मकर संक्रांति पर्व पर रंगबिरंगी पतंगे उडाने की परंपरा आज भी बरकरार
सुरेश पतंग वाला प्रतिष्ठान में इस साल 25 हजार पतंगे तैयार
* संचालक सुरेश मतलानी ने दी जानकारी
* आज की पीढी द्वारा परंपरा का जतन करने पर जताई खुशी
अमरावती/दि.7-देश के कई राज्यों में पतंग उड़ाने की परंपरा बरकरार है. पर्वों के देश भारत में हर पर्व को अपनी एक खास विशेषता होती है. मकर संक्रांति को महाराष्ट्र की बात है अमरावती समेत पूरे विदर्भ में इस दिन युवा समेत सभी आयु वर्ग के लड़कें पतंग उड़ाकर वर्षों पुराने परंपरा को जीवित रखे हुए हैं, मुझे खुशी है कि आज की पीढ़ी के बच्चे पतंग के व्यवसाय में रूचि दिखा रहे हैं, यह बात मीडिया से बातचीत के दौरान सुरेश पतंग वाला होलसेल तथा चिल्लर विक्रेता सुरेश मतलानी ने काही. उन्होंने बताया कि में इस व्यवसाय से वर्ष 1972 से जुड़ा हूं, इसमें मेरी रूचि मेरे पिता श्याम लाल मतलानी के समय से ही थी. पिता के साथ काम करते-करते मकर संक्रांति पर पतंगे बनाने तथा उन्हें बेचने के प्रति इतनी रूचि पैदा हुई जो अब तक बरकरार है.
मतलानी ने बताया कि मेरा पतंग के साथ-साथ किराणा का कारोबार मेरे दोनों पुत्र अमित तथा अनिल संभाल रहे हैं. पहले तथा आज के वक्त के पतंग की कारोबार की बात करें तो पहले पतंग के चार-पांच ही प्रकार थे. उसी में से खरीदार जो पंसद आती थी वह पतंग खरीद लेता था, लेकिन आज तो 30 से ज्यादा वैराइटी है, बच्चों की पसंद अलग है, तो युवाओं की अलग, कुछ लोग डिजाइन वाली पतंग पंसद करते हैं तो कुछ लोगों को चांदतारा, झालर वाली पतंग पसंद आती है. यह पूछे जाने पर कि क्या आप बाहर से पतंग मंगाते हैं तो इस पर सुरेश मतलानी ने बताया कि सामग्री बाहर से आती है, पंतग हमारे यहां बनती है. डिजाइन तथा सादा पतंगी कागज गुजरात के आता है, जबकि पंतग बनाने में उपयोग में लाई जाने वाली लकड़ी कोलकाता के आती है.
सुरेश मतलानी ने बताया कि विदर्भ के सभी जिलों के अलावा महाराष्ट्र के भुसावल, जलगांव से भी आर्डर आते हैं. जून माह से ही बाहर के आर्डर आने शुरू हो जाते हैं. महाराष्ट्र के अलावा देश के कुछ अन्य प्रांतों में भी हमारे यहां के पतंग जाती है, ऐसी जानकारी देते हुए मतलानी ने बताया कि दक्षिण भारत के हैदराबाद, वारंगल तथा पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश के बैतूल, छिंदवाडा में भी काफी मांग रहती है. फैंसी तथा सादी दोनों ही तरह की पतंगो की मांग खरीदारों की ओर से की जाती है.
* इस साल 25 हजार पतंगे तैयार
मतलानी ने जानकारी देते हुए बताया कि पतंग का बिक्री का कारोबार दो माह का होता है. दो माह की बिक्री के लिए इस साल 25000 हजार पतंगे हमारे यहां तैयार की गई हैं. जितनी पतंगें आई हैं, वे सभी पतंगे हम बेचने की कोशिश करते है, क्योंकि बची हुई पंतग को सुरक्षित रखना बहुत मुश्किल होता है. पतंग के कागज में दीमक तथा लकड़ियों में कीड़े लगने की आशंका बनी रहती है, इसलिए हमारी कोशिश होती है कि जितनी पतंग मंगाई गई हैं. वे सभी बिक जाए. इस वर्ष चांदतारा, डाक्टर, राकेट, झालर, मोटू-पतलू पतंग अनेक कई अन्य वैराइटी की पतंगे हमारे यहां उपलब्ध है. हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी नए साल की पतंग निर्माण किया गया है.
* पतंग सजावट का काम महिलाएं करती है
चर्चा के दौरान मतलानी ने बताया कि पतंग बनाने के काम में महिलाओं का योगदान बहुत रहता है. खासकर फैंसी पतंग बनाने में सजावट का काम महिलाएं ही करती है. पतंग बनाने में अहम योगदान देने वाली नारी शक्ति पतंग उड़ाती हुई नहीं दिखाई देती है. पतंग उड़ाने में उपयोग में आने वाली चक्री तथा धागा ही अच्छा होना चाहिए, साथ ही मांझे का भी अच्छा होना बहुत जरूरी है. यह पूछे जाने पर कि आपके यहां धागा कितने प्रकार तथा उनके भाव क्या हैं तो इस पर उन्होंने बताया कि 6 रुपए से 95 रूपए तक के धागे हमारे यहां उपलब्ध हैं.
पूरी तरह से कॉटन का मांझा उपलब्ध
मांझा के बारे में जानकारी देते हुए मतलानी ने बताया कि हमारे यहां बरेली का मांझा (पूरी तरह से कॉटन) उपलब्ध है. 6 से 300 रुपए के मांझा उपलब्ध होने की बात करते हुए मतलानी ने कहा कि पतंग खरीदने वाले ग्राहक में बच्चे भी होते हैं और बड़े भी इसलिए सभी की पसंद की पतंगें हर मंगाते है. उन्होंने ने बताया कि 12 से 150 रूपए कर चक्री हमारे यहां उपलब्ध हैं. मतलानी ने बताया कि नव वर्ष शुरू होते ही ग्राहकी तेज हो गई है, जिसमें आने वाले दिनों में और तेजी आएगी.