अमरावती

लुप्त होती जा रही वासुदेव आला की धुन

नई पीढी ने लिया व्यवसाय करने का निर्णय

अमरावती प्रतिनिधि/दि.२१ – एक दौर था जब वासुदेव आला वासुदेव आला की धुन कानों में गुंजती थी, लेकिन अब यह धुन ग्रामीण इलाकों में गुंजते हुए नहीं दिखाई दें रही है. वासुदेव आला के गीत गुनगुनाने वाले बहुरुपियों की नई पीढी ने नया व्यवसाय करने का ठान लेने से यह परंपरा अब खंडित होने के मार्ग पर आ गई है. इस समाज के बच्चों को गली, मोहल्ले में भिक्षा मांगते हुए घुमना मान्य नहीं है. वहीं अब यह बच्चे वासुदेव के विरासत का जतन करने के लिए तैयार नजर नहीं आ रहे है. यहां बता दे कि वासुदेव आला यह गीतों की धुन ग्रामीण इलाकों में पहले सुनाई देती थी. प्रात: के समय गांव के घर-घर जाकर विठ्ठल के अभंग गाकर नींद से लोगों को उठाने का काम यह वासुदेव बहुरुपी करते थे. ९० के दौर में यह वासुदेव बहुरुपी दिखाई देते थे. इन बहुरुपी की पहचान सिर पर मोर के पंखों वाली टोपी और धोती से पहचान जाते थे. हाथ में मंजिरी व लकडी की पटियों से बने वाद्य बजाकर पूरे गांव को यह बहुरुपी जगाते थे. कृष्ण भक्त रहने वाले यह भटकी जनजाति अब लुप्त होने की कगार पर आ गई है. बदलते दौर में इस भटकी जनजाति की नई पीढी ने नया व्यवसाय करने का निर्णय लेने से यह परंपरा अब खंडित होते नजर आ रही है. इस जनजाति के नई पीढी के बच्चों को गल्ली-गल्ली में घुमकर भिक्षा मांगने और वासुदेव की विरासत को जतन करने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे है. पिछडा वर्गियों में आने वाल वासुदेव समाज काफी अल्प है. इस समाज के बच्चे अब पढाई करने में रुचि ले रहे है. इसलिए सरकार की ओर से अब समाज को भी शैक्षणिक आरक्षण देने की मांग वासुदेव समाज बंधुओं की ओर से की जा रही है.

Back to top button