
* 8 टैेंकर की डिमांड, पहुंच रहे केवल 4
* 3 से 5 किमी दूरी से लाना पड रहा पानी
* महिलाओं और बच्चों का काफी समय जाता
अमरावती/ दि. 24- मेलघाट के गांवों में भयंकर जल संकट घिर आया है. आसमान से बरसती आग के बीच पानी की समस्या ने लोगों का जीना दूभर कर दिया है. जिससे कई गांवों में तो लोग पलायन कर गये हैं. वहीं अनेक जगहों पर पानी के लिए 3 से 5 किमी दूरी तक पैदल चलना पड रहा है. महिलाएं सिर पर एक साथ दो तीन घडे लेकर पेयजल की व्यवस्था कर रही है. उनका अधिकांश समय पानी की व्यवस्था करने मेें लग रहा है. अनेक गांवों को मंडल न्यूज टीम ने भेंट दी. वहां एक जैसे नजारे दिखाई दिए. लोगों ने आरोप लगाया कि हमारे गांव में 4 टैंकर उपलब्ध करवाए जा रहे हैं. जबकि आवश्यकता इससे दो गुनी अर्थात 8 टैंकर की है.
* एक कुआं, 1200 लोग
जिस गांव में मंडल न्यूज टीम पहुंची. वहां प्रशासन के टैंकर जाली लगे कुएं में खाली करवाए जा रहे थे. टैंकर खाली कर प्रशासन के लोग चले गये. वहीं ग्रामीणों में पानी अपने बर्तनों में भरने की होड लग गई. एक ही कुएं पर 1200 की आबादी वाला समूचा गांव निर्भर है. इससे भी पानी के लिए त्राहि- त्राहि का आलम दिखाई पडता है.
* महिलाएं और बच्चे जुटे
एक कुएं में 4 टैंकर खाली करने के बाद ग्रामीण रस्सी और बाल्टी लेकर अपने घडे भरने लगे. यह नजारा हकीकत बयां कर गया. पानी की भारी किल्लत जंगल से भरपूर मेलघाट के अधिकांश गांवों में दिखाई दे रही है. जिसके कारण टैंकर के कुएं में खाली होते ही महिलाएं और बच्चे अपने घरों के लिए पानी एकत्र करने जुट जाते हैं. अनेक बच्चों को सिर्फ स्टील और प्लॉस्टिक के घडों से पानी भरते देखा गया.
* बचपन से यही आलम
महिला से बात करने पर उन्होंने कहा कि लडकपन से ही वे ग्रीष्मकाल में इसी प्रकार पानी भरती आ रही है. जवान हो गई. दो बच्चे हो गये. पानी का संकट जैसा था, वैसा ही है. मटमैला पानी पीने के लिए विवश हो रहे हैं. इससे बीमारियां भी होती है.
* नहीं आता कोई नेता
बुजुर्ग महिला ऋषिबाई पाटिल ने कहा कि हमारी तकलीफ पर कोई ध्यान नहीं देता. कोई नेता गर्मी के इन दिनों में जब हम बूंंद बूंद पानी के लिए जूझ रहे हैं, तब कोई नहीं फटकता. तीन किमी के अंतर पर गांव का यह कुआं है. सभी ग्रामीण यहीं से पानी ले जाते हैं. कुछ लोग पहाडो से बहकर आनेवाला पानी कपडे बर्तन आदि के लिए उपयोग में लाते हैं. ऋषि बाई ने बताया क्कि जल संकट की ओर सबसे पहले ध्यान दिया जाना चाहिए. हमारी पीढियां पानी की व्यवस्था करने में खप रही है.
* 3 से 5 किमी दूर
गांव में ही बचपन बिताने वाली महिला ने बताया कि उन्हें सिर पर दो-तीन घडे एक साथ ले जाने की आदत हो गई है. क्योंकि लडकपन से ही वे यह काम कर रही है. उनका इशारा बरसों से जल संकट की समस्या जस की तस रहने की ओर रहा. इन्होंने बताया कि 3 से 5 किमी पैदल चलना पडता है. फिर घर के भी रसोई आदि के काम होते हैं. दिनचर्या का बडा हिस्सा पानी का इंतजाम करने में बीत जाता है.
* केवल नाम की टंकी
गांव में पानी की टंकी बनी है. किंतु उसमें पानी नहीं है. गांव के बाहर तीन किमी के फासले पर एक कुआं है. गांव के सभी लोग इस कुएं से जाकर पानी लाते हैं. पानी की एक- एक बूंद का उपयोग करते हैं. आसमान से सूरज आंखें तरेर रहा है. ऐसे में पानी के लिए यह ग्रामीण आपस में जरा भी झगडा किए बगैर जिसके हिस्से में जितना पानी आए, उतना लेकर निभा रहे हैं.