जन्मों-जन्मों का कर्मफल है सांसारिक व आध्यात्मिक सफलता
शिवधारा झूलेलाल चालीहा के 26 वें दिन पर संत डॉ. संतोषकुमार के विचार
अमरावती/दि.11- स्थानीय सिंधु नगर स्थित पूज्य शिवधारा आश्रम में चल रहे शिवधारा झुलेलाल चालीहा के 26 वें दिन परम पूज्य संत श्री डॉ. संतोष महाराज जी ने अपनी मधुरवाणी में बताया कि, जैसे गंगा मैया की यात्रा गंगोत्री से प्रारंभ होती है और गंगासागर तक रहती है. इस बीच में पावन स्थानों पर गंगा मैया का महत्व कुछ विशेष रहता है, वैसे ही 84 लाख योनिओं की मनुष्य देह भी इसी यात्रा की एक योनि है एवं मोक्ष प्राप्त तक यह क्रम यात्रा का आगे भी चलता रहेगा.
इसलिए यहां सदैव ध्यान में रहे कि शरीर की बीमारियां जितनी भी जिसको है, चाहे मधुमेह, चाहे लकवा आदि वह शरीर के मरने पर खत्म हो जाएंगी, परंतु मन की जितनी भी विकार रूपी बीमारियां हैं या जितने भी सूक्ष्म संस्कार हैं, यह सब आनेवाले जन्मों में भी हमारे साथ रहनेवाले हैं और हमारी गति या तो सतगति या दुर्गति रूप में होगी. सभी हमारे संस्कारों के आधार पर होगा. इसलिए आयु गुजरने के साथ-साथ अपनी आदतों, अपने संस्कारों, अपनी विचारधारा पर नजर बनाए रखें, उनको सुधारते, संवारते जाएं जिससे हमारा शेष जीवन अच्छा बीते, शरीर का अंत अच्छा हो और आनेवाले जन्मों में एक संस्कारी जीवन बने.
इसका उदाहरण हम सब खुद ही है. जैसे हमारी कुछ अच्छी आदतें है जो समय से शुरू हुई, लेकिन कुछ आदतें जन्म से ही अच्छी थी, जो परिणाम पिछले जन्म का ही है. वैसे ही कुछ हम में बुरी आदतें समय से आई, वह संगत से आई, परंतु कुछ बुरी आदतें जैसे चोरी, झूठ बोलना, गुस्सा करना, किसी से छीनना, किसी पर आरोप मढना, निंदा करना, वादा करके मुकर जाना आदि यह सब पिछले जन्म के बुरे संस्कारों का परिणाम है.