राणा व खोडके की अदावत एक बार फिर उफान पर
मनपा चुनाव में दोनों ओर से दिखेगा जबरदस्त ‘टशन’

* दोनों गुट एक-दूसरे से निपटाएंगे अपना पुराना हिसाब-किताब
* दोनों ओर से मनपा चुनाव अपने अकेले के दम पर लडने के हो चुके दावे
अमरावती /दि.19- इस समय अमरावती शहर में महानगर पालिका के आगामी चुनाव को लेकर सरगर्मियां व सरगोशियां तेज होती दिखाई दे रही हैं. साथ ही साथ अब नेताओं के तेवर भी फीके होते दिखाई दे रहे हैं, जिसके चलते अमरावती में अब तक झील के पानी का शांत दिखाई देनेवाला राजनीतिक माहौल अब उफनती नदी की तरह उबाल व उछाल मारने लगा है. जिसकी शुरुआत इस समय केंद्र व राज्य की सत्ता में रहनेवाली महायुति से होती दिखाई दे रही है, क्योंकि विगत दो दिनों के दौरान महायुति में शामिल भारतीय जनता पार्टी व अजीत पवार गुट वाली राकांपा जैसे दो प्रमुख घटक दलों के नेता एक-दूसरे के खिलाफ म्यान से तलवार बाहर निकालते दिखाई दे रहे हैं.
ध्यान दिला दें कि, जहां दो दिन पहले जिले की पूर्व सांसद और भाजपा नेत्री नवनीत राणा ने भाजपा के नवनियुक्त शहराध्यक्ष डॉ. नितिन धांडे के पदग्रहण समारोह में खुला ऐलान किया था कि, भले ही राज्य में तीन दलों का समावेश रहनेवाली महायुति की सरकार है. लेकिन अमरावती महानगर पालिका के चुनाव में भाजपा को किसी भी दल के साथ युति करने की जरुरत नहीं है और भाजपा अपने अकेले के दम पर चुनाव लडते हुए स्पष्ट बहुमत लाने की स्थिति में है, जिसके चलते अगला महापौर भाजपा का ही होगा. वहीं दूसरी ओर गत रोज अजीत पवार गुट वाली राकांपा की शहर कार्यकारिणी के पद वितरण सम्मेलन को संबोधित करते हुए पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष व विधायक संजय खोडके ने भी राणा का नाम लिए बिना कहा कि, अगर महायुति में ‘वे लोग’ शामिल रहते हैं, तो राकांपा मनपा चुनाव के लिए महायुति का हिस्सा नहीं रहेगी और राकांपा द्वारा अपने अकेले के दम पर चुनाव लडा जाएगा. साथ ही अमरावती का अगला महापौर राकांपा से ही होगा.
इन दोनों घटनाक्रमों से स्पष्ट हो गया है कि, एक-दूसरे के धूर प्रतिद्वंदी रहनेवाले खोडके दंपति व राणा दंपति एक बार फिर एक-दूसरे के आमने-सामने आने के लिए तैयार हैं, जिसके चलते मनपा चुनाव में दोनों गुटों के बीच जबरदस्त टशन दिखाई दे सकता है तथा दोनों ही गुट एक-दूसरे के साथ बरसों से चला आ रहा अपना पुराना हिसाब-किताब चुकता करने का पूरा प्रयास जरुर करेंगे.
* वर्ष 2009 से चली आ रही खुन्नस
बता दें कि, राणा दंपति और खोडके दंपति के बीच राजनीतिक खुन्नस की शुरुआत वर्ष 2009 के विधानसभा चुनाव से चली आ रही है. वर्ष 2004 के विधानसभा चुनाव में बडनेरा निर्वाचन क्षेत्र से विधायक निर्वाचित हुई राकांपा नेत्री सुलभा खोडके को वर्ष 2009 के विधानसभा चुनाव के समय तब राजनीति में बेहद नए-नवेले रहनेवाले युवा स्वाभिमान पार्टी के रवि राणा ने पराजित कर दिया था. साथ ही साथ सुलभा खोडके को वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव में भी रवि राणा के हाथों लगातार दूसरी बार हार का सामना करना पडा था. जिसके बाद वर्ष 2019 का विधानसभा चुनाव सुलभा खोडके ने बडनेरा की बजाए अमरावती विर्वाचन क्षेत्र से लडा और जीता था. ऐसे में कहा जा सकता है कि, रवि राणा के हाथों लगातार दो बार विधानसभा चुनाव में हार का सामना करने की वजह से खोडके दंपति ने उन्हें अपना राजनीतिक प्रतिद्वंदी मानते हुए उनके प्रति अपने मन में खुन्नस पाल ली थी. जो अब तक चली आ रही है.
* वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में बढी थी अदावत
यहां यह भी याद दिलाया जा सकता है कि, वर्ष 2014 में विधायक रवि राणा की पत्नी नवनीत राणा ने पहली बार लोकसभा चुनाव लडा था, जिन्हें तब कांग्रेस-राकांपा आघाडी के तहत राकांपा द्वारा घडी चुनाव चिन्ह के साथ अपना अधिकृत प्रत्याशी घोषित किया गया था. जिसका खोडके दंपति सहित उनके समर्थकों ने पुरजोर विरोध किया था और पार्टी नेतृत्व के फैसले को अमान्य करते हुए नवनीत राणा के पक्ष में काम व प्रचार करने से साफ इंकार भी कर दिया था. जिसके चलते खोडके दंपति व उनके समर्थकों को पार्टी प्रमुख शरद पवार द्वारा पार्टी से निष्कासीत कर दिया था. ऐसे में खोडके दंपति और राणा दंपति के बीच राजनीतिक अदावत काफी अधिक बढ गई थी. यद्यपि उस चुनाव में राकांपा प्रत्याशी नवनीत राणा को हार का सामना करना पडा था और खोडके दंपति अगले पांच वर्ष तक राकांपा से बाहर भी रहे. परंतु उसके बावजूद दोनों खेमों के बीच अदावत जारी रही.
* सन 2019 में भी राणा के खिलाफ तटस्थ रहा खोडके गुट
खास बात यह भी रही कि, वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में नवनीत राणा ने एक बार फिर हिस्सा लिया. परंतु इस बार वे निर्दलीय प्रत्याशी थी और उन्हें कांग्रेस-राकांपा की आघाडी ने अपना समर्थन घोषित किया था. परंतु उस समय कांग्रेस के प्रदेश महासचिव रहनेवाले संजय खोडके ने एक बार फिर राणा की दावेदारी का विरोध करते हुए खुद को चुनाव से अलग रखने का निर्णय लिया था और वे पूरी तरह से तटस्थ भूमिका में थे. लेकिन इस बार नवनीत राणा ने लोकसभा चुनाव में जीत हासिल और वे सांसद निर्वाचित हुई. वहीं इसके कुछ ही समय बाद हुए विधानसभा चुनाव में सुलभा खोडके ने कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर जीत हासिल की और वे अमरावती निर्वाचन क्षेत्र की विधायक चुनी गई. इस समय तक संजय खोडके की एक बार फिर कांग्रेस से राकांपा में वापसी हो चुकी थी और उन्हें राकांपा में प्रदेश उपाध्यक्ष का पद भी मिल गया था. जिसके चलते अमरावती शहर की राजनीति में खोडके दंपति व राणा दंपति के तौर पर सत्ता के दो केंद्र बन चुके थे. जिनके बीच आपस में कोई सीधा ताल्लुक नहीं रहने के बावजूद राजनीतिक प्रतिद्वंदिता जारी रही.
* सन 2024 के लोकसभा व विधानसभा चुनाव में भी जारी रही खुन्नस
खास बात यह रही कि, जून 2022 के बाद राज्य की राजनीति में काफी बडी उथल-पुथल हुई. जब एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना के भीतर बगावत हुई और शिंदे सेना व भाजपा ने हाथ मिलाकर महाविकास आघाडी को सत्ता से बाहर करते हुए राज्य में महायुति की सरकार बनाई. साथ ही अगले एक वर्ष के भीतर राकांपा में भी बगावत हुई और राकांपा नेता अजीत पवार ने अपने समर्थक विधायकों के साथ महायुति से हाथ मिला लिया और वे सरकार में भी शामिल हुए. इस समय खोडके दंपति ने राकांपा नेता अजीत पवार गुट का साथ दिया और वे भी महायुति में शामिल हुए. परंतु इसके बावजूद सन 2024 के लोकसभा चुनाव दौरान खोडके दंपति ने तब महायुति की ओर से भाजपा प्रत्याशी रहनेवाली नवनीत राणा के प्रचार से एक बार फिर खुद को दूर व अलग ही रखा. इस चुनाव में भाजपा प्रत्याशी नवनीत राणा को हार का सामना करना पडा था. वहीं इसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में अमरावती निर्वाचन क्षेत्र से सुलभा खोडके को अजीत पवार गुट वाली राकांपा के कोटे से महायुति का प्रत्याशी बनाया गया था और इस बार राणा गुट ने नवनीत राणा की हार का बदला लेने के लिए सुलभा खोडके के खिलाफ चुनाव लडनेवाले भाजपा के बागी प्रत्याशी जगदीश गुप्ता के पक्ष में खुलकर काम किया था. हालांकि इसके बावजूद जगदीश गुप्ता तीसरे स्थान पर रहे और राकांपा प्रत्याशी सुलभा खोडके विधायक निर्वाचित हुई. ऐसे में दोनों गुटों के बीच प्रतिद्वंदिता अब भी जारी है.
* अब होगा आमने-सामने का टकराव
इसे समय का फेर ही कहा जा सकता है कि, किसी समय दो विपरित विचारधाराओं के साथ खडे रहनेवाले राणा दंपति व खोडके दंपति इस समय महायुति के तहत एक ही खेमे में हैं, जिसके तहत जहां एक ओर सुलभा खोडके इस वक्त अजीत पवार गुट वाली राकांपा की टिकट पर अमरावती से महायुति प्रत्याशी के तौर पर विधायक निर्वाचित हैं. वहीं दूसरी ओर महायुति का घटक दल रहनेवाली युवा स्वाभिमान पार्टी की ओर से रवि राणा बडनेरा निर्वाचन क्षेत्र के विधायक है. साथ ही साथ महायुति के तहत अजीत पवार गुट वाली राकांपा के कोटे से संजय खोडके भी विधान परिषद में सदस्य निर्वाचित हो चुके हैं और पिछला लोकसभा चुनाव भाजपा प्रत्याशी के तौर पर लडकर हार जानेवाली पूर्व सांसद नवनीत राणा इस समय भाजपा की स्टार प्रचारक हैं. साथ ही साथ उन्होंने भाजपा के शहराध्यक्ष व जिलाध्यक्ष पद की नियुक्तियों में अपना दबदबा भी स्थापित किया है. ऐसे में उम्मीद जताई जा रही थी कि, यदि मनपा का चुनाव महायुति के सभी घटक दलों द्वारा साथ मिलकर लडा जाता है, तो राणा दंपति व खोडके दंपति को आपसी प्रतिद्वंदिता भुलाते हुए एक साथ आना होगा. परंतु हैरतअंगेज तरीके से पूर्व सांसद नवनीत राणा ने मनपा का चुनाव भाजपा द्वारा अपने अकेले के दम पर लडने का खुला ऐलान किया. जबकि महायुति में खुद उनके पति व विधायक रवि राणा की युवा स्वाभिमान पार्टी भी शामिल है. वहीं दूसरी ओर पूर्व सांसद नवनीत राणा द्वारा की गई घोषणा का जवाब गत रोज विधायक संजय खोडके की ओर से आया. जब विधायक संजय खोडके ने राणा दंपति का नामोल्लेख किए बिना स्पष्ट किया कि, यदि मनपा चुनाव के लिए महायुति में राणा दंपति व युवा स्वाभिमान पार्टी भी शामिल रहते हैं, तो अजीत पवार गुट वाली राकांपा महायुति में शामिल रहने की बजाए अपने अकेले के दम पर चुनाव लडेगी. जिसका सीधा मतलब है कि, इस बार मनपा चुनाव के समय खोडके दंपति व राणा दंपति के बीच आमने-सामने का सीधा टकराव दिखाई देगा. जिसे लेकर अभी से अच्छी-खासी उत्सुकता देखी जा रही है और उम्मीद जताई जा रही है कि, इस बार मनपा चुनाव के बहाने खोडके गुट व राणा गुट के बीच रोमांचक जोर आजमाईश दिखाई दे सकती है.