अमरावती

भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता का संवर्धन करने की शक्ति केवल युवाओं में

संत सम्मेलन में जगद्गुुरु स्वामी रामराजेश्वराचार्य का कथन, अक्षरधाम में लाखों श्रद्धालुओं ने की शिरकत

अमरावती/दि.२6 -अहमदाबाद के अक्षरधाम श्री स्वामीनारायण मंदिर में प्रमुख स्वामीजी का जन्मशताब्दी समारोह जगद्गुरू स्वामी श्री रामराजेश्वराचार्यजी की पावन उपस्थिति में संपन्न हुआ. इस महोत्सव में स्वामीजी ने कहा कि, भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता का संवर्धन करने की शक्ति केवल युवाओं में है. प्रधानमंत्री द्वारा १४ दिसंबर को प्रमुख स्वामी नगर का उद्घाटन हुआ. १५ दिसंबर से १५ जनवरी तक चलने वाले इस महोत्सव में ५५ से ६० लाख भाविक सज्जनों की शिरकत होना अपेक्षित हैं. ऐसे भव्य उत्सव में प्रमुखता से संत सम्मेलन का आयोजन रविवार २५ दिसंबर को हुआ. इस कायक्रम में अनंत श्री विभूषित जगतगुरू रामानंदाचार्य स्वामी श्री रामराजेश्वराचार्यजी समर्थ माऊली सरकार मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे. वैश्विक महत्ता रखने वाले अवसर पर ‘युवा शक्ति कलयुगे’ पर स्वामीजी ने विशेष जोर दिया. अपने विचार की गंगधारा को प्रवाहित करते हुए आज के इस आधुनिक विज्ञानयुग में सनातन वैदिक हिंदूधर्म की भारतीय सभ्यता एवम संस्कृति को अखिल विश्व में हिमालय की ऊंचाई तक पहुंचान ेकी क्षमता युवाओं में है और भारतीय सनातन सभ्यता की भगीरथी प्रवाहित केवल युवा ही करेंगे ऐसा द़ृढविश्वास रखते हुए ‘युवाशक्ति कलियुगे, संतशक्ति कलियुगे’ को समझकर युवा साधक में भक्ति का प्रादुर्भाव प्रगट करने का कार्य इस समय स्वामी नारायण संप्रदाय करते हुए दिखाई दे रहा है, ऐसा कहा. जिस तरह से ब्रह्मसूत्र में कहा गया है कि, ज्योतिर्मय ब्रह्म’ इस सूत्र नुसार संतों द्वारा निरंतर सत्य, सत्व और तत्व की अवधारणा कर अनंत की ओर जाने का प्रत्यक्ष प्रमाण एकमात्र स्वामीनारायण संप्रदाय है, इन शब्दों में कार्य की सराहना की. महोत्सव में उपस्थित सभी साधु संतों ने इस कार्य को अपनाकर सामाजिक समरसता महाकुंभ में सम्मिलित होकर विभिन्न राज्य, विभिन्न देशों में विस्तार करने हेतु कार्य करने की आवश्यकता सामने रखी. कार्यक्रम में अखिल भारतीय संत समिति के अध्यक्ष संत अविचलदासजी, अखिल भारतिय अखाडे परिषद के महामंडलेश्वर श्री धर्मदासजी, महामण्डलेश्वर गौरीशंकरदासजी और देश-विदेश के संतो समेत अन्य अखाडों के महामंडलेश्वर, मंडलेश्वर, महंत एवम साधू-संत बड़ी संख्या में उपस्थित थे.

संतों ने निरंतर कार्य करना आवश्यक
‘रामस्य स्वये ईश्वर: रामस्य स्वये नारायण:’ इस गुढतत्व को समझाते हुए स्वामी ने कहा कि, इस जगत में राम ही ईश्वर है और राम ही नारायण है ऐसा जानकर भक्ति का प्रादुर्भाव हर व्यक्ति के मानस में प्रगट होना जरूरी है. ईश्वरभक्ति हर एक के मन में निर्माण हो, इसके लिए साध्ाुसंतों ने निरंतर कार्य करना आवश्यक है.आज के युग में चिंटी की एकता समाज को धारण करने की आवश्यकता है. परिवार और समाज एकत्रित होकर कोई कार्य करें तो सफलता प्राप्त होना सुनिश्चित है. प्रमुख स्वामीजी ने युवा शक्ति को समझते हुए युवा साधकों को जोडकर भारतीय सभ्यता एवम् संस्कृति भगीरथी गंगा अखिल विश्व में प्रवाहित करने का अनमोल कार्य किया है.

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