अमरावती/ दि. 1 – माँ कनकेश्वरी देवीजी जनकल्याण ट्रस्ट अंतर्गत गठित माँ अंबा, सत्संग समिति, अमरावती के तत्वाधान में बडनेरा झिरी क्षेत्र के श्री सद्गुरू गणेश शास्वत धाम में पिछले पाँच दिनों से चल रही श्री रामचरित मानस कथा गंगा के पाँचवे दिन के सत्र में प.पू.माँ ने कहा कि सद्गुरू वचनों के पालन से हम जीव तुरंत अपने यथार्थ रामरूप में लीन हो सकता है किंतु माया बाधक बन जाती है. शुभ कार्यों को कल पर नहीं टालना चाहिये . काल, कर्म, स्वभाव के माध्यम से माया हमें भ्रमित करती है. माया कहती है अभी भजन का समय नहीं आया. आत्मसुधार का कोई निश्चित समय नहीं है। प्रपंच के अंतहीन कार्यों में हमें लगाती है और माया हमारे स्वभाव में भ्रम पैदा करती है। तीनों गुणों का सुयोग्य प्रमाण हो.
आज माँ का आशीर्वाद लेने वालों में मुख्य यजमान श्रीमती सरलादेवी सिकची परिवार के आनंद, प्रज्ञा, अनुप सिकची, राजेश शेगांवकर श्रीमती आशाताई चिंचोडकर, सूर्यभानजी बावनपुरे, सुगनाताई शर्मा, शीला नरूभाई शर्मा, राधाबाई, सौ.सुनंदा कलंत्री, सौ अनिता रुणवाल, मुन्नीबाई त्रिपाठी, इंदुबाई देशमुख, उषा लोहिया आकोट, इन मान्यवरो का समावेश रहा. माँ ने कहा कि कलियुग में लोग दौड़ते बहुत हैं किंतु पहुँचते कहीं नहीं. दौड़ने से ज्यादा जरूरी हे सही जगह पहुँचना . शरीर के साथ यदि गुणों का विकास नहीं हुआ तो वृद्धावस्था निंदनीय हो जाती है. किंतु शरीर के विकास के साथ याद सदगुणों का विकास किया तो हमारी वृद्धावस्था वंदनीय हो जाती है। माया झूठ बोलकर हमें रोकती है किंतु कभी वह झूठ इतनी खूबी से बोलती है कि सच लगता है. और हम स्वयं सुधार के सत्कार्य को कल पर डालते जाते हैं.
माया का खेल समझाते हुए माँ ने कहा सत्कार्य में विघ्न डालने वाली हर बात माया है. गुरूजनों की कृपादृष्टि से हम जीते जी चारों पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं. राजा दशरथ के यहाँ राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न पधारे. सद्गुरू का स्वभाव है वे कम देना नहीं जानते. एक संज्ञान माँगी तो चार दे दी. माँ ने कहा कि रामकथा में स्थिर आसन से बैठने मात्र से वह तत्व मिल जाता है जो हजारों जन्मों तक दौड़ने से भी नहीं मिलता. सद्गुण का संग्रह ही सत्संग की पूर्णता है. एक सद्गुण आ जाए तो दूसरे का आवाहान करना चाहिये. सद्गुण के संग्रह में कभी भी संतुष्ट नहीं होना चाहिये. यज्ञ में देवता आते हैं तो उनका विसर्जन भी करना पड़ता है किंतु राम कथा यज्ञ में आए हुए सद्गुण का विसर्जन नहीं होता. हमारा परिवर्तन होता है. हमारे स्वभाव में परिवर्तन ही रामकथा का चमत्कार है. माँ ने कहा कि मरने के बाद मुक्ति के अनेक उपाय हैं किंतु जीते-जी मुक्ति का सिर्फ एक उपाय है रामकथा से गुरू कृपा की प्राप्ति. स्वस्थ अवस्था में ही आत्म सुधार सहज संभव है. भगवद्प्राप्ति संसार का सबसे सरल कार्य है. किंतु अति निकट होने के कारण ईश्वर दिखाई नहीं देते. झूठ, क्रोध, लोभ स्वार्थ अन्याय पाप इत्यादि हमारी आत्मा के स्वभाव नहीं हैं क्योंकि ये सब हमें अपने लिए अच्छा नहीं लगता. हमारा और ईश्वर का स्वभाव एक जैसा ही है. कभी कभी निकटता के घमंड में इंसान अनमोल चीजों से वंचित रह जाता. माँ ने कहा कि सत्वगुण सोने की बेड़ी है जिसे तोड़ने का उपाय है गुरुकृपा की महाप्राप्ति. माया का फंदा अच्छे-अच्छों को फँसा देता है. पवित्र संकल्प से ही जीवन सार्थक होता है. ईश्वरप्राप्ति ही हमारा सर्वोच्च लक्ष्य होना चाहिये.