अमरावती

गुरू शिष्य की परंपरा आज भी कायम

पूर्व छात्रा ने हव्याप्र मंडल को दी 10 लाख रू की गुरूदक्षिणा

* नीलम हांडा की गुरू के प्रति अपार श्रध्दा
अमरावती/ दि. 30 – गुरू- शिष्य परंपरा हमारी संस्कृति की पहचान एवं ठोस आधार है. गुरू शिष्य परपंरा हममें से किसी के लिए नई नहीं है. दुनिया चाहे कितनी भी आधुनिक क्यों न हो जाए, गुरू और शिष्य के बीच का रिश्ता आज भी उसी विश्वास के साथ कायम है. इसका प्रमाण श्री हनुमान व्यायाम प्रसार मंडल की पूर्व छात्रा नीलम हांडा ने मंडल को 10 लाख रूपए की गुरू दक्षिणा के रूप देकर दिया है. श्री हनुमान व्यायाम प्रसारक मंडल की पूर्व छात्रा नीलम हांडा ने 1964-65 में अपनी सीपीएड की शिक्षा पूरी की. 1968-69 में स्नातक की पढाई पूरी की और कॉलेज में शामिल हो गई. इस बीच उन्होंने लडकियों की टीम का नेतृत्व किया और जापान का सफल दौरा किया. 1973-74 में एमपीएडी करते समय उन्होंने एक बार फिर लडकियों की टीम का नेतृत्व किया. 1977-78 मेेंं उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में आयोजित विश्व महिला सम्मेलन में भाग लिया और प्रभावी संवाद साधा. शादी के बाद नीलम हांडा लंदन में बस गई. लेकिन उनके मन में श्री हनुमान व्यायाम प्रसारक मंडल के शैक्षिक करियर और मंडल के कार्यो के बारे में जानकारी थी. पद्म श्री प्रभाकरराव वैद्य के मजबूत नेतृत्व और खेल, शिक्षा और समाजिक कार्यो में मंडल की भागीदारी के कारण नीलम हांडा हमेशा मंडल से जुड रही है. उन्हें हमेशा लगता था कि हमें मंडल केकाम में शामिल होना चाहिए. उनकी दिल की चाहत उन्हे शांत नहीं बैठने देती थी. अपनी स्थिति को देखते हुए उन्होंने मंडल को दान के रूप में 10 लाख रूपए की आर्थिक सहायता दी. मंडल के सभी अधिकारी, कर्मचारी और छात्र इस बात पर संतोष व्यक्त करते रहे है कि इस अप्रत्याशित और अद्बितीय उपहार के कारण मंडल और छात्रों के बीच का बंधन गुरू, शिष्य की परंपरा के अनुरूप है.

* इस तरह के संबंध प्रेरणादायक : पदमश्री
एक गुरू अपने शिष्य को विभिन्न कौशल, ज्ञान और प्रशिक्षण के माध्यम से विकसित करता है. श्री हनुमान व्यायाम प्रसारक मंडल ने गुरू, शिष्य की इस परंपरा को निरंतर पोषित किया है और मंडल एक योग्य विद्यार्थी, व्यक्तित्व के विकास के लिए निरंतर कार्य कर रहा है. दान के रूप में मंडल को नीलम हांडा की आर्थिक मदद और एक छात्र द्बारा विकसित किया गया बंधन प्रेरणादायक है. हम इस बात से बेहद संतुष्ट है कि देश और विदेश के पूर्व छात्र अभी भी मंडल के साथ जुडे हुए है. पद्मश्री प्रभाकरराव वैद्य ने नीलम हांडा के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करते हुए आग्रह किया कि पूर्व छात्रों को प्यार और विश्वास ही मंडल की असली पहचान और ताकत है और इस तरह के बधंन को बनाए रखे.

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