इस बार भी पीओपी को लेकर संभ्रम कायम
सरकारी निर्देश अस्पष्ट रहने से मूर्तिकार पशोपेश में
अमरावती/दि.17- आगामी 31 अगस्त से दस दिवसीय गणेशोत्सव का प्रारंभ होने जा रहा है. जिसे ध्यान में रखते हुए स्थानीय मूर्तिकारों द्वारा गणेश मूर्तियों के निर्माण का काम शुरू कर दिया गया है. लेकिन गणेश मूर्तियों का निर्माण पूरी तरह मिट्टी से किया जाये या फिर इस कार्य हेतु प्लैस्टर ऑफ पैरिस यानी पीओपी को भी प्रयोग में लाया जाये. इसे लेकर काफी हद तक संभ्रम बना हुआ है. इस संदर्भ में सरकारी निर्देश पूरी तरह से स्पष्ट नहीं रहने के चलते सभी मूर्तिकार काफी पेशोपेश में है.
बता दें कि, पीओपी से निर्मित मूर्ति का विसर्जन पश्चात पानी में विघटन होता है अथवा नहीं, यही अपने आप में एक सबसे बडा सवाल है. जिसके चलते सरकार के पर्यावरण विभाग द्वारा पीओपी से बनी मूर्तियों को पर्यावरण एवं जलस्त्रोतों के लिए हानिकारक बताया जाता है. वहीं दूसरी ओर मूर्तिकारों द्वारा हर वर्ष यह मुद्दा उठाया जाता है कि, संबंधित महकमे के जरिये पीओपी को लेकर प्रयोग व अध्ययन क्यो नहीं किये जाते. उल्लेखनीय है कि, प्रतिवर्ष गणेशोत्सव के समय ही पीओपी का विषय चर्चा में आता है और इसके बाद पूरे सालभर इस विषय को लेकर कोई बातचीत नहीं होती. ऐसे में ऐन गणेशोत्सव व दुर्गोत्सव के सीझन के समय मूर्तिकारों को पीओपी को लेकर कार्रवाई की चेतावनी दी जाती है. जिसके चलते लगभग सभी मूर्तिकार मिट्टी से मूर्ति तैयार करते है. परंतू ऐन समय पर बाजारों में पीओपी से बनी मूर्तियों को बेचने की अनुमति प्रदान की जाती है. जिसके चलते कई मूर्तिकारों को नुकसान का भी सामना करना पडता है.
इस संदर्भ में स्थानीय प्रशासन को लेकर अपना रोष प्रकट करते हुए कई मूर्तिकारों का कहना रहा कि, हकीकत में अदालत ने पीओपी से बनी मूर्तियों के लिए अनुमति प्रदान की है. परंतु सरकार एवं प्रशासन द्वारा उन निर्देशों का अलग अर्थ निकालकर संभ्रम पैदा किया जा रहा है. वही चूंकि अब गणेशोत्सव शुरू होने में ही है. ऐसे में मूर्तिकारों द्वारा अब भी पीओपी को लेकर योग्य दिशा-निर्देशों की प्रतीक्षा की जा रही है. वही कई मूर्तिकारों ने इस बार हमेशा की झंझट से तंग आकर बेहद कम प्रमाण में मूर्तियां बनाई है. जिसके चलते इस बार बाजार में मूर्तियों की कुछ हद तक किल्लत दिखाई दे सकती है. जिसकी वजह से मूर्तियों के दामों थोडा-बहुत इजाफा भी हो सकता है.