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इस बार भी जमकर होगी नायलॉन मांजे की बिक्री

जुलाई, अगस्त माह में ही हो जाती है माल की एडवॉन्स बुकिंग

* ऐन समय पर लकीर पीटता रहता है प्रशासन
अमरावती/ दि.13 – हर साल मकर संक्रांति के समय बडे पैमाने पर पतंगबाजी होती है और पतंगबाजी करने के साथ ही पेंच लडाने के शौकीन लोगों व्दारा अपनी पतंग बचाने और दूसरों की पतंग काटने के लिए चायना मांजा कहे जाते नायलॉन मांजे का जमकर प्रयोग किया जाता है. जबकि नायलॉन मांजे के उत्पादन व बिक्री पर प्रतिबंध लगाया गया है, लेकिन इसके बावजूद पतंगबाजी में खुलेआम इस मांजे का प्रयोग होता है. यू तो प्रशासन व्दारा समय-समय पर नायलॉन मांजे की विक्री को रोकने हेतु छिटपुट कार्रवाईयां की जाती है और संक्रांत पर्व आते-आते ऐसी कार्रवाईयों का सिलसिला कुछ तेज हो जाता है, लेकिन इसके बावजूद भी नायलॉन मांजे की बिक्री अब तक रुक नहीं पाई है. हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी मकर संक्रांति का पर्व आते ही जिला प्रशासन, मनपा प्रशासन तथा पुलिस विभाग में नायलॉन मांजे की विक्री को रोकने हेतु काफी हद तक सक्रीयता देखी जा रही है. जबिक हकीकत यह है कि, नायलॉन मांजे की बडी खेप जुलाई व अगस्त माह के आसपास ही अमरावती के होलसेलरों व सेमी होलसेलों के पास पहुंच जाती है. और एक बार बडे व्यापारियों के पास नायलॉन मांजे की खेप पहुंच जाने के बाद उसकी हर हाल में बिक्री होती है. यह सिलसिला विगत कई वर्षों से यू ही बतस्तूर चल रहा है.
जानकारी के मुताबिक नायलॉन मांजे का निर्माण दिल्ली व नोएडा क्षेत्र में होता है. जहां पर 25 से अधिक छोटी-बडी फैक्टरियों में पूरे सालभर नायलॉन मांजे का उत्पादन चलता है. इन्हीं कारखानों से देशभर में नायलॉन मांजे की खेप भेजी जाती है और नायलॉन मांजे की नेटवर्क की शुुरुआत इन्हीं कारखानों से होेने वाली खरीदी से शुरु होकर ट्रान्सपोर्टींग तथा होलसेल व रिटेल बिक्री तक पहुंचता है. जिसके बाद यह मांजा ग्राहकों तक पहुंचता है. जानकारी के मुताबिक कारखाने में होलसेलर के लिए एक पेटी की कीमत करीब 7,500 रुपए होती है. एक पेटी में 25 किलों नायलॉन मांजा होता है. अमुमन एक किलो में 15 हजार मीटर मांजा आता है. यानी 25 किलों वाली पेटी में 37.50 लाख मीटर मांजे का समावेश रहता है. इसी मांजे को एक चकरी में 60 ग्राम यानी 900 मीटर लपेटा जाता है. पश्चात इसकी ब्रिकी 500 से 1000 रुपए की दर पर चोरी-छिपे तरीके से होती है. जिसके जरिये लागत मूल्य की तुलना में कई गुना अधिक पैसा बनाया जाता है. एक अनुमान के मुताबिक अमरावती शहर सहित जिले में प्रति वर्ष नायलॉन मांजे की करीब 20 से 22 पेटियों की खेप आती है. जिसे यहां के होलसेलरों व सेमी होलसेलरों व्दारा पुलिस व प्रशासन की नजरों से बचाकर रिटेलरो के जरिये बेचा जाता है.
* नए-नए लोग उतर रहे है व्यापार में
विशेष उल्लेखनीय है कि, पतंगों व मांजे का परंपरागत व पुश्तैनी व्यवसाय करने वाले लोगों व प्रतिष्ठानों व्दारा नायलॉन मांजे की खरीदी-विक्री से काफी पहले ही तौबा कर ली गई. ऐसे में अब उनके पास पतंग के साथ चकरी, साधी सुत्तल और सामान्य घोटा हुआ मांजा, विक्री हेतु उपलब्ध होते है. वहीं इन दिनों चाय की टपरी, पानठेले, सब्जी की दुकान व सडक किनारे लगने वाले हाथठेलों पर चोरी-छिपे तरीके से चायना मांजे की विक्री चलती है. खास बात यह भी है कि, इन स्थानों में किसी भी अनजान व्यक्ति को नायलॉन मांजा नहीं दिया जाता. बल्कि जान-पहचान के जरिये आने वाला व्यक्ति ही इन स्थानों से नायलॉन मांजा खरीद सकता है.
* प्लास्टिक थ्रेड के नाम से होती है ढुलाई
जानकारी के मुताबिक दिल्ली व नोएडा क्षेत्र में स्थित कारखानों से ट्रान्सपोर्ट के जरिये नायलॉन मांजे की खेप को अमरावती सहित देश के अलग-अलग हिस्सों में भेजा जाता है और इसके लिए ट्रान्सपोर्ट में प्लास्टिक थ्रेड (धागा) के नाम से रसिद यानी बिल्टी बनाई जाती है. जिसके कारण रास्ते अथवा शहर में इसकी कोई जांच पडताल नहीं होती.
* छोटी मछलियां ही आती है पकड में
स्थानीय प्रशासन व्दारा अब तक कार्रवाई के नाम पर गली-कुचों में रहने वाले किसी विक्रेता को पकडकर उसके पास से थोडा-बहुत नायलॉन मांजा जब्त किया जाता है और उसके खिलाफ कुछ दंडात्मक कार्रवाई की जाती है. लेकिन आज तक नायलॉन मांजा उत्पादक कारखाने या किसी बडे होलसेलर के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई है. जिसे लेकर हैरत जताई जा सकती है.
* अब तक घटित हो चुके कई हादसे
बता दे कि, नायलॉन मांजे की वजह से अब तक कई हादसे घटित हो चुके है और इस मांजे की चपेट में आने के चलते कई बेकसूरों को अपनी जान से हाथ तक धोना पडा है. साथ ही कई लोग घायल होकर अपंगत्व का शिकार भी हुए है. ऐसे में विगत लंबे समय से नायलॉन मांजे के उत्पादन व विक्री को पूरी तरह से खत्म किये जाने मांग की जा रही है, लेकिन इसके बावजूद भी ऐसा अब तक नहीं हो पाया है. क्योंकि इसके खिलाफ तमाम कार्रवाईयां कागजी खानापूर्ति की तरह की जाती है और मकर संक्राति का पर्व सामने दिखाई देते ही सांप निकल जाने पर लाठी पिटने की तरह कार्रवाई करनी शुरु की जाती है. जबकि हकीकत यह है कि, पतंगबाजी का सीजन शुरु होने से पहले ही अमरावती शहर में नायलॉन मांजे की खेप का आना और बिकना शुरु हो जाता है. लेकिन इसकी ओर प्रशासन का ध्यान ही नहीं जाता. ऐसे में कहा जा सकता है कि, जिस तरह से चायना मांजा काफी मजबूत होता है और उसे काट पाना आसान नहीं होता, उसी तरह चायना मांजा की विक्री का नेटवर्क भी काफी मजबूत है और उसे तोड पाना आसान नहीं.

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