
* दोबारा चूल्हे जलाकर गंज में पकाई जा रही हल्दी
* उत्पादन क्षेत्र भी घटा, कृषि विभाग की अनास्था
अमरावती/दि.9– किसी समय वरुड तहसील के शेंदूरजनाघाट में उत्पादित होने वाली हल्दी की ख्याति चहूंओर थी और हल्दी उत्पादन में वायगांव के पास शेंदूरजनाघाट का नाम पूरे देश में अग्रणी था. साथ ही देश के विभिन्न राज्यों में शेंदूरजनाघाट की गावरानी हल्दी की अच्छी खासी मांग भी हुआ करती थी. गुणकारी हल्दी से आयुर्वेदिक दवाओं सहित कुमकुम का भी उत्पादन किया जाता था. परंतु कालानुसार उत्पादन घट गया और उत्पादन पर होने वाला खर्च काफी अधिक रहने के चलते हल्दी की फसल का बुआई क्षेत्र कम हो गया. जिसके चलते हल्दी को पकाने हेतु लगाये जाने वाले बॉयलर हद पार हो गये है और अब एक बार फिर चूल्हे पर बडे-बडे गंज सजे दिखाई दे रहे है. जिनमें हल्दी को उबाला जाता है.
बता दें कि, विदर्भ का कैलिफोर्निया कहे जाते वरुड क्षेत्र में संतरे के साथ ही हल्दी की भी बडे पैमाने पर बुआई होती है और शेंदूरजनाघाट परिसर में हल्दी का बुआई क्षेत्र सबसे अधिक है. यहीं वजह है कि, इस परिसर में उत्पादित होने वाली हल्दी को ‘घाटावरची हळद’ यानि घाट की हल्दी कहा जाता था, जो अपने औषधी गुणों के लिए अच्छी खासी प्रसिद्ध थी. यदि वजह है कि, विदर्भ सहित अन्य प्रांतों के व्यापारी भी इस परिसर में आकर हल्दी खरीदा करते थे और हल्दी की वजह से शेंदूरजनाघाट का नाम देश के नक्शे पर दिखाई देता था. उस समय शेंदूरजनाघाट में कुमकुम के भी कारखाने हुआ करते थे और यहां से कुमकुम की जमकर निर्यात भी की जाती थी. जिसके चलते शेंदूरजनाघाट को सैकडों लोगों को रोजगार देने वाला गांव माना जाता था. परंतु समय के बदलते चक्र में हल्दी का उत्पादन घट गया और कुमकुम के कारखाने बंद पड गये. जिसके चलते अब हल्दी उत्पादक किसानों पर अपनी हल्दी को मिट्टीमोल दामों में बेचने की नौबत आन पडी है. जिसकी वजह से घाट की हल्दी अब अपने ढलान पर है और यह फसल अब इस क्षेत्र से हद्दपार होने की राह पर है. कृषि विभाग सहित सरकार द्वारा हल्दी की फसल हेतु दिखाई जाने वाली अनास्था को इसके लिए जिम्मेदार बताया जाता है.
* 200 हेक्टर क्षेत्र में बुआई
वरुड के शेंदूरजनाघाट सहित आसपास के परिसर में हल्दी का बुआई क्षेत्र करीब 200 हेक्टेयर होता है. परंतु विगत खरीफ सीजन के दौरान महज 99 हेक्टेयर क्षेत्र में ही हल्दी की बुआई हुई.
* शोधन केंद्र का पता नहीं
वैश्विक स्तर पर हल्दी को आयुर्वेदिक महत्व प्राप्त है और पूरे विश्व में हल्दी से विविध प्रसाधन व औषधियां तैयार की जाती है. परंतु शेंदूरजनाघाट में हल्दी का प्रचुरक उत्पादन होने के बावजूद यहां पर हल्दी संशोधन केंद्र शुरु करने की बात जनप्रतिनिधियों सहित कृषि विभाग को अब तक सुझी नहीं है.
* हल्दी को मिले राजाश्रय
हल्दी के लिए बाजारपेठ नहीं रहने के चलते अब किसानों को औने पौने दाम पर हल्दी बेचनी पडती है. जिसके चलते घाट की हल्दी का रंग फिका पडने लगा है. इसकी ओर कृषि विभाग द्वारा ध्यान दिये जाने तथा मसाला फसल में समावेश रहने वाली हल्दी को संरक्षण व राजाश्रय मिलने की सख्त जरुरत है.
* उत्पादन घटने से ‘उकाडे’ बंद
जमीन से हल्दी निकालने के बाद उसे बडे से चूल्हे यानि उकाडे पर बडे कढाहो व गंज में उबाला जाता है. जिसे धूप में सुखाया जाता है. इस काम के लिए कुछ समय बाद बॉयलर भी आ गये थे. हां सैकडों मजदूर रोजाना हल्दी को सुखाने का काम किया करते थे. उस समय गांव में दो बडे उकाडे थे. लेकिन उत्पादन घट जाने के चलते अब उकाडे बंद हो गये और बडे-बडे कढाहे व गंज भी नामशेष रह गये. जिसकी वजह से मजदूरों के हाथ से रोजगार चला गया और अब इस परिसर से हल्दी हद्दपार होने की रात पर है.