वीर प्रताप में राजा बलि और माता लक्ष्मी की पौराणिक गाथा
सजीव झांकी बनकर लगभग तैयार
* सुंदर रोशनाई से जगमगाया सक्करसाथ, प्रताप चौक क्षेत्र
* दुर्गोत्सव के लिए विदर्भ में प्रसिद्ध है यह मंडल
अमरावती/दि. 2 – दुर्गोत्सव के लिए विगत पांच दशकों से प्रसिद्ध प्रताप चौक के वीर प्रताप नवदुर्गा महोत्सव मंडल में इस बार स्त्री शक्ति की महिमा का प्रदर्शन करते हुए राजा बलि और माता लक्ष्मी की पौराणिक कथा जिसमें भगवान विष्णु को पाताल लोक से स्वर्ग वापस लाने के प्रसंग को झांकी के रूप में प्रस्तुत किया है. उसी प्रकार फवारा के सामने शेगांव के संत गजानन महाराज की झांकी भी श्रद्धालुओं को आकर्षित और प्रभावित करेगी, ऐसी जानकारी मंडल के प्रमुख महेंद्रभाई चोपडा ने दी. उल्लेखनीय है कि, इस मंडल से शहर के अनेक गणमान्य जुडे हैं. स्वागताध्यक्ष नानकराम नेभनानी है तो उत्सव अध्यक्ष अमरावती मंडल के प्रबंध निदेशक राजेश अग्रवाल और व्यवसायी विनोद डागा मंडल के अध्यक्ष मनोनीत हैं. उत्सव की तैयारी लगभग पूर्ण हो गई है. यहां की देवी बडी दुर्गादेवी कहलाती है, जो अत्यंत आकर्षक एवं भव्य रुप परिपूर्ण होती है. विशेष रुप से बंगाल से आए मूर्तिकार उसे मानो सजीव बना देते हैं.
* इस बार की झांकी पौराणिक कथा को लेकर
हिंदू पौराणिक कथा के अनुसार, पहली बार राखी सतयुग में लगभग 38 लाख 80 हजार वर्ष पूर्व बांधी गई थी. सतयुग में प्रल्हाद का पौत्र असुर राजा बली हुआ करता था, जो अपने दादा की तरह ही विष्णु भगवान का बड़ा भक्त था और दानवीर माना जाता था. राजा बलि ने असुर गुरु शुक्राचार्य की मदद से 100 यज्ञ पूर्ण किए और स्वर्गलोक पर विजय हासिल कर ली. स्वर्ग में हलचल मच गई, देवराज इंद्र ने भगवान विष्णु के शरण में पहुचे स्वर्ग की रक्षा करने की गुहार लगाई, तब भगवान विष्णु वामन अवतार में बली के द्वार पर पहुंचे और भिक्षा में दानवीर बली से तीन पग भूमि की मांग की. वचन देने के बाद वामन अवतार भगवान विष्णु ने दो पग में स्वर्ग और धरती को नाप दिया, राजा बलि समझ गया कि यह वामन साधारण पुरुष नहीं है, जब तीसरा पग रखने की जगह नहीं मिली तो बली ने अपना वचन पूर्ण करने के लिए भगवान का तीसरा पग अपने सर पर रखवा दिया.
* बने लक्ष्मी माता के भाई
इस बात से भगवान विष्णु अत्यधिक प्रसन्न हुए, उन्होंने बली को पाताल लोक का राजा बना दिया और वरदान मांगने को कहा, उन्होंने भगवान विष्णु से उनके साथ में रहकर उनकी सुरक्षा का वरदान मांग लिया और भगवान राजा बली के द्वारपाल बनकर उनके महल में तैनात हो गए. उधर स्वर्ग लोक में माता लक्ष्मी अपने पति विष्णु भगवान की राह देखती रहीं, जब भगवान विष्णु लंबे समय तक स्वर्ग लोक नहीं लौटे तो नारदजी के कहने पर माता लक्ष्मी एक साधारण स्त्री का रूप धारण कर पाताल लोक में राजा बली के महल पहुंची, उन्हें बताया कि उनका कोई भाई नहीं है, उनकी व्यथा सुन राजा बली का दिल पिघल गया और बली ने उन्हें अपनी धर्म बहन बना लिया.
* एक धागे का पहनाया रक्षा सूत्र
इस रिश्ते को मजबूती देने के लिए माता लक्ष्मी ने राजा बली को एक धागे का रक्षासूत्र पहनाया, अपनी कलाई पर बहन के हाथ का रक्षासूत्र देख राजा का मन विभोर हो गया और उन्होंने लक्ष्मी माता से उपहार मांगने की बात कही. तब माता लक्ष्मी अपने असली स्वरूप में आ गईं और उन्होंने बली से अपने पति भगवान विष्णु को उनकी सुरक्षा के दायित्व से मुक्त करने का वचन उपहार में मांगा. इसके बाद बली ने अपने वचन का पालन करते हुए भगवान विष्णु को अपने वरदान के वचन से मुक्त कर दिया और माता लक्ष्मी ने रक्षासूत्र से अपने पति को मुक्त करवाया और स्वर्ग में नारायण की वापसी हुयी.
* पंडित दवे पिता-पुत्र कराएंगे शुभ मुहूर्त में घट स्थापना
श्री वीर प्रताप नवदुर्गा महोत्सव मंडल में माता जगत जननी अंबा के प्रथम दिवस पर घट स्थापना का शुभ मुहूर्त दोपहर 2 से 4 बजे तक एवम माता दुर्गा मूर्ति स्थापना रात्रि 9 बजे शुभ मुहूर्त में पंडित श्री वसंत जी श्रीमाली एवम पंडित प्रफुल्ल वसंत जी श्रीमाली अनुसार निर्धारित किया गया है, मंडल के अध्यक्ष सहित सभी भक्त जन पूजन के निर्धारित समय पर मंडल में उपस्थित रहे. द्वितीय दिवस से प्रातः 11.30 से 12.15 दोपहर में घट पूजन मूर्ति पूजन आरती का समय निर्धारित किया गया है इस पूजन में सम्मिलित होने वाले यजमान प्रातः 10 बजे फोन द्वारा सूचित कर देवे जो भी पूजन में बैठने का इच्छुक हो वह एवम रात्रि आरती का समय 9 बजे रखा गया है. रात्रि घट पूजन में यजमान एवम यजमान पत्नी दोनो घट पूजन में उपस्थित रहे. माताजी के घट दर्शन सिर्फ रात्रि आरती से आधा घंटे पहले एवम आधा घंटे बाद तक ही होगे. इस बात का सभी से निवेदन है घट पूजन की गरिमा बनी रखेगे. घट में धुले वस्त्र पहन कर ही प्रवेश करे.