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इस बार शायद मंत्रिमंडल में अमरावती से कोई नहीं

संभावित विस्तार में भी जिले से किसी को नहीं मिलेगा मौका

अमरावती/दि.14 – एक साल पहले शिवसेना में शिंदे गुट द्बारा की गई बगावत के चलते तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महाविकास आघाडी की सरकार गिर गई थी और शिंदे गुट ने भाजपा के साथ हाथ मिलाते हुए नई सरकार बना ली थी. वहीं आज एक साल बाद राकांपा नेता अजित पवार ने अपने कई समर्थक विधायकों के साथ मिलकर पाला बदल लिया है और वे राज्य की शिंदे-फडणवीस सरकार में शामिल होकर उपमुख्यमंत्री भी बन गए है. जिसके चलते पूरा राजनीतिक परिदृष्य और समीकरण ही बदल गया है. वहीं विगत लंबे समय से राज्य मंत्रिमंडल के विस्तार की प्रतीक्षा की जा रही है. जिसमें सर्वाधिक उत्सुकता इस बात को लेकर देखी जा रही है कि, अब तीन दलों वाली की सरकार में तीनों दलों के किन-किन विधायकों को मौका मिलता है. साथ ही उन्हें किस विभाग का जिम्मा मिलता है. इसके अलावा जहां तक अमरावती जिले का सवाल है कि, यहां इस बात को लेकर सबसे अधिक उत्सुकता देखी जा रही है कि, ठाकरे सरकार में राज्यमंत्री रह चुके अचलपुर निर्वाचन क्षेत्र के विधायक बच्चू कडू को सीएम शिंदे का समर्थन करने की एवज में मंत्री पद मिलता भी है अथवा नहीं.
बता दें कि, विधायक बच्चू कडू के नेतृत्ववाली प्रहार जनशक्ति पार्टी से खुद बच्चू कडू सहित मेलघाट निर्वाचन क्षेत्र के राजकुमार पटेल भी निर्वाचित हुए थे और प्रहार के इन दोनों विधायकों ने उस समय उद्धव ठाकरे को अपना समर्थन दिया था. लेकिन ढाई वर्ष का अंतराल बितने के बाद शिंदे गुट द्बारा की गई बगावत के वक्त बच्चू कडू एवं राजकुमार पटेल ने शिंदे गुट का समर्थन करते हुए शिंदे गुट के साथ गुवाहाटी की यात्रा भी की थी. इसी के बाद उद्धव ठाकरे की सरकार गिर गई थी और शिंदे गुट द्बारा भाजपा के साथ हाथ मिलाने के चलते नई सरकार बनी थी. जिसमें एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री और देवेंद्र फडणवीस उपमुख्यमंत्री बने थे. उस समय से ही यह माना जा रहा था कि, पिछली सरकार में राज्यमंत्री रहे विधायक बच्चू कडू को नई सरकार के मंत्रिमंडल में भी जरुर शामिल किया जाएगा. लेकिन एक वर्ष का समय बीत जाने के बावजूद भी विधायक बच्चू कडू को मंत्री बनाए जाने के कोई आसार दिखाई नहीं दे रहे है. हालांकि इस विषय को लेकर विधायक बच्चू कडू हमेशा ही सुर्खियों में जरुर बने रहते है. वहीं दूसरी ओर उनकी ही पार्टी के दूसरे विधायक राजकुमार पटेल कभी भी मंत्री पद की रेस में शामिल नहीं रहे, बल्कि वे बडे ही मौन रहते हुए अपने निर्वाचन क्षेत्र के विकास हेतु ज्यादा से ज्यादा निधी लाने के प्रयास में जुटे रहते है. जिसमें वे काफी हद तक सफल भी हुए है. हालांकि विधायक बच्चू कडू की नाराजगी को दूर करने के लिए शिंदे सरकार ने उनके निर्वाचन क्षेत्र में सिंचाई प्रकल्प के लिए 550 करोड रुपयों की निधी आवंटित करने के साथ ही उनकी मांग के अनुरुप दिव्यांग मंत्रालय बनाते हुए दिव्यांगों के कल्याण हेतु 1 हजार करोड रुपयों की निधी भी आवंटित की है और विधायक बच्चू कडू को ही राज्य दिव्यांग कल्याण समिति का मंत्री दर्जा प्राप्त अध्यक्ष भी बनाया है. लेकिन फिर भी मंत्री पद तो मंत्री पद ही होता है. ऐसे में सभी की उत्सुकता इस बात को लेकर बनी हुई है कि, मंत्रिमंडल के संभावित विस्तार में अमरावती जिले से विधायक बच्चू कडू अथवा किसी अन्य विधायक को मंत्री पद मिलता है अथवा नहीं.
लेकिन यहां पर इस बात की अनदेखी नहीं की जा सकती कि, तीन दलों वाली शिंदे-भाजपा सरकार में भाजपा के 105 विधायक शामिल है. वहीं शिंदे गुट द्बारा अपने साथ शिवसेना के 40 विधायक एवं 10 निर्दलिय विधायक रहने का दावा किया गया है और अभी हाल फिलहाल पाला बदलकर शिंदे-फडणवीस सरकार में शामिल हुए अजित पवार ने अपने साथ राकांपा के करीब 30 से 35 विधायक रहने का दावा ठोका है. यानि कुलमिलाकर सरकार के पास 200 विधायकों का समर्थन है. जिसके बूते पूर्ण बहुमत रहने के चलते सरकार पूरी तरह से मजबूत स्थिति में है. ऐसे में सरकार में शामिल छोटे दलों, खासकर निर्दलियों की ‘बार्गेनिंग पॉवर’ कम हुई है और निर्दलिय विधायक इस समय सरकार पर दबाव बनाने अथवा सरकार के साथ सौदेबाजी करने की स्थिति में तो बिल्कुल भी नहीं है. वहीं दूसरी ओर राज्य मंत्रिमंडल के संभावित विस्तार को देखते हुए आगामी चुनावों के मद्देनजर सरकार में शामिल सभी विधायक इस समय मंत्री पद की रेस में है. ऐसे में ‘एक अनार, सौ बीमार’ वाली स्थिति बनी हुई है. वहीं सरकार चला रहे दलों के बडे नेताओं द्बारा भी आगामी चुनाव में होने वाले राजनीतिक नफे व नुकसान को देखते हुए ही मंत्री पदों का बंटवारा किया जाएगा. यह निश्चित है. चूंकि सरकार में शामिल राज्य के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे मूलत: ठाणे परिसर से वास्ता रखते है और उनकी सीधी लडाई ठाकरे गुट वाली शिवसेना के मुखिया उद्धव ठाकरे से है. ऐसे में ठाणे सहित मुंबई शहर व उपनगरीय क्षेत्रों में अपनी मजबूत पकड बनाए रखने हेतु सीएम शिंदे द्बारा मुंबई क्षेत्र के विधायकों को ज्यादा तवज्जों दी जाएगी. वहीं नागपुर यानि पूर्वी विदर्भ क्षेत्र से वास्ता रखने वाले उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस द्बारा संघ और भाजपा का मजबूत गढ रहने वाले नागपुर सहित पूर्वी विदर्भ में भाजपा का किला और अधिक मजबूत करने का प्रयास किया जाएगा. इसके अलावा पश्चिम महाराष्ट्र क्षेत्र की राजनीति पर अपना अच्छा खासा प्रभुत्व रखने वाले राकांपा नेता अजित पवार द्बारा अपने चाचा व राकांपा सुप्रीमो शरद पवार के समक्ष चुनौती पेश करने हेतु अपना प्रभाव साबित करने का प्रयास किया जाएगा. साथ ही साथ तीनों नेताओं द्बारा आपसी सहमति बनाते हुए कोंकण क्षेत्र को भी थोडा बहुत प्रतिनिधित्व देने पर विचार किया जा सकता है. जिसके चलते पश्चिम विदर्भ क्षेत्र अमरावती जिले के लिए मंत्रिमंडल के संभावित विस्तार में फिलहाल कोई जगह बनती दिखाई नहीं दे रही.
* विधान परिषद सदस्यों के लिए तो कोई गुंजाइश ही नहीं
चूंकि इस समय विधानसभा में ही राज्य सरकार के पास पूर्ण बहुमत से अधिक विधायक है. साथ ही मंत्री पद के लिए तीन दलों वाली सरकार में इच्छूक विधायकों की भी कोई कमी नहीं है. ऐसे में सरकार में शामिल दलों से विधान परिषद सदस्य रहने वाले विधायकों के लिए फिलहाल मंत्री पद की गुंजाइश थोडी कम ही दिखाई दे रही है. इन तमाम बातों के मद्देनजर कहा जा सकता है कि, राज्य मंत्रिमंडल के संभावित विस्तार में अमरावती जिला लगभग अच्छूता व अनदेखा ही रह जाएगा.
* कल ही जताई थी बच्चू कडू ने नाराजगी
यहां यह विशेष उल्लेखनीय है कि, कल सुबह ही विधायक बच्चू कडू ने एक न्यूज चैनल से बातचीत के दौरान मंत्री पद को लेकर अपना दावा छोडने और इस संदर्भ में सुबह 11 बजे घोषणा कराने की बात कहीं थी. जिसके बाद उन्होंने एक पत्रवार्ता बुलाते हुए बताया था कि, पत्रवार्ता से पहले उनकी सीएम शिंंदे के साथ करीब आधे घंटे तक मोबाइल पर बातचीत हुई है और सीएम शिंदे ने उन्हें 17 तारीख को मिलने का वक्त दिया है. ऐसे में वे 18 तारीख को अपना अगला निर्णय घोषित करेंगे. इसके बाद से माना जा रहा था कि, संभवत: विधायक बच्चू कडू को लेकर राज्य सरकार द्बारा मंत्री पद के संदर्भ में कोई विचार किया जा सकता है. लेकिन राजनीतिक सूत्रों के मुताबिक मंत्रिमंडल के संभावित विस्तार में अमरावती जिले विशेष कर निर्दलिय विधायकों का नंबर लगना थोडा मुश्किल ही है.

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