अमरावती/दि.२७ – भाद्रपद पौर्णिमा से अश्विन पौर्णिमा यानी कोजागिरी पर्व तक भुलाबाई स्थापित करने की परंपरा महाराष्ट्र राज्य में रही है. जीवन से संबंधित विविधांगी गीतों के जरिये स्त्री मन का दर्शन करवानेवाले इस पर्व पर इस बार कोरोना संक्रमण का साया साफ तौर पर देखा जा रहा है और अब तक भुलाबाई के गीत कहीं पर भी सुनाई नहीं दिये है.
बता दें कि, भुलाबाई का उत्सव मनाने हेतु एक पाट पर रंगोली सजाते हुए भुलाबाई का दरबार सजाया जाता है. जिसके आसपास लडकियां व महिलाएं एकत्रित होकर गणेश वंदन करते हुए भुलाबाई के गीत गाती है. पुराने जमाने में पढने-लिखने के कोई खास साधन उपलब्ध नहीं हुआ करते थे और इन्हीं गीतों के जरिये ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं की व्यथा, खुशी व कौतुक आदि व्यक्त हुआ करते थे. इसके साथ ही पुराने जमाने में लडकियों का विवाह काफी कम उम्र में ही हो जाया करता था तथा बचपन बीतने से पहले ही उन पर सांसारिक जवाबदारियां आ जाती थी. जिसकी वजह से भी उनकी कई भावनाएं अव्यक्त रह जाया करती थी. जिन्हें व्यक्त करने का अवसर उन्हें इन गीतों के जरिये मिला करता था. साथ ही भुलाबाई के गीतों से अध्यात्मिक ज्ञान भी मिला करता था और भुलाबाई व भातुकली के खेल खुब रंगा करते थे. आज भी जिन महिलाओं व युवतियों को भुलाबाई के गीत याद रहते है, उनका परिसर की महिलाओं व युवतियों में काफी मान-सम्मान रहता है.