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जिले में भाजपा के लिए रास्ता नहीं आसान

हर विधानसभा सीट पर प्रत्याशी खोजने की मशक्कत

* चर्चित चेहरों व सशक्त नामों की पार्टी के पास कमी
* चुनावी वैतरणी पार करना अभी से दिखाई दे रहा मुश्किल
अमरावती/दि.17- आगामी लोकसभा व विधानसभा चुनाव होने में अब गिनकर 1 साल का समय बचा हुआ है. ऐसे में सभी राजनीतिक दलों के साथ ही चुनाव लडने के इच्छुकों व्दारा व्यापक जनसंपर्क अभियान छेडते हुए चुनावी तैयारियां शुरु करना अपेक्षित होता है. इसके तहत कई संभावित नामों व चेहरों की संभावित प्रत्याशियों के तौर पर चर्चाएं भी शुरु हो जाती हैं. साथ ही चुनाव लडने के इच्छुकों व्दारा खुद को चर्चा में लाने हेतु कई तरह के हथकंडे भी अपनाए जाते हैं. परंतु विगत माह हुए मंडी ुचुनाव और हालिया संपन्न कर्नाटक राज्य के विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद अमरावती शहर सहित जिले की भाजपा में इस समय लगभग सन्नाटे वाली स्थिति है. साथ ही भाजपाईयों में सबसे बडी समस्या यह है कि उसके पास चुनाव लडने और जीतने में सक्षम रहनेवाले प्रत्याशियों का एक तरह से अकाल है. यह स्थिति अमरावती संसदीय क्षेत्र के साथ-साथ जिले के सभी 8 विधानसभा क्षेत्रों में देखी जा सकती है. जिसमें से कल के अंक में अमरावती संसदीय क्षेत्र सहित अमरावती व बडनेरा विधानसभा क्षेत्र के बारे में स्थिति का अवलोकन किया गया. वहीं आज जिले के अन्य 7 विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा की स्थिति का अवलोकन करने के संदर्भ में प्रयास किया जाएगा.
* धामणगांव विधानसभा क्षेत्र है एकमात्र उम्मीद
उल्लेखनीय है कि विगत विधानसभा चुनाव में भाजपा को जिले के 8 विधानसभा क्षेत्रों में से केवल धामणगांव रेलवे विधानसभा क्षेत्र में सफलता प्राप्त हुई थी. जहां पर भाजपा प्रत्याशी प्रताप अडसड ने चुनाव जीता था. विगत लंबे समय से चांदूर रेलवे व धामणगांव रेलवे क्षेत्र में अडसड परिवार ही भाजपा का झंडाबरदार बना हुआ है. इससे पहले अरुण अडसड भाजपा की ओर से विधानसभा चुनाव लडा करते थे. वहीं अब उनके बेेटे प्रताप अडसड इस क्षेत्र से विधायक हैं. जाहिर है कि, अगले विधानसभा चुनाव में भी धामणगांव रेलवे सीट से प्रताप अडसड ही भाजपा प्रत्याशी होंगे. जिनका मुख्य मुकाबला इस क्षेत्र की राजनीति पर दबदबा रखने वाले कांग्रेस के पूर्व विधायक प्रा. वीरेंद्र जगताप से होगा. वैसे भी इस क्षेत्र में जगताप व अडसड परिवार की राजनीतिक प्रतिद्बंदिता काफी पुरानी है. यहां पर यह नहीं भूला जाना चाहिए कि हाल ही में धामणगांव रेलवे विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में शामिल रहनेवाली धामणगांव रेलवे, चांदुर रेलवे व नांदगांव खंडेश्वर फसल मंडियों के चुनाव हुए, जिसमें कांग्रेस व जगताप समर्थक पैनलों ने शानदार जीत हासिल की. वहीं अडसड गुट को करारी हार का सामना करना पडा. ऐसे में धामणगांव रेलवे विधानसभा क्षेत्र में भाजपा और अडसड परिवार के लिए आगामी विधानसभा चुनाव में जीत का रास्ता आसान नहीं रहेगा.
* तिवसा में यशोमति का किला है अभेद्य
यदि तिवसा विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र का विचार किया जाए, तो इस क्षेत्र में पूर्व विधायक भैयासाहब ठाकुर की बेटी यानी पूर्व पालकमंत्री व कांगे्रेस विधायक यशोमति ठाकुर की अच्छी-खासी पकड है और यशोमति ठाकुर लगातार तीन बार इस क्षेत्र से विधायक निर्वाचित हुई है. इस दौरान यशोमति ठाकुर ने तिवसा से लेकर वलगांव तक फैले अपने निर्वाचन क्षेत्र में प्रत्येक स्थान पर खुद को मजबूत करने का काम किया है. विशेष उल्लेखनीय है कि तिवसा निर्वाचन क्षेत्र में तिवसा तहसील के साथ-साथ मोर्शी व अमरावती तहसीलों के भी कुछ ग्रामीण इलाकों का सामवेश होता है. ऐसे में यशोमति ठाकुर ने तिवसा तहसील के साथ-साथ अमरावती तहसील के ग्रामीण इलाकों में भी अपनी बेहतरीन पहुंच बनाकर रखी है, जिसका असर हाल ही हुए अमरावती व तिवसा कृषि उत्पन्न बाजार समिति के चुनाव में भी दिखाई दिया, जिसके तहत तिवसा में ठाकुर गुट ने क्लिन स्वीप करते हुए सभी 18 सीटों पर चुनाव जीता. लगभग यही स्थिति अमरावती फसल मंडी में भी रही. दोनों ही स्थानों पर भाजपा समर्थित पैनलों को करारी हार के साथ ही असफलता का समाना करना पडा, ऐसे में तिवसा निर्वाचन क्षेत्र में विधायक यशोमति ठाकुर के अभेद्य के किले में सेंध लगाना भाजपा के लिए काफी मुश्किल काम साबित हो सकता है और यह काम करने लायक कोई भी व्यक्ति फिलहाल तिवसा के राजनीतिक पटल पर दिखाई नहीं दे रहा.
हालांकि कुछ समय पहले शिवसेना में हुई दोफाड के बाद शिवसेना के जिला प्रमुख रह चुके राजेश वानखडे ने भाजपा में प्रवेश लिया था. साथ ही प्रवेश के तुरंत बाद से राजेश वानखडे व्दारा यह दावा किया जाने लगा कि, आगामी चुनाव में वे खुद यशोमति ठाकुर के खिलाफ भाजपा प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लडेंगे. लेकिन मुख्य सवाल यह भी है कि, क्या वाकई महज कुछ माह पहले भाजपा में प्रवेश करने वाले राजेश वानखडे को पार्टी व्दारा अपना प्रत्याशी बनाया जाएगा. क्योंकि तिवसा में टिकट की दावेदारी के लिए भाजपा के कई पुराने व समर्पित कार्यकर्ता भी कतार में लगे हुए हैं. जिनकी अनदेखी करना पार्टी के लिए भारी भी पड सकता है.
* मोर्शी-वरुड में डॉ. बोंडे के बाद कौन?
जहां तक मोर्शी-वरुड निर्वाचन क्षेत्र का सवाल है, तो इस क्षेत्र की राजनीति व सहकार में कांगे्रस व राकांपा का काफी पहले से अच्छा-खासा दबदबा रहा. हालांकि बीच में भाजपा प्रत्याशी के तौर पर डॉ. अनिल बोंडे ने यहां से जीत हासिल करने में सफलता प्राप्त की थी. लेकिन इसके लिए भी डॉ. अनिल बोंडे को काफी लंबा प्रयास करना पडा था. क्योंकि डॉ. अनिल बोंडे ने इस निर्वाचन क्षेत्र में पहले शिवसेना पदाधिकारी के तौर पर अपनी राजनीतिक जमीन तैयार की थी. फिर उसी जमीन पर विदर्भ जनसंग्राम नामक पार्टी खडी करने के बाद डॉ. बोंडे भाजपा में आए थे, तब उन्हें यहां सफलता मिली. परंतु भाजपा प्रत्याशी के तौर पर भी डॉ. अनिल बोंडे को पिछले विधानसभा चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी देवेंद्र भुयार के हाथों हार का सामना करना पडा था. वहीं अब डॉ. अनिल बोंडे भाजपा की ओर राज्यसभा सदस्य निर्वाचित हो चुके हैं. ऐसे में सबसे बडा सवाल यह है कि भाजपा की ओर से मोर्शी-वरुड निर्वाचन क्षेत्र में डॉ. अनिल बोंडे के स्थान पर चुनाव लडने वाला प्रत्याशी कौन होगा. दो तहसीलों में फैले इस विधानसभा क्षेत्र में दोनों ही तहसीलों के पदाधिकारियों के लिस खुद को एक दूसरे से बडा दिखाने और आपसी वर्चस्व की प्रतिस्पर्धा विगत लंंबे से है. साथ की पार्टी की टिकट पाने की रेस में भी कई इच्छुक लगे हुए हैं. लेकिन फिलहाल इस निर्वाचन क्षेत्र में देवेंद्र भुयार की चुनौती से पार पाने लायक कोई सशक्त नाम या चेहरा भाजपा में दिखाई नहीं दे रहा है.
* अचलपुर व मेलघाट में कोई गुंजाइश ही नहीं
उधर अचलपुर व मेलघाट विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों में फिलहाल भाजपा अपना कोई प्रत्याशी खडा करने के बारे में सोच भी नहीं सकती. क्योंकि इस समय राज्य में भाजपा व शिंदे गुट की युति चल रही है तथा अचलपुर के विधायक बच्चू कडू व मेलघाट के विधायक राजकुमार पटेल इस समय शिंदे गुट के साथ यानी अब वें भाजप के लिए सहयोगी विधायक की भूमिका में है. यदि आगामी विधानसभा चुनाव तक भाजपा, शिंदे गुट व प्रहार जनशक्ति पार्टी इन तीनों पक्षोें के बीच इसी तरह का राजनीतिक समीकरण व तारतम्य बना रहता है, तो निश्चित तौर पर इन दोनों विधानसभा सीटों पर भाजपा को बच्चू कडू व राजकुमार पटेेल की दावेदारी का समर्थन करने की भूमिका अपनानी होगी. वैसे भी अचलपुर व चांदुर बाजार इन दो तहसीलों का समावेश रहनेवाले अचलपुर निर्वाचन क्षेत्र से लगातार पांच बार चुनाव जीतकर विधायक निर्वाचित होने वाले बच्चू कडू की चुनौती से निपटना इस समय अंसभव सी दिखाई देने वाली चुनौती है, जिससे पार पाना आसान नहीं है. वहीं मेलघाट निर्वाचन क्षेत्र में राजकुमार पटेल ने हमेशा ही अपनी मजबूत पकड को साबित किया है. साथ ही मेलघाट में अलग ही तरह के राजनीतिक समीकरण चलते है और हर चुनाव में आदिवासियों से संबंधित स्थानीय मुद्दे हावी रहते है. विगत 5 वर्षो के दौरान विधायक राजकुमार पटेल ने इस क्षेत्र में काफी काम किए हैं. जिसके चलते पटेल के सामने फिलहाल भाजपा सहित किसी भी दल के पास कोई सशक्त प्रत्याशी नजर नहीं आता.
* दर्यापुर पर रह सकता है शिंदे गुट का दावा
इसके अलावा दर्यापुर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र फिलहाल कांगे्रस के कब्जे में है और विगत 5 वर्षो के दौरान यहां के कांग्रेस नेताओं ने खुद को राजनीतिक के साथ-साथ सहकार क्षेत्र में पूरी ताकत के साथ स्थापित किया है. इस समय जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंक के अध्यक्ष पद पर दर्यापुर से वास्ता रखने वाले सुधाकर भारसाकले विराजमान है. साथ ही इसी समय जिला परिषद सदस्य रहनेवाले बलवंत वानखडे ने विगत विधानसभा चुनाव में तत्कालीन भाजपा विधायक रमेश बुंदिले को पराजीत करते हुए विधायक बनने में सफलता प्राप्त की थी. यहां यह भी विशेष उल्लेखनीय है कि दर्यापुर विधानसभा क्षेत्र हमेशा से ही शिवसेना का मजबूत गढ रहा है और वर्ष 2014 में भाजपा व शिवसेना ने अलग-अलग चुनाव लडा था. वहीं कांगे्रस व राकांपा ने भी अलग-अलग चुनाव लडा था. ऐसे में वोटों का बंटवारा होने का फायदा भाजपा को मिला था. जबकि इससे पहले इस सीट पर भाजपा-सेना युती के दौरान शिवसेना व्दारा प्रत्याशी खडा किया जाता था. साथ ही अमरावती जिले में दर्यापुर ही वह क्षेत्र है, जहां पर शिवसेना में हुई बगावत व दोफाड का सबसे पहले व सबसे अधिक असर दिखाई दिया था. ऐसे में स्पष्ट है कि दर्यापुर में शिंदे गुट वाली शिवसेना व्दारा विधानसभा सीट पर भाजपा-शिंदे गुट यती रहने के चलते अपना दांवा ठोका जाएगा. यानी दर्यापुर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में भी फिलहाल भाजपा के हाथ खाली दिखाई दे रहे हैं.

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