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कौंडण्य ऋषि के कारण नाम पडा कोंडेश्वर

प्रकृति की गोद में बसा है हेमाडपंथी शिवालय

* कल महाशिवरात्रि का मेला, उमडेगा जनसागर
अंजनगांव बारी/ दि. 25 – बडनेरा से पूर्व में निसर्गरम्य परिसर स्थित तीर्थक्षेत्र हेमाडपंथी शिवालय का नाम कोंडेश्वर रखे जाने के पीछे कौंडण्य मुनि का इतिहास है. अंदाज है कि 5051 वर्ष पूर्व शिव भक्त विदर्भ राजा ने स्थापत्य विशारद कौंडण्य मुनि को मंदिर निर्माण का दायित्व सौंपा था. विशेष रूप से काशी से उन्हें बुलाया गया था. भगवान शंकर की पिंड व लिंग की स्थापना एवं प्राण प्रतिष्ठा की गई. कहते हैं कि कौंडण्य मुनि के कारण ही महादेव को कोंडेश्वर नाम दिया गया और यह सिध्द व प्रसिध्द हो गया. श्री तीर्थ क्षेत्र में कल महाशिवरात्रि का मेला रहेगा. हजारों भाविक कोंडेश्वर महादेव की पूजा और अभिषेक के लिए उमडेंगे.
अनेक अवसरों पर अर्चना, उपासना
इस परिसर में कौंडेश्वर महादेव की पूजा के साथ ही प्राचीन समय में अनेक अवसरों पर उपासना की गई. कई बार अति रूद्र, महारूद्र, महिम्न स्त्रोत, रूद्रेयान, कोटी लिंगार्चन आदि किए गये. जिससे यह क्षेत्र तपोभूमि बन गया. श्रीरामदेवराव यादव और कृष्णदेवराव यादव ने 11 वीं सदी में अपने प्रधानमंत्री हेमाद्री पंत को शिवालय के नवनिर्माण का आदेश दिया. राज्य सत्ता के खर्च से 15 फीट उंचे हेमाडपंथी मंदिर का नवनिर्माण हुआ. भोसले राजघराने और माधवराव पेशवे ने मंदिर का जतन किया. कोंडेश्वर का महात्म्य बढता गया. अनेक ऋषि, मुनि, संत महात्मा, शिवभक्त, महापुरूष यहां आते रहे. हाल के इतिहास में गाडगे महाराज और राष्ट्र संत तुकडोजी महाराज ने यहां समाज प्रबोधन की प्रेरणा ली.
1975 में नवनिर्माण का शिलान्यास
बडनेरा के सतपुरूष वंदनीय दादा शास्त्री भाडेकर की प्रेरणा से 16 फरवरी 1975 को मंदिर के नवनिर्माण का शिलान्यास वसंत पंचमी के मुहूर्त में जीर्णोध्दार समिति स्थापित कर किया गया. तत्पश्चात सभा मंडप, प्रार्थना मंदिर, परकोट, धर्मशाला, पाकगृह, भव्य भोजन कक्ष, तीन महाद्बार एवं मुख्य मंदिर का 71 फीट उंचा निर्माण आज भी अनवरत शुरू है. शिवभक्तों के लिए आध्ाुनिक सुविधाओं का कार्य जारी है. भव्य प्रसादालय की तीन मंजिला इमारत का निर्माण शुरू हैं.
इतिहास का साक्षीदार जागृत देवस्थान
श्री कोंडेश्वर मंदिर 5 हजार वर्ष पुरातन है. स्कंद पुराण में इसकी कथा का उल्लेख है. मां पार्वती ने भगवान शंकर को पति के रूप में प्राप्त करने सोमवार व्रत का उद्यापन यहां किया था. अघोर ऋषि ने भगवान महादेव के सर्वाधिक प्रिय रूद्र सूक्त की रचना यहां की. कौंडण्य ऋषि के तप से प्रसन्न होकर भगवान श्री कोंडेश्वर ने दर्शन दिए और वरदान दिए. कोंडेश्वर महादेव के दर्शन से धर्म, अर्थ,काम, मोक्ष प्राप्त होते हैं. यहां सीधी सूंड के सिध्दी विनायक गणपति भी विराजमान हैं.

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