अकोला के एक ही परिवार के तीन लोग पहुंचे एवरेस्ट के बेस कैम्प तक
दल में शामिल दो महिलाओं की आयु 60 वर्ष के आसपास
8 दिन में अभियान किया पूरा
अकोला/दि.5 – शहर के प्रतिष्ठित नागरिक डॉ. अंजलि व डॉ. राजेंद्र सोनोने सहित सुरेखा दिलीप सोनोने इन तीन लोगों ने दुनिया की सबसे उंची चोटी माने जाते एवरेस्ट के बेस कैम्प तक पर्वतारोहण का अभियान गुरुवार 3 मई को सफलतापूर्वक पूरा किया. विशेष उल्लेखनीय है कि, एक ही परिवार से वास्ता रखने वाले इन तीन लोगों के दल में शामिल दोनों महिलाओं की आयु 60 वर्ष के आसपास है. लेकिन इसके बावजूद दोनों महिलाओं ने एवरेस्ट बेस कैम्प तक बेहद कठिन चढाई को प्रतिकुल मौसम का सामना करते हुए 8 दिन में पूरा किया.
बता दें कि, सोनोने परिवार के तीनों सदस्यों ने अपना यह अभियान 26 अप्रैल को नेपाल के हिमालयीन क्षेत्र में स्थित लुक्ला नामक बेहद दुर्गम गांव से शुरु किया. जहां से आगे बढते हुए फाकडिंग, नामचे बाजार, टेंगबोचे, देबोचे, फेरिचे, दिंगबोचे, लोगुचे, गोरखशेफ व काला पत्थर जैसे दुर्गम क्षेत्रों को पार करते हुए यह तीनों लोग 13 मई को ऐवरेस्ट के बेस कैम्प तक पहुंचे. ज्ञात रहे कि, ऐवरेस्ट का बेस कैम्प समुद्र सतह से 5,364 मीटर की उंचाई पर है. जहां पर पूरे साल भर बर्फबारी होती रहती है. इसके अलावा समुद्र सतह से काफी उंचाई पर रहने के चलते यहां पर ऑक्सीजन का प्रमाण काफी कम होता है. ऐसे में सोनोने परिवार के तीनों सदस्यों ने लगातार हो रही बारिश व हिमवर्षा, 0 से 20 डिग्री नीचे तापमान के बीच अपना अभियान जारी रखा और 8 दिनों में अपनी मुहिम को सफलतापूर्वक पूर्ण करते हुए ऐवरेस्ट के बेस कैम्प पर पहुंचकर बडी शान के साथ भारतीय ध्वज तिरंगा फहराया.
इस अभियान को सफल करने हेतु सोनोने दम्पति को मुंबई के रमेश कदम, नाशिक के महाजनबंधु, अजिंक्य फिटनेस पार्क के संचालक धनंजय भगत, निजी ट्रेनर अर्जुन पाटिल व काटमांडू निवासी मैरेथॉन मित्र शेर थारु का समय-समय पर बहुमूल्य मार्गदर्शन मिला.
* रोजाना करते थे 12 घंटे की कठिन चढाई
अपनी पीठ पर 10 से 15 किलो का वजन लेकर रोजाना 10 से 12 घंटे तक हिमालय की चढाई को चढने का कठिन कार्य सोनोने परिवार के तीनों सदस्यों ने करीब 8 दिनों तक किया. जिसके लिए वे विगत लंबे समय से कडी मेहनत करते हुए तैयारी कर रहे थे. सबसे खास बात यह है कि, इन तीनों सदस्यों की उम्र 60 वर्ष के आसपास है और इस आयु में एवरेस्ट के बेस कैम्प तक सफलतापूर्वक चढाई करते हुए इन तीनों ने युवा पीढी के सामने एक प्रेरणादायी आदर्श स्थापित किया है. विशेष यह भी है कि, डॉ. अंजलि व सुरेखा सोनोने का यह उनके जीवन का पहला ट्रैकिंग था. इसके बावजूद दोनों ने दृढ निश्चय के साथ इसे सफलतापूर्वक पूरा किया. इसके साथ ही खास तौर पर उल्लेखनीय यह भी है कि, अपने इस अभियान का नियोजन इन तीनों ने खुद किया था और इसमें किसी भी यात्रा कंपनी का कोई सहभाग नहीं था.