अमरावती

पितृऋण चुकाने श्राद्ध और नित्य श्री गुरुदेव दत्त का जप करें : पू. नीलेश सिंगबालजी

पितृपक्ष एवं श्राद्धविधि : शंका व समाधान विशेष संवाद व्दारा मार्गदर्शन

अमरावती/दि.22 – हिंदू धर्म में ईश्वर प्राप्ति हेतु देवऋण, ऋषिऋण, पितृऋण और समाजऋण ऐसे चार प्रकार के ऋण चुकाने के लिए बताया गया है. इनमें से पितृऋण चुकाने के लिए पितरों की मुक्ति हेतु प्रयास करना आवश्यक है. पितरों की मुक्ति हेतु श्राद्ध करना महत्वपूर्ण है. जिन्हें संभव है, वे पितृपक्ष में पुरोहितों को बुलाकर श्राद्ध विधि करें, परन्तु कोरोना के कारण पुरोहित अथवा श्राद्ध सामग्री के अभाव में जिन लोगों के लिए श्राद्ध करना संभव न हो, वे आपद्धर्म के रुप में संकल्पपूर्वक आमश्राद्ध, हिरण्यश्राद्ध अथवा गोग्रास अर्पण करें. साथ ही पूर्वजों को आगे की गति प्राप्त होने हेतु और अतृप्त पूर्वजों से कष्ट न हो, इसलिए नियमित रुप से साधना करें. श्राद्ध विधि के साथ ही पितृपक्ष में अधिकाधिक समय साथ ही अन्य समय प्रतिदिन कम से कम 1 से 2 घंटे श्री गुरुदेव दत्त यह नामजप सभी को करना चाहिए. ऐसा मार्गदर्शन हिंदू जनजागृति समिति के धर्मप्रसारक संत पू. नीलेश सिंगबालजी ने किया. गणेशोत्सव के उपरांत आरंभ हो रहे पितृपक्ष के निमित्त सनातन संस्था और हिंदू जनजागृति समिति के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित पितृपक्ष एवं श्राद्ध विधि : शंका और समाधान इस विषय पर आयोजित विशेष संवाद में वे बोल रहे थे.
उन्होंने आगे कहा कि हिंदुओं में धर्म शिक्षा का अभाव, पश्चिमी अंधानुकरण और हिंदू धर्म को तुच्छ मानने की प्रथा के कारण अनेक बार श्राद्धविधि की अनदेखी की जाती है. परन्तु आज भी अनेक पश्चिमी देशों के हजारों लोग भारत के तीर्थ क्षेत्रों में आकर पूर्वजों को आगे की गति प्राप्त होने हेतु श्रद्धा से श्राद्धविधि करते हैं. प्रथम श्राद्धविधि मनु ने की थी. राजा भगीरथ ने पूर्वजों की मुक्ति हेतु कठोर तपस्या की थी. त्रेतायुग में प्रभु रामचंद्र के काल से लेकर छत्रपती शिवाजी महाराज के का तक श्राद्धविधि का उल्लेख प्राप्त होता है. इसलिए तथाकथित आधुनिकतावादियों व्दारा श्राद्ध के विषय में किए गए किसी भी दुष्प्रचार में न फंसे. पू. नीलेश सिंगबालजी ने बताया कि कोरोना महामारी के काल में अपनी क्षमतानुसार पितृऋण चुकाने के लिए श्रद्धापूर्वक श्राद्धविधि करें.
श्राद्ध न करने पर हमारे पूर्वज अतृप्त रहने से दोष निर्माण होता है. श्राद्ध विधि के कारण पूर्वजों को मर्त्य लोक से आगे जाने के लिए ऊर्जा प्राप्त होती है. मृत्यु के उपरांत भी सद्गति हेतु श्राद्धविधि बताने वाला हिंदू धर्म एकमेवाव्दितीय है. वर्तमान में समाज में धर्म शिक्षा के अभाववश श्राद्ध करने के स्थान पर सामाजिक संस्था अथवा अनाथालयों को दान दें, ऐसी भ्रामक संकल्पना का प्रचार किया जाता है, परन्तु ऐसा करना अनुचित है. धार्मिक कृति धर्मशास्त्रानुसार करना ही आवश्यक है. तद्नुसार कृति करने पर ही पितृऋण से मुक्त हो सकते हैं, ऐसा भी पू. नीलेश सिंगबालजी ने बताया.

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