
* डॉ. शशांक दुबे के निवास पर सजी काव्य महफिल
अमरावती/दि.29– हाल ही में शहीद दिवस व होली के पर्व का निमित्त साधते हुए सप्तरंगी हिंदी साहित्य संस्था के सहयोग से डॉ. शशांक दुबे के निवासस्थान पर काव्यगोष्टी का आयोजन किया गया. जिसमें उपस्थित कवियों ने एक से बढकर एक रचनाएं सुनाते हुए काव्य महफिल में समां बांध दिया.
इस समय मंच पर काव्यगोष्टी के आयोजक डॉ. शशांक दुबे की माताजी श्रीमती शीला दुबे, सप्तरंगी संस्था के अध्यक्ष शंकर भूतडा व उपाध्यक्ष नरेंद्र देवरणकर बतौर प्रमुख अतिथि उपस्थित थे. कार्यक्रम में सर्वप्रथम संतोष हांडे ने आयोजन की रुपरेखा स्पष्ट करते हुए प्रस्तावना रखी. जिसके उपरांत दीपक सूर्यवंशी ‘दीपक’ ने अपनी गजलों के जरिए सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया. दीपक सूर्यवंशी द्वारा सुनाई गई गजल ‘इन्सानियत से कोसों दूर भागता है आदमी, दूसरों की बस अमानत ताकतां है आदमी’ को सभी ने पसंद किया. जिसके उपरांत चंद्रभूषण किल्लेदार ने ‘सर्दी का समापन, गर्मी का आगमन, चहूं ओर आनंदित है वातावरण’ कविता सुनाकर सभी को नए साल में आनंदित रहने की बात कही. पश्चात कवियित्री बरखा शर्मा ने अपनी धीरगंभीर कविता सुनाई और सभी को सोचने पर विवश कर दिया. बरखा शर्मा ने सुनाया कि, ‘जब विक्षिप्त महिला कौर बांटकर पास मंडराते कौवे, गाय व कुत्ते की क्षुधा को शांत करती है, तब वह अन्नपूर्णा बन जाती है.’ इसके बाद विख्यात हास्य कवि मनोज मद्रासी ने अपनी चुनिंदा हास्य रचनाएं सुनाते हुए सभी को खूब हंसाया. मनोज मद्रासी की कविता ‘अपने विचार कम शब्दों में कैसे बोलें, इस विषय पर एक विचारक दो घंटे तक बोले’ को अच्छा-खासा पसंद किया गया.
साथ ही इस काव्यगोष्टी कवि संतोष हांडे ने अपनी हिंदी व मराठी की कविताएं सुनाकर जमकर वाह वाही लूटी और सुनाया कि, ‘कौन हूं मैं आज फिर से मुझे पहचानने की जरुरत है, बेरंग हो चूकी इस दुनिया में फिर से रंग भरने की जरुरत है.’ इस समय कवि दीपक दुबे ‘अकेला’ ने लोगों के दोगलेपन पर प्रकाश डालते हुए सुनाया कि, ‘कल जो कहते थे जाईए-जाईए, आज कहने लगे आईए-आईए.’ साथ ही शायरा नरगीस अली ने ‘मुझ पे इल्जाम लगाओंगे, तो पछताओगे, मेरी आवाज दबाओगे, तो पछताओगे’ गजल सुनाते हुए सभी की वाह वाही लूटी.
इस समय पत्रकार व कवि चंद्रप्रकाश दुबे ‘असीम’ ने शहीदों को भूला दिए जाने की विडंबना पर रचना प्रस्तुत करते हुए सुनाया कि, ‘शहीदों की चिताओं पर अब नहीं लगते मेले, प्लस्तर उखड गए समाधियों के, बच्चे खेलते है धेले.’ साथ ही उन्होंने अपने कुछ चुनिंदा मुक्तक भी सुनाए और उपस्थितों की जमकर वाह वाही लूटी. साथ ही संस्था के पुराने सदस्य हीरालाल चौबे ने अपनी कविताओं के जरिए महफिल में चार चांद लगा दिए. इसके अलावा प्रा. अश्विन वाजपेयी ने कोविडकाल की यादों को ताजा करते हुए सुनाया कि, ‘लोक परेशान लॉकडाऊन लगने से, बीवी परेशान मेरे कवि बनने से.’ इस समय मोती हरजीकर ने भी अपनी रचनाओं के जरिए प्यार का संदेश दिया. साथ ही इस समय लक्ष्मीकांत खंडेलवाल ने भी अपनी सशक्त रचनाओं का लोहा मनवाया.
कार्यक्रम अंतिम चरण में सप्तरंगी हिंदी साहित्य संस्था के उपाध्यक्ष नरेंद्र देवरणकर ‘निर्दोष’ ने अपनी रचनाओं व गजलों से सबका मन मोह लिया. उन्होंने सुनाया कि, ‘रुह के लगाव से उसका उब जाना तय था, वो माहीर था तैराकी में दरिया पार कर गया, मैं प्रेम-प्रेम करता रहा, मेरा डूब जाना तय था.’ पश्चात कार्यक्रम का बेहतरिन संचालन कर रहे प्रितम जौनपुरी ने शहीदों की यादों को ताजा करते हुए कविता सुनाई कि, ‘हंसते-हंसते सुली चढ जाना सबके बस की बात नहीं, खुद ही खुद पर गोली चलाना सबके बस की बात नहीं.’ अंत में सप्तरंगी हिंदी साहित्य संस्था के अध्यक्ष शंकर भूतडा ने महाकुंभ पर हास्यव्यंग वाली रचना सुनाते हुए सभी को ठहाके लगाने पर मजबुर कर दिया.
इस शानदार काव्यगोष्ठी के अंत में आयोजक डॉ. शशांक दुबे ने सभी के प्रति आभार ज्ञापित किया. इस समय श्रोताओं में रामसजीवन दुबे ‘साजन’, रमेश दुबे, राजेश तिवारी, आनंद ठाकुर, राजेंद्र बघेल, मनोहर तिखिले, राजेश व्यास, गोपाल दुबे, सीमा दुबे, नम्रता दुबे, समर्पित दुबे व अलका देवरणकर आदि सहित अनेकों काव्यप्रेमी उपस्थित थे.