चिखलदरा के देवी प्वॉईंट पर मन्नत की यात्रा
आदिवासी श्रद्धालुओं की उमडती है यहां भीड

चिखलदरा /दि.24– यहां के पर्यटन स्थल पर देवी प्वॉईंट में पहाडियों के बीच विराजमान देवी को कबूल की मन्नत चैत्र माह में मुर्गी-बकरी की बली देकर पूर्ण की जाती है. शरीर में देव संचार की प्रथा भी आदिवासी निभाते है. पूजा-अर्चना मंदरि में होती रही, तो भी मन्नत की बली चढाने की मंदिर परिसर में पाबंदी रहने से विपरित दिशा में स्थित प्रांगण में वह पूरी की जाती है. अंधश्रद्धा रही तो भी इसके जरिए आदिवासियों की परंपरा कायम है.
देवी प्वॉईंट पर मेलघाट सहित मध्यप्रदेश के आदिवासी श्रद्धालु कुलदेवता, अंबामाता, मरीमाय, जनादेवी आदि की विविध कारणों से पूजा-अर्चना करते है. चैत्र माह के साथ ही नवरात्रोत्सव में भी श्रद्धालु पूजा-अर्चना व दर्शन के लिए यहां भीड करते है. फिलहाल देवी प्वॉईंट के मंदिर में मन्नत की पूजा के लिए मंगलवार और शुक्रवार को श्रद्धालुओं की भीड उमडती है.
* मन्नत की यात्रा
आदिवासियों में अंधश्रद्धा काफी है. चैत्र समाप्त होने पर भी करीबन डेढ से दो माह हर सप्ताह के मंगलवार और शुक्रवार को आदिवासी भक्त मन्नत पूरी करते है. मंदिर परिसर में इस पर पाबंदी लगाई गई है.
* चंद्रभागा का उगम स्थान
देवी प्वॉईंट के मंदिर के बाद बाजू में ही बहने वाला झरना यानि दर्यापुर तक बहकर जाने वाली चंद्रभागा नदी का उगम स्थान माना जाता है. इस परिसर पर स्थित ब्रिटीशकालीन सक्कर तालाब से आना वाला पानी चंद्रभागा नदी के उगम स्थान के झरने में और दरारों में से मंदिर की छत से भीतर परिसर में लगातार गिरता रहता है.
* विख्यात देवी प्वॉईंट
पर्यटन का एक केंद्र देवी प्वॉईंट है. मंदिर की गुफा से बूंदबूंद टपकने वाले तीर्थांमृत के रुप में श्रद्धालु उसे लेते है. गहरी गुफा में विराजमान देवी के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं को नीचे झुककर जाना पडता है. वर्ष 1935-36 में संत पाचलेगांवकर महाराज ने देवी की मूर्ति की स्थापना की. पश्चात विविध देवी-देवताओं की स्थापना यहां मंदिर प्रशासन की तरफ से की गई है.
* विहंगम नजारा
सैकडों फुट गहरी खाई के किनारे पर बसे मंदिर के सामने का नजारा काफी विहंगम है. ऐतिहासिक गाविलगढ किला भी यहां से दिखता है तथा गहरी खाई में तहसील में बसे आदिवासी कस्बों का नजारा पर्यटकों को यहां से देखने मिलता है.