अमरावतीमहाराष्ट्र

युवाओं को उभरती शिक्षा की जरूरत

सप्तखंजिरी वादक सत्यपाल महाराज के शिष्य वेदांतपाल मुंदाने का कथन

* शिवाजी कला व वाणिज्य महाविद्यालय रासेयो का श्रम संस्कार शिविर हुआ
अमरावती/दि.1 – महाराष्ट्र संतों की भूमि है. भारतीय संस्कृति एकमात्र ऐसी संस्कृति है, जो प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक अनेक विदेशी शासनों के आक्रमणों का सामना करने के बावजूद भी विश्व में बची हुई है. यहां के महान संतों ने हमेशा आम लोगों को एक साथ लाया, भक्ति के साथ-साथ सामाजिक जागरूकता की भावना को बढ़ावा दिया और स्नेह की भावना पैदा की. सामाजिक सद्भाव जो आज तक जीवित है. इसका एकमात्र कारण हमारे पूर्वजों से प्राप्त संतों और महापुरुषों के विचारों की विरासत है. यही कारण है कि हमारी संस्कृति इसमें दृढ़ता से निहित है. इस विचारधारा को संरक्षित रखना आवश्यक है, ऐसा प्रबोधनकार सत्यपाल महाराज के शिष्य वेदांतपाल मुंदाने ने कहा.
श्री शिवाजी कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय राष्ट्रीय सेवा योजना के अंतर्गत विशेष श्रम संस्कार शिविर में प्रसिद्ध सप्तखंज़री वादक एवं प्रबोधनकार सत्यपाल महाराज के शिष्य वेदांतपाल मुंदाने ने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि यदि गांव में मानवीय मूल्यों का विकास हो तो यह राष्ट्र निर्माण के लिए प्रेरणादायी होगा तथा युवाओं को आज के समय में उभरती हुई शिक्षा की आवश्यकता है. अमरावती तहसील के सालोरा खुर्द में सप्त खंजडी वादक वेदांतपाल महाराज मुंदाने द्वारा प्रबोधन कार्यक्रम का आयोजन किया गया. संत महापुरूषों के विचारों पर आधारित, उन्होंने अपनी अनूठी हास्य शैली से विद्यार्थियों को मंत्रमुग्ध कर दिया तथा नशा मुक्ति, संविधान जागरूकता, दहेज प्रथा, शिक्षा, रोजगार, महिला सशक्तिकरण, युवा जागरूकता, स्वास्थ्य संस्कृति आदि विषयों पर अपने विचार व्यक्त किए. इस अवसर पर हारमोनियम वादक गौरव सोनटक्के, तबला वादक राजेश गवली, गायक ह. भ. प. संतोष महाराज केतकर, वेदांत गणोरकर, निखिल पुनसे,आदीयोंने साथ-संगत की .इस कार्यक्रम में रासेयो महिला कार्यक्रम अधिकारी प्राध्यापक अपर्णा सरोदे, रासेयो सहायक कार्यक्रम अधिकारी प्राध्यापक रूपेश फसाटे, रासेयो कार्यक्रम अधिकारी प्राध्यापक डॉ. मनोज जोशी, रासेयो कार्यक्रम अधिकारी प्राचार्य डॉ. अंबादास कुलट, प्राध्यापक डॉ. मिरगे उपस्थित थे.
वेदांत पाल महाराज ने आगे कहा, ‘हत्ती सावरी गवती दोर, मुंग्या ही सर्पाशी करिती जर्जर, व्याघ्रसिंहासी फाडीती हुशार, रान कुत्रे संघटोनी’. यदि हम स्वयं को संगठित करें और इस ग्रामगीता के संदेश के अनुसार महान संतों के विचारों को कार्य में लाएं, तो हम निश्चित रूप से गांव में प्रगति हासिल कर सकते हैं. शिविर में उपस्थित सभी विद्यार्थी, शिक्षक एवं ग्रामवासियों ने कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए अथक प्रयास किए.

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