परतवाड़ा/मेलघाट/दि १० -:अनेक बरसो से आदिवासी अंचल में रहते बसोर समाज के लोग अपनी बांस हस्तशिल्प के लिए जाने जाते है.ये लोग घर मे काम आती नित्य जरूरतों की वस्तुओ का निर्माण कर अपना उदरनिर्वाह करते है.किंतु वनविभाग की कठिन शर्तो के चलते अब इन्हें बांस नही मिलने से काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा.मेलघाट में बसोर समाज की संख्या नाममात्र ही है.ये लोग परंपरागत रूप से टोपले, सूपड़ा, टोकरी, डाला आदि बनाने का कार्य करते है.इन्हें कोई प्रशिक्षण नही दिया गया.ये सभी पैदायशी कलाकार है.इनके हाथों से निर्मित बांस की हर कलाकृति अपने आप मे बेजोड़ होती है.आज के आधुनिक युग मे जहां बांस की जगह पर प्लास्टिक के साहित्य आ गए, फिर भी ये लोग अपनी हस्तकला कौशल्य से लोगो को उनकी मनचाही वस्तुओ की आपूर्ति करते है.
पहले इस समाज को वनविभाग की ओर से बांस की आपूर्ति की जाती थी.लेकिन शासन द्वारा वृक्ष तोड़ने पर प्रतिबंध लगाने से इन्हें भी बांस मिलना बंद हो गया.उल्लेखनीय यह है कि इन लोगो के पास शासन ने बांस खरीदने का लाइसेंस भी है.किंतु बांस ही नही मिल रहा तब इस लायसेंस का क्या उपयोग? एक प्रकार् से इस समाज के सामने उदरनिर्वाह का संकट उपस्थित हो गया.
प्रधानमंत्री स्वयं कौशल्य विकास पर जोर देते है.वहीं इन शिल्पकारों को बांस उपलब्ध नही कराया जा रहा.इससे एक प्राचीन कला तो दम तोड़ ही रही और उसके साथ ही कई परिवारों को भुखमरी का सामना भी करना पड़ रहा.बसोर समाज को बांस उपलब्ध कराने की मांग की जा रही है.
जागृक नागरिक नितेश सूर्यवंशी कहते है कि समाज मे बड़े पैमाने पर शिक्षित युवक है.एक तरफ पढ़े-लिखे लोगो को नोकरिया नही मिल रही.दूसरी ओर जन्मजात कलाकारों को शासन बांस की आपूर्ति नही करता.जीवन का निर्वहन कैसे करे, यह समझ से परे है.