अमरावतीमहाराष्ट्र

चार अवस्थाएं आध्यात्मिकता की, हम किस अवस्था में!

शिवधारा आश्रम में चालीहा उत्सव

* डॉ. संतोषदेव महाराज का प्रतिपादन
अमरावती/दि.14– सिंधु नगर स्थित पूज्य शिवधारा आश्रम में चल रहा शिवधारा झूलेलाल चलिहा का आज 30 वें दिन के सत्संग प्रवचन में परम पूज्य संत श्री डॉ. संतोषदेव महाराज ने कहा के आध्यात्मिकता की चार अवस्थाएं होती हैं. प्रथम अवस्थाः भगवान एवं आध्यात्मिकता से दूर-दूर रहना, इन बातों पर विश्वास न होना, नास्तिकता वाला जीवन जीना. अक्सर हम लोग समाज में देखते हैं बहुत लोग कहते हैं हम भगवान को नहीं मानते, धर्म-कर्म में हमारा विश्वास नहीं, पूजा पाठ करना हमें अच्छा नहीं लगता. इसका अर्थ यह मानना चाहिए कि उनके पुण्य अभी बहुत कम हैं और पाप बहुत अधिक हैं. उदाहरणर्थ कम्युनिस्ट.
दूसरी अवस्था ः जब जीवन में कोई घटना घटी या बड़ा कोई उतार चढ़ाव आया, तब भगवान के अस्तित्व को मानना और अच्छाई के लिए सकारात्मक होना. यह जब पुण्य थोड़ा-थोड़ा बढ़ने लगता है, किसी आस्तिक, हरि भगत की प्रेरणा और पिछले जन्मों के संस्कारों के कारण से ऐसा होता है. उदाहरणर्थ उंगली मार डाकू से भगवान बुद्ध का सच्चा भक्त बनना.
तीसरी अवस्था ः परमात्मा की कृपा प्राप्त हेतु सत्कार्य, धर्म कर्म व नित्य नियम करना, सत्संग कथा में जाना, तीर्थ पर जाना, संत शरण में जाना आदि होता है. यह भी किसी न किसी पुण्य कर्म, आशीर्वादों, पूजा पाठ आदि का एवं पुण्य बढ़ने का ही परिणाम होता है. उदाहरणर्थ रत्नाकर डाकू से महर्षि वाल्मीकि बनना.
चौथी अवस्था ः गुरु और गोविंद के निकट होने का अनुभव होना. समय गुज़रने के साथ साधना सत्संग, सतकर्म, बढ़ने से, सतगुरु देव भगवान की कृपा से यह अवस्था प्राप्त होती है. जिससे हर समय प्रसन्नता बनी रहना, हर परिस्थिति को हरि इच्छा समझना, आनंद में जीवन जीना, परहित को प्रधानता देना, विषय विकारों से खुद को बचाना आदि आदतें बंती जाती हैं और अंत में एक आदर्श जीवन जीते हुए मोक्ष प्राप्ति होती है. उदाहरणर्थ माई मीरा को ज़हर का प्याला दिया गया. उन्होंने ठाकुर जी के चरना अमृत का भाव रखा, वह अमृत बन गया, अंत में में मेरा द्वारकाधीश की प्रतिमा में समा गईं. 1008 सद्गुरु स्वामी शिवभजन महाराज कहा करते थे. अपने आत्मिक चिंतन एवं आत्मिक विश्लेषण के माध्यम से अध्यात्मिक उन्नति के लिए सदैव प्रत्यनशील रहना चाहिए. बुधवार के दिन भगवान श्री गणेश को दुर्वा और लडुअन का भोग लगाने से चल रही राहु एवं बुध ग्रह की बाधाएं दूर होती है.

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