यह तो संत अच्युत महाराज का चलता-फिरता ज्ञानपीठ
अभ्यासिका के लोकार्पण अवसर पर सचिनदेव महाराज का प्रतिपादन
* सुशीला प्रभाकर वाडेकर अभ्यासिका हुआ शानदार लोकार्पण
अमरावती/दि. 24 – सावित्रीबाई फुले वाचनालय को जोडकर निर्मित की हुई सुशीला प्रभाकर वाडेकर स्मृति अभ्यासिका यह अभ्यासिका नहीं बल्कि अच्युत महाराज की चलती-फिरती ज्ञानपीठ है, ऐसा प्रतिपादन संत एड. सचिनदेव महाराज ने किया.
वाडेकर परिवार के उच्चविद्या विभुषित सदस्य दत्तात्रय, मुरलीधर व मनोज वाडेकर के प्रयासो से तिवसा तहसील के शेंदूरजना बाजार में विद्यार्थियों की पढाई के लिए इस अभ्यासिका का निर्माण किया गया है. इसका उद्घाटन संत सचिनदेव महाराज के हाथों किया गया. इस अवसर पर वे बोल रहे थे. कार्यक्रम की अध्यक्षता ग्रामीण विकास सत्संग मंडल के अध्यक्ष डॉ. अनिल सावरकर ने की. प्रमुख अतिथि के रुप में पुलिस पाटिल शीतल भोजने, डॉ. श्रीकांत देशमुख तथा भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के सहायक सलाहगार मनोज वाडेकर उपस्थित थे. ग्रामीण विकास सत्संग मंडल की तरफ से 25 वर्षो से गांव में सावित्रीबाई फुले वाचनालय चलाया जाता है. उसे अभ्यासिका की जोड मिलने से स्पर्धा परीक्षा की तैयारी करनेवाले विद्यार्थियों को सहायता होनेवाली है. इसी मकसद को सामने रख यह उपक्रम चलाया गया, ऐसा भी इस अवसर पर स्पष्ट किया गया. इस अभ्यासिका का निर्माण 27 दिसंबर 2023 को दत्त जयंती से शुरु हुआ था. 10 माह में यह इमारत तैयार की गई. कार्यक्रम के दौरान इमारत का निर्माण करनेवालो से लेकर जगह के दानदाता वाडेकर बंधू, ग्रंथपाल श्रीराम सावरकर, पवन भोजने का सत्कार किया गया. प्रास्ताविक पूर्व सरपंच नारायणराव बोडखे ने किया. संचालन प्राजक्ता मशिदकर-राऊत ने किया. इस अवसर पर ग्रामवासियों सहित अच्युत महाराज परिवार के अनेक सदस्य उपस्थित थे.
* वाडेकर परिवार ने दी जगह
इस अभ्यासिका के लिए लगनेवाली जगह वाडेकर परिवार की थी. वह उन्होंने संस्था को दान दी. उसी जगह पर 6 माह में अभ्यासिका की इमारत खडी की गई. इसके लिए अभियंता प्रकाश देशमुख, ठेकेदार चंद्रकांत उंबरकर व निखिल टेंभरे का विशेष सत्कार भी किया गया.
* विश्व को मराठी का ज्ञान देनेवाला गांव
शेंदूरजना बाजार यह वंदनीय संत अच्युत महाराज की कर्मभूमी है. इस गांव का महात्म्य भी इस अवसर पर बताया गया. महाराज को दिल का दौरा आने के बाद उन्होंने कारंड लाड के स्वामी मठ में डेढ माह विश्राम किया था. उस विश्राम के दौरान ही कोई भी पल बर्बाद न करते हुए उन्होंने ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद इन चारो वेदो का संस्कृत से मराठी में भाषांतर किया. इस कारण विश्व को मराठी में वेद देनेवाले संत के गांव के रुप में इस गांव की पहचान है.