अमरावतीमहाराष्ट्र

भगवान श्रीकृष्ण- रूख्मिणी विवाह की झांकी ने श्रोताओं का मन मोह लिया

सतीधाम मंदिर में श्रीमद भागवत कथा सप्ताह का पांचवा दिन

* माहेश्वरी महिला मंडल का आयोजन
अमरावती/दि. 1– भगवान श्रीकृष्ण और रूख्मिणी विवाह की कहानी अनूठी हैं. रूख्मिणी बिना देखे ही श्रीकृष्ण को चाहने लगी थी. जब उनका विवाह शिशुपाल से तय हुआ तो कृष्ण रूख्मिणी का हरण करके द्बारिका ले आए. श्रीकृष्ण को पता चला कि रूख्मिणी का विवाह उनकी इच्छा के विरूध्द किसी ओर के साथ हो रहा है तब उन्होंने रूख्मिणी से विवाह रचा लिया. कहते है कि श्रीकृष्ण ने राधा से इसलिए विवाह नहीं किया क्योंकि दोनों के बीच आध्यात्मिक प्रेम था. इस कथा को कथावाचक बालव्यास पं. अक्षय अनंत गौड महाराज ने अपने शब्दों में प्रस्तुत कर श्रीकृष्ण रूख्मिणी विवाह की सुंदर झांकी प्रस्तुत की. इस झांकी ने सभी श्रोताओं का मन मोह लिया.
स्थानीय रायली प्लॉट स्थित सतीधाम मंदिर में माहेश्वरी पंचायत अंतर्गत माहेश्वरी महिला मंडल द्बारा भव्य श्रीमद भागवत कथा ज्ञानयज्ञ सप्ताह का आयोजन किया जा रहा हैं. जिसमें सोमवार को कथा के पांचवे दिन कथा वाचक बालव्यास अक्षय अनंत गौड महाराज ने भगवान श्रीकृष्ण और रूख्मिणी के विवाह के प्रसंग को लेकर कथा श्रवण करवाई . पं. गौड महाराज ने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण ने किन परिस्थितियों ने माता रूक्मिणी का हरण कर उन्हें विवाह पंडाल से ले गये थे. इसके पीछे की कहानी को दर्शाते हुए बालव्यास ने कहा कि विदर्भ देश के राजा भीष्मक की पुत्री रूख्मिणी बुध्दिमान, सुंदर और सरल स्वभाव वाली थी.
पुत्री के विवाह के लिए पिता भीष्मक योग्य वर की तलाश कर रहे थे. राजा के दरबार में जो कोई भी आता वह श्रीकृष्ण के साहस और वीरता के प्रशंसा करता. कृष्ण की वीरता की कहानियां सुनकर देवी रूख्मिणी ने उन्हें मन ही मन अपना पति मान लिया था. तय कर लिया था कि वह कृष्ण से ही विवाह करेगी. राजा भीष्मक के पुत्र रूख्मी का खास मित्र चेतीराज नरेश, दमघोष का पुत्र शिशुपाल रूख्मिनी से विवाह करना चाहता था. रूख्मी के कहने पर राजा ने शिशुपाल से रूख्मिनी का विवाह तय कर दिया. लेकिन रूख्मिणी केवल श्रीकृष्ण के अलावा किसी को भी अपने पति के रूप में स्वीकार करना नहीं चाहती थी. उन्होंने अपने प्रेम की बात एक संदेश के जरिए श्रीकृष्ण को पहुंचाई.
श्रीकृष्ण को जब ये बात पता चली तो वे विदर्भ राज्य पहुंचे. श्रीकृष्ण ने भी रूख्मिणी के बारे में बहुत कुछ सुन रखा था. शिशुपाल जब विवाह के लिए द्बार पर आया तो कृष्ण ने रूख्मिणी का हरण कर लिया. इसके बाद श्रीकृष्ण, शिशपाल और रूख्मी के बीच भयंकर युध्द हुआ और इस युध्द में भगवान श्रीकृष्ण ने विजयी हुए. भगवान श्रीकृष्ण रूख्मिणी देवी को द्बारकाधीश ले आए और यही उनका विवाह हुआ. कथास्थल पर भगवान श्रीकृष्ण और देवी रूख्मिणी के विवाह के प्रसंग को लेकर झांकी साकार की गई थी. जिसमें रूख्मिणी की भूमिका चांदनी सोमानी और कृष्ण की भूमिका प्रीतम मूंधडा तथा गोपिका की भूमिका पूजा अटल, प्रतीक्षा टवानी, खुशी टवानी, परि टवानी, कृष्ण की भूमिका में ईशा मालानी, राधा की भूमिका में रूपल राठी, कृष्ण की भूमिका में पूजा अटल का सहभाग रहा.
सतीधाम मंदिर में रात को हवन आरंभ हुआ. बालव्यास महाराज की उपस्थिति में हवन की विधि पूर्ण की गई. इस समय कथास्थल पर माहेश्वरी महिला मंडल की अध्यक्षा संगीता टवानी, सचिव निशा जाजू, कोषाध्यक्षा सरोज चांडक, संयोजिका सरिता सोनी, सहसंयोजिका शशी मूधंडा, रेणू केला, वनिता डागा, किरण मूंधडा, उषा मंत्री, माधुरी सोनी, नटवर झंवर, सुनील मंत्री, कमल सोनी, राजकुमार टवानी, गिरीश डागा, नितिन सारडा, संजय भूतडा, संजय शाह, कैलाश साहू, सुंदरलाल केला, दिनेशकुमार केला, प्रकाश केला, रविंद्रकुमार केला, अनुराग केला, गोविंद केला, अंश केला, संध्या केला, रेखा केला, नेहा केला, उर्मिला केला, स्वरा केला, प्रभा झंवर, प्रतीक्षा टवानी के साथ बडी संख्या में महिलाएं पुरूष उपस्थित थे.

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