अमरावतीमहाराष्ट्र

पांडवों के चरणस्पर्श से पावन वलगांव तीर्थस्थल भक्तों का आस्थास्थल

महाभारत के इतिहास की साक्षी देने वाला सिद्धिविनायक मंदिर

* सूर्योदय की पहली किरणें पडती है मूर्ति पर
टाकरखेडा संभु/दि.6-श्रीक्षेत्र वायगांव में दाहिनी सूंड वाली अद्भुत गणेश प्रतिमा देखने को मिलती है जो महाभारत के इतिहास की साक्षी है. जब पांडव अज्ञातवास में थे, तब वे चिखलदरा आये. किंवदंती है कि पांडवों ने लौटते समय इस मूर्ति के दर्शन करके अपना अज्ञातवास समाप्त किया था. ऐसी पृष्ठभूमि वाली गणेश प्रतिमा 600 साल पहले खुदाई में मिली थी. यह लाखों भक्तों के लिए पूजा स्थल है. सिद्धिविनायक की यह प्रतिमा महाराष्ट्र में केवल दो स्थानों पर ही देखी जा सकती है. मुंबई के बाद भातकुली तहसील के वायगांव में सिद्धिविनायक की मूर्ति है. अमरावती-परतवाडा मार्ग पर आने वाले वायगांव के सिद्धिविनायक का इतिहास महाभारत के विराट पर्व तक है.
मध्यकाल में मूर्तिभंजक आक्रमणकारियों के डर से यह मूर्ति भूमिगत रखी गई थी. गांव परिसर के अचलपुर, दारापुर, खोलापुर गांव मुगलों के कब्जे में थे. उसके बाद 600 वर्ष बीत गये. इसलिए, मूर्ति का सही स्थान ज्ञात नहीं था. लोगों को साक्षात्कार हो रहा था, किंतु मूर्ति मिल नहीं रही थी. अचानक हुई खुदाई में यह मूर्ति वायगांव स्थित इंगोले के घर में मिली. वह समय सोलहवीं शताब्दी का था. तब से मूर्ति को वाडारूपी मंदिर में प्रतिस्थापित कर दिया गया है. समय के साथ, जैसे-जैसे गणेश भक्तों की संख्या बढने लगी, इंगोले परिवार ने भक्तों की सुविधा के लिए एक ट्रस्ट की स्थापना की. बाद में यहां एक मंदिर बनाया गया. इसके लिए इस परिवार के लोगों ने खेती दी. इसका प्रबंधन लालजी पाटिल, सीताराम पाटिल, तुलसीराम पाटिल, शिवराम पाटिल, तुकाराम पाटिल, श्रीराम पाटिल और दयाराम पाटिल द्वारा किया जाता है. विलास तुकाराम इंगोले ट्रस्ट के अध्यक्ष है.यहां साल में दो बार त्यौहार मनाए जाते हैं. भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से पूर्णिमा तक गणेश उत्सव के दौरान रोजाना दस दिनों तक भक्तों को भोजन, ज्ञान, भजन, कीर्तन, काकडा, हरिपाठ आदि कार्यक्रम संपन्न होते है. पूर्णिमा पर, पार्थिव मूर्ति को ताल-मुदंग और जयघोष के साथ विसर्जित किया जाता है. गणेश जयंती उत्सव के दौरान महाराष्ट्र से हजारों भक्त यहां आते हैं. यहां मध्य प्रदेश सहित अन्य राज्यों से भी श्रद्धालु आते हैं.

सिद्धिविनायक मूर्ति की विशेषताएं
सिद्धिविनायक की मूर्ति दाहिनी सूंड की है. सिद्धि दायीं ओर है और रिद्धि बायीं ओर है. एकदंत, पांव पर पद्म, शंख अंकित है. हाथ में माला और मोदक सांसारिक जीवन में समृद्धि का संकेत देते हैं. उत्तरायण और दक्षिणायन के दौरान सूर्योदय की पहली किरणें मूर्ति पर पडती हैं.

 

 

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