राज्य में 450 से अधिक पर पहुंची बाघों की संख्या, व्याघ्र प्रकल्प केवल 6
पुराने प्रकल्पों के भरोसे ही चल रहा कामकाज, मानव-वन्यजीव संघर्ष के मामले बढ रहे
अमरावती /दि.17- राज्य में केवल 6 व्याघ्र प्रकल्प अस्तित्व में है. विदर्भ में बाघों की बढती संख्या को देखते हुए मध्यप्रदेश की तर्ज पर महाराष्ट्र में और 2 व्याघ्र प्रकल्पों की निर्मिति होना मौजूदा समय की जरुरत है. परंतु इसे लेकर वनविभाग द्वारा कोई प्रयास नहीं किया जा रहा. इसकी वजह से इंसानों एवं वन्यजीवों के बीच संघर्ष के बढने का खतरा बना हुआ है.
बता दें कि, राज्य में स्थित 6 व्याघ्र प्रकल्पों में से विदर्भ में मेलघाट, पेंच, नवेगांव-नागझिरा, बोर व ताडोबा ऐसे पांच व्याघ्र प्रकल्प है. वहीं पश्चिम महाराष्ट्र में एकमात्र सह्याद्री व्याघ्र प्रकल्प है. इन 6 में से 4 व्याघ्र प्रकल्प सन 1975 से अस्तित्व में है. इस समय विदर्भ क्षेत्र में बाघों की संख्या 450 के आसपास जा पहुंची है. जिसमें से लगभग 100 के आसपास बाघ इस वक्त व्याघ्र प्रकल्पों के बाहरी परिसर में रह रहे है. जिसकी वजह से इंसानों एवं वन्य पशुओं के बीच आये दिन टकराव वाली स्थिति बनती है. जारी वर्ष के दौरान ही 1 जनवरी से 10 दिसंबर की कालावधि के बीच 12 बाघों की मौत हुई है. बाघों द्वारा किये गये हमलों में भी दर्जनों लोगों की जाने जा चुकी है.
विदर्भ क्षेत्र में बाघों की बढती संख्या को ध्यान में रखते हुए तत्कालीन वनमंत्री सुधीर मुनगंटीवार ने बाघों का स्थलांतरण किये जाने से संबंधित निर्णय लिया था. जिसके चलते चंद्रपुर से 15 बाघ गुजरात राज्य में भेजे जाने वाले थे. परंतु इसे आगे चलकर कोई गति नहीं मिली.
* और दो व्याघ्र प्रकल्पों की जरुरत
विदर्भ के वनक्षेत्र को ध्यान में रखते हुए और जंगल परिसर से बाहर बाघों की बढती संख्या को देखते हुए कहा जा सकता है कि, विदर्भ में और दो व्याघ्र प्रकल्पों का निर्माण किया जा सकता है. यवतमाल जिले के टिपेश्वर अभयारण्य में बाघों की संख्या काफी अधिक बढ गई है और चंद्रपुर के जंगलों से निकले बाघों ने टिपेश्वर के जंगल क्षेत्र को अपना अधिवास बना रखा है. ऐसे में यदि टिपेश्वर अभयारण्य को व्याघ्र प्रकल्प का दर्जा मिलता है, तो इससे बाघों को संरक्षण मिलेगा. टिपेश्वर अभयारण्य की अधिसूचना सन 1997 में जारी की गई थी और इस अभयारण्य के तहत 148 चौरस किमी का वन परिसर आता है.
इसके साथ ही वर्ष 2012 में अभयारण्य बने उमरेड-कर्हांडला अभयारण्य में 200 चौरस किमी वन परिसर का समावेश है. इसके साथ भामरागढ व प्राणहिता अभयारण्य को जोडते हुए यदि इस परिसर को व्याघ्र प्रकल्प का दर्जा दिया जाता है, तो नागपुर व चंद्रपुर परिसर के बाघों का इस क्षेत्र में अधिवास बन सकता है. जिससे बाघों की संख्या वृद्धि के लिए पोषक वातावरण बनेगा.
* टायगर कॉरिडोअर का हो सकता है निर्माझा
उमरेड-कर्हांडला, टिपेश्वर तथा भामरागढ-प्राणहिता अभयारण्य को व्याघ्र प्रकल्प का दर्जा मिलने पर ताडोबा, पेंच, बोर, नवेगांव-नागझिरा जैसे व्याघ्र प्रकल्पों के साथ बाघों को जोडने वाला कॉरिडोअर तैयार हो जाएगा. जिसके चलते आरक्षित जंगल परिसर में बाघों की आवाजाही सहज हो सकेगी तथा बाघों का इंसानों के साथ टकराव टालने में मदद होगी. उल्लेखनीय है कि, मध्यप्रदेश में 8 व्याघ्र प्रकल्प है. जहां पर बाघों की संख्या के बढने पर मध्यप्रदेश की सरकार ने नये व्याघ्र प्रकल्पों का निर्माण किया है. लेकिन महाराष्ट्र में व्याघ्र प्रकल्प की संख्या विगत कई दशकों से 6 पर ही अटकी हुई है. जबकि महाराष्ट्र में भी बाघों की संख्या तेजी से बढ रही है. जिनके लिए अतिसंरक्षित व संरक्षित अभयारण्यों को उपलब्ध जाने की सख्त जरुरत है.
* नये व्याघ्र प्रकल्पों की निर्मिति को लेकर सरकार की कोई नीति नहीं है. परंतु बाघों की सुरक्षा के लिहाज से कॉरिडोअर तैयार करने का प्रस्ताव विचाराधीन है. जिसके चलते एक व्याघ्र प्रकल्प से दूसरे व्याघ्र प्रकल्प की ओर स्थलांतरण करते समय बाघ पूरी तरह से सुरक्षित रहेगा.
– आदर्श रेड्डी,
वनसंरक्षक, मेलघाट व्याघ्र प्रकल्प.