अमरावती प्रतिनिधि/दि.२५ – हर साल चातुर्मास तक भगवान निद्रा में लीन रहते है. दीपावली पश्चात आनेवाली देवउठनी एकादशी पर भगवान निद्रा से जागते है,ऐसी मान्यता हैे. इस दिन भी भक्त अपने आराध्य की आराधना में तल्लीन होकर ब्रत आदि रखते है.जिसे २४ घंटे बाद खोला जाता है. इसी प्रथा का पालन करते हुए भक्तों द्वारा बुधवार, २५ नवंबर को देव उठनी एकादशी निर्मित ब्रत आदि रखकर भगवान की पूजा अर्चना की जाएगी.
गुरूवार, २६ नवंबर से घर-घर में माता तुलसी की आराधना करते हुए उनका श्रीहरी विष्णु के स्वरूप शालीग्राम के साथ विवाह रचा जायेगा.
तुलसी विवाह और देवउठनी एकादशी बुधवार, २५ नवंबर को है. कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की एकादशी को श्रीहरि चतुर्मास की निद्रा से जागेंगे. इसीलिए इस एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है. इस दिन से ही हिन्दु धर्म में शुभकार्य जैसे-विवाह आदि शुरू होते है. देवउठनी एकादशी के दिन ही भगवान विष्णु के स्वरूप शालीग्राम का देवी तुलसी से विवाह करने की प्रथा है. माना जाता है कि जो भक्त देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह का अनुष्ठान करता है, उसे कन्यादान के बराबर पुण्य प्राप्त होता है. वहीं एकादशी ब्रत को लेकर मान्यता हैकि साल के सभी २४ एकादशी ब्रत करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है. पौराणिक कथा के अनुसार एक बार माता तुलसी ने भगवान विष्णु से नाराज होकर उन्हें श्राप दिया था कि तुम काला पत्थर बन जाओ. इसी श्राप की मुक्ति के लिए भगवान ने शालीग्राम पत्थर के रूप में अवतार लिया और तुलसी से विवाह किया.
तुलसी को माता लक्ष्मी का अवतार माना जाता है. कहीं तुलसी विवाह एकादशी को होता है तो कही द्वादशी के दिन तुलसी विवाह आरंभ होता है. इस बार द्वादशी के दिन यानी गुरूवार, २६ नवंबर से तुलसी विवाह आरंभ हो रहा है.
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एकादशी तिथि और तुलसी विवाह समय
-एकादशी तिथि प्रारंभ-२५ नवंबर को सुबह २.४२ बजे से
-एकादशी तिथि समाप्त -२६ नवंबर को सुबह ५.१० बजे
-द्वादशी तिथि प्रारंभ-२६ नवंबर को सुबह ५.१० बजे से
-द्वादशी तिथि समाप्त-२७ नवंबर को सुबह ७.४६ बजे