अमरावतीविदर्भ

मेलघाट के आदिवासी किसान अब भी साहूकारों के चंगूल में

(melghat)पावतियां रहने के बावजूद गिरवी छूडाने की जानकारी दर्ज

किसका कर्ज माफ हुआ, किसी को नहीं पता

प्रतिनिधि/दि.१८

परतवाडा – मेलघाट के आदिवासी किसानों का साहूकारी कर्ज तो माफ नहीं हुआ है, लेकिन साहूकारों द्वारा दिये गये गिरवी पत्र किसानों के पास रहने के बावजूद सरकारी रजिस्टरों में इस गिरवी को छूडाये जाने की बात दर्ज की गई है. यह सनसनीखेज मामला सोमवार को उजागर हुआ, जब यहां के सहायक निबंधक कार्यालय में आदिवासी किसानों ने पहुंचकर मामले की जानकारी दी. इस प्रकरण में लाखों रूपयों का अपहार होने की संभावना जतायी जा रही है. चिखलदरा पंचायत समिती के सभापति बंसी जामकर ने सोमवार को परतवाडा स्थित सहायक उपनिबंधक कार्यालय में पहुंचकर जानना चाहा कि, चिखलदरा तहसील के आदिवासी किसानों का साहूकारी कर्ज सरकार द्वारा आदेश दिये जाने के बाद भी माफ क्यो नहीं हुआ. इस समय सहायक उपनिबंधक अच्युत कोल्हे द्वारा दी गई जानकारी में पता चला कि, केवल उंगलियों पर गिननेलायक किसानों का ही साहूकारी कर्ज माफ हुआ है तथा शेष किसानों को कर्जमाफी समिती ने अपात्र साबित किया है. इसके बाद पंस सभापति बंसी जामकर ने आरोप लगाया कि, इस मामले में संबंधित साहूकारों से मिलीभगत करते हुए आदिवासी किसानों द्वारा गिरवी रखे गये खेतों एवं सामानों को हडप लिया गया है. ऐसे में इस मामले की सघन जांच करवाया जाना बेहद आवश्यक है. यदि ऐसा नहीं किया जाता है, तो क्षेत्र में तीव्र जन आंदोलन शुरू किया जायेगा. इस समय बंसी जामकर के साथ बाबूलाल बेलसरे, गजानन खडके, परसराम खडके, सीताराम खडके, सुरेश बेलसरे, शेषराव कासदेकर, लक्ष्मण खडके, रूपराव कासदेकर, दयाराम बेलसरे, किसना बेलसरे, मधु खडके व गजू कासदेकर आदि उपस्थित थे.

  • जिलास्तरीय समिती द्वारा जांच करने के बाद बैठक लेते हुए की गई सिफारिशों के अनुसार किसानों का कर्ज माफ किये जाने की सूची तैयार की गई है और सरकारी नियमानुसार किसानों का साहूकारी कर्ज माफ किया गया है.

– अच्युत उल्हे, सहायक निबंधक, अचलपुर

  • जब गिरवी पत्र घर में है, तो गिरवी कर्ज कैसे माफ हुआ

सहायक उपनिबंधक अच्युत उल्हे से पंस सभापति बंसी जामकर ने जानना चाहा कि, जब किसानों द्वारा कर्ज लेते समय तैयार किया गया गिरवी पत्र अब भी किसानों के ही घर में पडा हुआ है, तो बिना गिरवी पत्र के उनका कर्ज कैसे माफ हुआ. इसका सीधा मतलब है कि, एक ओर निजी साहूकारों को कर्ज की रकम सरकारी तिजोरी से दे दी गई है, वहीं दूसरी ओर किसानों पर अब भी कर्ज बना हुआ है. यह सीधे-सीधे किसानों पर दोहरी मार और सरकारी पैसों के अपहार का उदाहरण है. साथ ही कई पात्र किसानों को इस कर्जमाफी के लिए पात्र नहीं माना गया, यह भी किसानों के साथ एक तरह से अन्याय है. अत: इस पुरे मामले की सघनता से जांच की जानी चाहिये.

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