अमरावतीलेख

आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज को विनयांजलि

अब सिर्फ उनकी यादें ही बची हैं

थे पाव में छाले तथापि थी होठों पर मुस्कान, अहिंसक धर्म की आन बान और शान,

पृथ्वी पर उपस्थित थे त्यागी तपस्वी भगवान,

आज कर गये मोक्ष की ओर प्रस्थान. अब शेष है पवित्र स्मृतियां.

दिंगबर जैन मुनि परंपरा के संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज ने 18 फरवरी को सल्लेखना से पहले समाधि ली थी. जागृत अवस्था में वे आचार्य पद के दायित्व से मुक्त हो गए और संन्यास लेकर तीन दिन तक उपवास किया. उनका जन्म मल्लपाजी अष्टगे के घर में कर्नाटक के बेलगाम जिले के सदलगा में हुआ. उनके धार्मिक और आध्यात्मिक माता-पिता ने उन्हें धार्मिक और आध्यात्मिक शिक्षा दी. पढ़ाई के दौरान, स्कूली शिक्षा तक उनका रुझान धार्मिक, जिनेंद्र दर्शन, पूजा, भक्ति कार्यों की ओर था, जो मंदिरों, व्याख्यानों, सत्संगों में जाते थे. 20 साल की उम्र में, सुखी जीवन के बारे में सोचे बिना, उन्होंने आचार्य देशभूषण महाराज के मार्गदर्शन में साधना के पथ पर अपना पहला कदम उठाया और ब्रह्मचर्य व्रत लिया और धर्म कार्य करना शुरू कर दिया.

22 साल की उम्र में ज्ञान प्राप्त करते हुए, उन्होंने संसार की सभी बाह्य वस्तुएँ त्याग दी और मुनिदीक्षा ली तथा विद्याधर ज्ञान के सागर में विचरण करने लगे. उन्होंने संस्कृत, कन्नड़, मराठी, अंग्रेजी, हिन्दी आदि का अध्ययन-अध्यापन किया. सादा जीवन जीने की शिक्षा विद्याधर में दी जाती थी. विद्यासागरजी महाराज के गुरु श्री ज्ञानसागरजी महाराज के डाक टिकट का विमोचन तथा मुकमाटी मराठी किताब का विमोचन राष्ट्रपति भवन में तत्कालीन राष्ट्रपती प्रतिभाताई पाटील ने किया गया. उनके मार्गदर्शन एवं प्रेरणा से मन्दिरों का जीर्णोद्धार हुआ तथा अनेक स्थानों पर नये मन्दिरों का निर्माण हुआ. समाज के बालक-बालिकाओं को शिक्षा मिले, ध्यान मिले, धर्म की शिक्षा मिले, इस विचार से उन्होंने प्रतिभा स्थली का निर्माण कर बालिकाओं के जीवन को शिक्षित किया और हथकरघा उद्योग में हजारों भाइयों को रोजगार दिलाया, गांवों में गौशालाएं स्थापित कीं. प्रशासनिक सेवा में अधिकारी के रूप में तैयार करने की दृष्टि से हजारों जैन बंधूओको मार्गदर्शन किया गोमातान दयोदय सेवा संघ केंद्र की स्थापना के लिए बहुमूल्य मार्गदर्शन प्रदान किया तथा केंद्र का निर्माण करवाया. उन्होंने अनेक क्षुल्लक, ऐलक, महाराज, आर्यीका, ब्रह्मचारी और कई शिष्य बनाये. हाल ही में उनका चातुर्मास महाराष्ट्र के शिरपुर क्षेत्र में हुआ था. उनकी मधुर आवाज और प्रवचनो से कई लोगों को जीवन जीने की दिशा मिली. उनके विचार हमेशा समाज के लिए प्रेरणास्रोत हैं. समाज उनके विचारो पर चलेगा और उन्होने दी हुई शिक्षा को स्वीकार करेगा और मै भी उनके विचारो पर चलने का प्रयास करुंगा. आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज को मैं पेंढारी परिवार की ओर से विनयांजलि अर्पण करता हूं.
-अभिनन्दन पेंढारी, सचिव,
सकल जैन समाज

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