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नोटबंदी का उद्देश्य रहा अपूर्ण

काला पैसा खत्म हुआ नहीं, भ्रष्टाचार घटा नहीं

कैशलेस की बजाय नकद व्यवहार का प्रमाण बढा

 नोट बंदी को हुए पांच वर्ष पूरे

अमरावती/दि.8- समूचे देश को रात 8 बजे हिलाकर रख देनेवाले नोट बंदी के फैसले को आज सोमवार 8 नवंबर को पूरे पांच वर्ष पूर्ण हो रहे है. इन पांच वर्षों के दौरान नोट बंदी के चलते अपेक्षित रहनेवाला काला पैसा तो बाहर आया नहीं, वहीं नकद व्यवहार पर नियंत्रण पाने में भी सरकार काफी हद तक असफल रही. ऐसे में कहा जा सकता है कि, नोट बंदी अपने मूल उद्देशों से भटक गई और नोट बंदी को ध्यान में रखते हुए तय किये गये उद्देश अब भी अधूरे है.
बता दें कि, देश में काले धन को खत्म करने तथा नकद स्वरूप में होनेवाले बेनामी व्यवहार को रोकने जैसे प्रमुख लक्ष्य नोट बंदी के तहत तय किये गये थे. किंतु इन दोनों उद्देशों की अब तक पूर्तता नहीं हुई है. काले धन के साथ ही नोट बंदी के जरिये भ्रष्टाचार को कम करने का दावा भी सरकार द्वारा किया गया था. किंतु विगत पांच वर्षों के दौरान नोट बंदी की वजह से भ्रष्टाचार कम होने का एक भी सबूत सामने नहीं आया है. नोट बंदी का निर्णय लेने के बाद सरकार द्वारा 2 हजार रूपये मूल्य की गुलाबी नोट बाजार में लायी गयी थी. किंतु यह नोट फिलहाल बाजार और व्यवहार से पूरी तरह गायब हो गई है. साथ ही सार्वजनिक दैनंदिन व्यवहार में 2 हजार की नोटों का प्रयोग शून्य है. इसी तरह केंद्र सरकार व रिजर्व बैंक द्वारा नकद व्यवहार को कम करने पर जोर दिया जा रहा है. किंतु व्यवस्था में नकद चलन का प्रमाण लगातार बढ रहा है. ऐसे में पेमेंट के डिजीटलाईजेशन और विविध व्यवहारों में नकद के प्रयोग पर प्रतिबंध रहने के बावजूद इसमें पूरी तरह से सफलता नहीं मिली है.
उल्लेखनीय है कि, कोई भी फैसला अचानक लेने पर उसके दूरगामी परिणाम दिखाई देते है. नोट बंदी के मामले में भी यहीं हुआ. उस समय चलन से बाहर हुआ पैसा अब तक चलन में लौटा नहीं है. जिसके चलते अर्थ व्यवस्था काफी हद तक नाजूक हो गई है. ऐसे में आरबीआय यानी भारतीय रिजर्व बैंक को बाजार में और अधिक पैसा निवेश करने की जरूरत है. ऐसा वित्त विशेषज्ञों का मानना है.

* क्या कहते है आंकडे

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के आंकडों के मुताबिक नोट बंदी के पांच वर्ष पूरे होने के बावजूद भी नकद व्यवहारों का प्रमाण कम होने की बजाय बढ गया है. साथ ही देश में लोगों के पास रहनेवाली करन्सी का स्टॉक रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है. 8 अक्तूबर 2021 को नागरिकों के पास 28.30 लाख करोड रूपयों का स्टॉक दर्ज किया गया था. जबकि 4 नवंबर 2016 को यहीं स्टॉक 17.97 लाख करोड रूपये था. जिसकी तुलना में आज चलन में रहनेवाली करन्सी का प्रमाण 57.48 फीसद से अधिक है.

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