अमरावतीमहाराष्ट्र

अमरावती से हजारों मुखौटे समस्त प्रांत में भेजे जाते

* 50 हजार से अधिक मुखौटे अमरावती में ही तैयार
अमरावती/दि.2– गणपति के आगमन पश्चात तीसरे दिन महालक्ष्मी का घर-घर आगमन होता है. ज्येष्ठा और कनिष्ठा गौरी के मुखौटे बदले जाते हैं. ऐसे में समस्त महाराष्ट्र में अमरावती में तैयार मुखौटे की काफी डिमांड रहने की जानकारी मूर्तिकारों ने दी और बताया कि, इस वर्ष भी लगभग 50-55 हजार मुखौटे संभाजी नगर, पंढरपुर, हिंगोली, पुणे सहित प्रदेश के विभिन्न शहरों-गांवों में भेजे जा रहे हैं.
* एक कारखाने में 800 जोडी
अमरावती में तैयार महालक्ष्मी मुखौटे की डिमांड रहने से यहां 100 से अधिक कारखाने है. सोनसले, आजने, जिराफे, कंचनपुरे, खेडकर के यहां मुखौटे तैयार होते है. कई परिवारों का यह पारंपारिक व्यवसाय है. पीओपी से तैयार मुखौटे सहज आकर्षित करते हैं. सूत्रों ने बताया कि, एक कारखाने में 600-800 जोडी मुखौटे बनाए जाते है.
* अमरावती की विशेषता
महालक्ष्मी के मुखौटे अन्य जगह भी बनते है. किंतु अमरावती में तैयार मूर्तियां गाल पर गड्ढा लिए होती है. इसलिए यही यहां की मूर्तियों की विशेषता बनी है. हालांकि, बगैर गाल पर गड्ढे की मूर्तियां भी रहती है. 7-8 इंच के मुखौटे की मांग रहती है. मूर्तिकार बताते है कि, मैट ग्लोस फिनिशिंग की जाती है. जिससे आकर्षण बढ जाता है.
* मूर्तिकार बताते दिक्कत
मूर्तिकार सचिन कंचनपुरे इन मुखौटे के होलसेल बिक्रेता भी है. उनका कहना है कि, इन दिनों मुखौटे तैयार करने कारीगर मिलना मुश्कील हो गया है. 400-500 रुपए मजदूरी कारीगर लेते हैैं. महंगाई बढने पर भी हमने मुखौटे के रेट नहीं बढाए हैं.
* जिराफे का कहना
अमरावती में अजय जिराफे के यहां पीढी से यह मूर्तिकला का काम हो रहा है. वें और उनके भाई अपने पिता की कला की विरासत को संजोए हुए है. उनकी बनाई महालक्ष्मी की मूर्तियां देश-विदेश भेजी जाती है. अजय जिराफे ने अमरावती मंडल को बताया कि, गाल पर गड्ढा, स्मित हास्य वाले महालक्ष्मी के मुखौटे बडी डिमांड में है. इस बार लगभग हजार मुखौटे तैयार किए गए. अधिकांश दूसरे शहरों में भेजे गए हैं. जिराफे की बनाई गणपति मूर्तियां भी फेमस है. देश के अनेक भागों में लोग उन्हें ऑर्डर देकर मूर्तियां मंगवाते हैं.

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