अमरावती

मेलघाट में योग्य पुनर्वसन से बाघों को मिला हक्क का अधिवास

महाराष्ट्र व मध्यप्रदेश पुनर्वसन प्रक्रिया में अग्रेसर रहे

अमरावती/प्रतिनिधि दि.२१ – व्याघ्र प्रकल्प के गांवों को जंगल से काफी दूर न ले जाते हुए शहर व जंगल के निकट ही उनका पुनर्वसन किया तो उसके सकारात्मक परिणाम दिखाई देते है. मेलघाट व्याघ्र प्रकल्प में इस पध्दति से पुनर्वसन करने से उसके सकारात्मक परिणाम अब दिखाई देने लगे है. चुर्णी, वैराट, पस्तलाई इस क्षेत्र में आदिवासियों ने पुनर्वसन को प्रतिसाद देने से यह भ्रमण मार्ग बाघों के लिए पोषक रहा है. इस क्षेत्र में लगातार व्याघ्र दर्शन हो रहे है. शनिवार को पस्तलाई की शिक्षिका को आधा घंटा व्याघ्र दर्शन हुए.
महाराष्ट्र व मध्यप्रदेश यह पुनर्वसन प्रक्रिया में अग्रेसर है. 1997 में महाराष्ट्र के मेलघाट व्याघ्र प्रकल्प की पुनर्वसन प्रक्रिया शुरु हुई. बोरी, कोहा, कुंड आदि तीन गांवों का पुनर्वसन 1997 और 2003 के दौरान हुआ. 2011 के बाद 22 से 23 किलोमीटर दूरी पर स्थित वैराट, चुर्णी और पस्तलाई इन तीन गांवों का पुनर्वसन हुआ. इसमें से वैराट व चुर्णी गांवों का पुनर्वसन पहले तथा वैराट इस व्याघ्र प्रकल्प का चिखलदरा के समीप गाभा क्षेत्र व महत्व का व्याघ्र अधिवास था. बोरी, कोहा और कुंड को लगकर का वह प्रदेश था, जिससे पस्तलाई गांव का पुनर्वसन प्रलंबित था. वैराट व पस्तलाई की पुनर्वसन प्रक्रिया में तत्कालीन उपवन संरक्षक रविंद्र वानखडे व तत्कालीन क्षेत्र संचालक डॉ.दिनेशकुमार त्यागी तथा मेलघाट के समूचे कर्मचारियों ने गांववासियों से संपर्क किया. गांववासी भी उसके लिए स्वेच्छा से तैयार हुए और इन गांवों का पुनर्वसन हुआ. पर्यटन पर जोर न देते हुए स्थानीय आदिवासियों को रोजगार कैसे उपलब्ध होगा और पुनर्वसन प्रक्रिया में कैसे गति आयेेगी इस ओर उन्होंने ध्यान दिया. वहां उत्तम कुरण विकास का कार्यक्रम अमल में लाने से तृणभक्षी प्राणियों की संख्या बढी और बाघों को उसकी शिकार व अधिवास मिला. चिखलदरा से 11 किलोमीटर दूरी पर स्थित सर्वोच्च जगह रहने वाले वैराट में बाघ को लगातार संचार करने के लिए अधिवास मिला. कोहा और कुंड इस गुगामल वन्यजीव विभाग अंतर्गत आने वाले गांवों का भी पुनर्वसन होने से यहां बाघों का मुक्त संचार है. किंतु शनिवार 17 जुलाई के पस्तलाई की शिक्षिका को पहली बार ही रास्ते पर तकरीबन आधा घंटा व्याघ्र दर्शन हुए.

  • जरुरतें भी पूर्ण, रोजगार भी मिला

वैराट गांव में तकरीबन 150 घर थे. यहां गवली समाज बडी मात्रा में था और चराई का बडा बोझ जंगल पर था तथा कोरकू का भी जंगल पर ही बोझ था. किंतु वन विभाग की आवाज को प्रतिसाद देते हुए वे पुनर्वसन के लिए तैयार हुए. चांदूर बाजार परिसर के घाटलाडकी क्षेत्र में तथा परतवाडा के नरसाला क्षेत्र में उनका पुनर्वसन हुआ. व्याघ्र प्रकल्प से बाहर करते हुए जंगल से उन्हें काफी दूर न ले जाते हुए समीप के गांव में ही पुनर्वसन किया गया. जिससे उनकी जरुरतें भी पूर्ण हुई और उन्हें रोजगार भी मिला.

व्याघ्र प्रकल्प के गांवों को पुनर्वसन के साथ ही बाघों का अस्तित्व रहने वाले अभ्यारण्य के व व्याघ्र संचार मार्ग के गांवों का पुनर्वसन होना आवश्यक है. संचार मार्ग की दुरावस्ता देख इस ओर तत्काल ध्यान दिया तो मानव-वन्यजीव संघर्ष भी कुछ प्रमाण में कम होने मदद होगी. विशेषकर मध्यप्रदेश महाराष्ट्र सीमा को लगकर रहने वाले राज्यों की इसपर संयुक्त रुप से कृती अपेक्षित है. साथ ही पुनर्वसन हुई जगह पर अति पर्यटन न करते हुए अन्य पर्यायी वनक्षेत्र पर्यटन के लिए योग्य रहेगा.
– यादव तरटे पाटील, सदस्य, महाराष्ट्र राज्य वन्यजीव मंडल

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