पिता सहित तीन बेटों को एकसाथ सुनाई गई जेल की सजा
पथ्रोट के देशभक्त खडेकर परिवार की ऐसी भी शौर्यगाथा
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दो भाईयों ने भुगती थी पिता और एक भाई की सजा
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देश में अपनी तरह की एकमात्र घटना
अमरावती/दि.15 – स्वाधीनता संग्राम में हिस्सा लेने के चलते अचलपुर तहसील अंतर्गत पथ्रोट गांव निवासी खडेकर परिवार के सभी पुरूषों को अंग्रेज पुलिस ने जेल में डाल दिया था और पिता सहित तीन बेटों को एकसाथ सख्त कारावास की सजा सुनाई गई थी. इस समय घर में कोई भी पुरूष नहीं बचा. ऐसे में परिवार की महिलाओ की देखभाल करने के लिए दो भाईयों ने अंग्रेज अधिकारियों के सामने एक प्रस्ताव रखा. जिसमें कहा गया कि, हमारे पिता व एक भाई को जेल से छोड दिया जाये और हम दोनों भाई मिलकर अपनी सजा के साथ-साथ उन दोनों की सजा भी भुगतने के लिए तैयार है. इस प्रस्ताव को अंग्रेज अधिकारियों ने स्वीकार कर लिया. जिसके बाद पिता प्रल्हादसा राजाराम खडेकर व रामचंद्र प्रल्हादसा खडेकर इन पिता-पुत्रों को जेल से रिहा कर दिया गया. वहीं बबनसा प्रल्हादसा खडेकर व जगन्नाथसा प्रल्हादसा खडेकर इन दोनों भाईयों ने अपनी सजा के साथ-साथ अपने पिता व भाई की सजा भी भुगती. यह स्वाधीनता संग्राम के दौरान घटित हुई अपनी तरह की पहली व एकमात्र घटना थी.
पथ्रोट निवासी खडेकर परिवार ने सन 1942 को ‘चले जाओ’ आंदोलन में सक्रिय सहभाग लिया था और इन चारों पिता-पुत्र पर रेल्वेलाईन की तोडफोड करने का आरोप था. जिसके लिए जगन्नाथसा खडेकर को चार साल के सश्रम कारावास तथा बबनसा खडेकर को दो साल के सश्रम कारावास सहित 15 कोडे की सजा सुनाई गई थी. वही प्रल्हादसा खडेकर व रामचंद्र खडेकर को तीन माह की जेल के बाद रिहा कर दिया गया. इस देशभक्त परिवार की शौर्यगाथा आज भी युवाओं को प्रेरित करती है.
संडसी की वजह से पकडे गये सभी
रेल्वे लाईन उखाडने के लिए इन चारों पिता-पुत्र शकुंतला रेल्वे की पटरी पर एक संडसी व कुछ साहित्य लेकर गये थे और रेल्वे लाईन को नुकसान पहुंचाने के बाद वापिस लौटते समय उनकी संडसी वहीं पर छूट गई. जिस पर प्रल्हादसा सोनार का नाम खुदा हुआ था और इसी संडसी की वजह से पूरा परिवार ब्रिटीश पुलिस की पकड में आया.
ताम्रपत्र से हुआ था सम्मान
सन 1972 में देश की आजादी के 25 वें वर्ष पर आयोजीत समारोह में खुद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने खडेकर परिवार को ताम्रपत्र देकर राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया था.
कोडों की मार पर लगाया जाता था नमक
खडेकर पिता-पुत्र के अन्य सहयोगियों की जानकारी हासिल करने के लिए अंग्रेजों द्वारा उन्हें कोडे मारे गये और इससे हुए जख्मों पर नमक से सने जाडे कपडे लपेट दिये जाते थे. जिससे उन्हें असहनीय वेदनाएं होती थी. जिन्हें इन चारों देशभक्त पिता-पुत्रों ने हंसते-हंसते सहन किया और आज उनकी संघर्ष गाथा सभी को प्रेरित करती है.