आराम से कर सकते हैं, उतना ही करते हैं और अपने काम को बेवजह फैलाते उसे आगे चलकर दूसरों के भरोसे छोड देना उनके स्वभाव में नहीं है.
डॉ. प्रफुल्ल कडू की संवेदनशीलता का सबसे जबर्दस्त पहलू उस समय सामने आया, जब पूरा देश कोविड की महामारी के संक्रमण से जुझ रहा था. उस समय कोविड अस्पतालों के अलावा लगभग सभी निजी अस्पतालों व डॉक्टरों के दरवाजे मरीजों के लिए बंद थे, क्योंकि डॉक्टरों और अस्पतालों के स्वास्थ्य कर्मियों में भी कोविड की महामारी को लेकर अच्छा खासा भय था. लेकिन डॉ. प्रफुल्ल कडू तब शायद अकेले ऐसे डॉक्टर थे, जो नियमित रुप से अपने पास आने वाले मरीजों की जांच कर रहे थे. साथ ही उन्होंने कोविड सदृश्य लक्षण रहने वाले कई मरीजों का भी सफलतापूर्वक इलाज किया. इसके पश्चात कोविड संक्रमण की दूसरी लहर के दौरान उन्होंने गुरुकृपा हॉस्पिटल में निजी कोविड अस्पताल भी शुरु किया. जहां से सैकडों मरीज कोविड मुक्त होकर अपने अपने घर लौटे. इसके अलावा उसी दौरान डॉ. प्रफुल्ल कडू ने अपनी स्वास्थ्य सेवाओं को समाज के अंतिम घटक तक पहुंचाने हेतु गुरुकृपा अस्पताल में अंत्योदय योजना भी शुरु की. जिसके तहत रोजाना की सीमित ओपीडी के साथ ही वे और उनकी पत्नी डॉ. संगीता कडू नाममात्र शुल्क में गरीब तबके के मरीजों को स्वास्थ्य जांच व औषधोपचार की सुविधा उपलब्ध कराया करते थे. यह सिलसिला काफी लंबे समय तक चलता रहा.
डॉक्टरी एवं अपने सामाजिक कामों के चलते व्यस्त के साथ ही अतिव्यस्त रहने वाले डॉ. प्रफुल्ल कडू के पास यूं तो दो घडी शांति से बैठकर सांस लेने की भी फुर्सत नहीं होती, लेकिन इसके बावजूद भी उन्होंने अपने भीतर एक कलाकार को जीवित रखा है और वे शास्त्रीय गायन के साथ ही सितार व हॉर्मोनियम वादन में अच्छी पकड रखते हैं. साथ ही अपनी पत्नी डॉ. संगीता कडू के साथ प्रतिवर्ष साल में 2 बार गीत रामायण की संगीतमय प्रस्तूति देते है. इसके अलावा वर्ष 1992 से रोजाना 2 घंटे नियमित रुप से लॉन टेनिस टेनिस भी खेलते हैं.
डॉ. कडू दम्पति के नक्शे कदम पर आगे बढते हुए उनके बेटे श्रेयक कडू ने मेयो से एमबीबीएस की पढाई पूरी की है, जो इस समय मुंबई में एमडी की पढाई कर रहा है. वहीं उनकी बेटी श्रिया भी सरकारी मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की पढाई पूरी कर रही है. साथ ही डॉ. कडू दम्पति के दोनों बच्चे आगे चलकर अपने माता-पिता की तरह आदर्श चिकित्सक बनते हुए चिकित्सा सेवा व समाजसेवा का उदाहरण पेश करना चाहते है.
ग्रामीण परिवेश और बेहद सर्वसामान्य पारिवारिक पृष्ठभूमि से निकलकर आज समाज की युवा पीढी के समक्ष सफलता व प्रसिद्धि का उदाहरण पेश करने वाले डॉ. प्रफुल्ल कडू को उनके जन्मदिवस पर अनेकानेक बधाईयां व शुभकामनाएं देने के साथ ही उनके लिए मशहूर शायर मिर्जा अजीम बेग अजीम का यह शेर भी पेश किया जा सकता है कि,
गिरते है शहसवार ही मैदान ए जंग में,
वो तिफ्ल क्या गिरे, जो घुटनों के बल चले.

– चंद्रप्रकाश दुबे,
9545451991

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