कीर्तन से सामाजिक प्रबोधन हो-लक्ष्मणदास काले
श्रीक्षेत्र गुरुकुंज आश्रम में शुरू है पुण्यतिथी महोत्सव
गुरुकुंज मोझरी/दि.19– कीर्तनकार हमे कीर्तन के माध्यम से धर्म, देव, देश पर कितना बोलता है, इसका महत्व नहीं उसके कीर्तन से कितना प्रबोधन हुआ. यह महत्व का है. केवल कीर्तन मनोरंजन नहीं मनोरंजन से मूल कीर्तन का प्रभाव कम होता है. इसी लिए राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज ने कहा कि कीर्तन, उत्सव, प्रवचन यह मनोरजंन नहीं. कीर्तनकार यह विषय सर्वश्रेष्ठ है. मगर कीर्तन से विचार धन कितना मिलता है. कितने लोगों को मनुष्य धर्म की प्रति जागृत होते है. यह महत्व का है. ऐसा प्रतिपादन राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज के 56 वें पुण्यतिथी महोत्सव में आयोजित श्री गुरुदेव वारकरी कीर्तन संम्मेलन के उद्घाटन समारोह में अध्यक्ष के रुप में लक्ष्मण काले ने व्यक्त किए. इस समय प्रमुख अतिथी के रुप में पदमाकर देशमुख, प्रा.निलेशजी पर्बत, कैलास महाराज चव्हाण, सचिन पवार, उपसर्वाधिकारी दामोदर पाटील, प्रचार प्रमुख प्रकाश वाघ, आचार्य हरिभाऊ वेरूलकर सहित रमेश ढवले, मुकुंदराव निस्ताने, डॉ. डी. एस. निंघोट इत्यादि उपस्थित थे.
काले महाराज ने आगे कहा कि राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज की पूरी खानदान पिढीजात वारकरी थी. राष्ट्रसंत यह स्वयंभू संत है. श्रीगुरुदेव सेवा मंडल व वारकरी पंथ यह दो नहीं. श्रीगुरुदेव सेवा मंडल का जन्म वारकरी संप्रदाय से हुआ. वारकरी संप्रदाय में ज्ञानेश्वर महाराज ने पाया रचा तो तुकाराम महाराज कलस हुए. इस कलवारी के ध्वज तुकडोजी महाराज है. गाडगे महाराज, तुकडोजी महाराज यह किसी भी स्कूल में नहीं गए. उनके जन्म से ही प्रभाव के कारण अमरावती व नागपुर विद्यापीठ को संतों का नाम मिला है. ज्ञानराज गुरुमाऊली परंपरा के फलस्वरूप ही ग्रामगीता आयी. तुकडोजी महाराज ने ज्ञानेश्वर महाराज ने अपना गुरु माना है. जिसके कारण वारकर संप्रदाय व श्री गुरुदेव सेवा मंडल व्दारा मन में भेद न करते हुए एक रुप हो व प्रबोधन का विचार आगे ले जाए. इस संत संमेलन में पदमाकर देशमुख, प्रा.निलेश पर्बत, संदीप गिहे, कैलास महाराज चव्हाण, उपसर्वाधिकारी दामोदर पाटील, प्रचार प्रमुख प्रकाश वाघ ने भी संबोधित किया. संत संमेलन का प्रास्ताविक डॉ. प्रशांत ठाकरे ने व संचालन गोपाल कडू ने किया तथा आभार अजय आडीकने ने माना.