आजादी के दीवानों की दो शौर्यगाथाएं
विदेशी दासता से मुक्ति के लिए किया कडा संघर्ष

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घर-परिवार सहित अपने प्राण न्यौछावर करने की थी तैयारी
अमरावती/दि.15 – आज 15 अगस्त को हम अपनी आजादी का 75 वां अमृत महोत्सव मना रहे हैं, क्योंकि आज से ठीक 75 वर्ष पहले 15 अगस्त 1947 को हमें विदेशी दासता से आजादी मिली थी, लेकिन यह आजादी ऐसे ही नहीं मिल गई, बल्कि इसके लिए हजारोें ज्ञात-अज्ञात स्वाधीनता संग्राम सेनानियों व क्रांतिकारियों ने एक लंबा संघर्ष किया. साथ ही आजादी के लिए अपने प्राणों सहित अपने घर-परिवार तक को देश के नाम समर्पित कर दिया. जिसमें अमरावती जिले के सपूत भी पीछे नहीं थे. क्योंकि यहां पर भी आजादी के एक से बढकर एक दीवाने रहे. ऐसे ही आजादी के दीवानों की दो कहानियां आज यहां प्रस्तुत हैं.
सुगनचंद लुणावत ने भुगता था छह माह का कडा कारावास
– जीतेंगे या मरेंगे का ले रखा था संकल्प
महात्मा गांधी ने सन 1942 में अंग्रेज सरकार को ‘चले जाओ’ और ‘भारत छोडो’ की चेतावनी दी थी और यही दो घोषणाएं आजादी का हथियार बन गई. जिनसे प्रेरणा लेने के साथ ही ‘जीतेंगे या मरेंगे’ का संकल्प लेेकर धामणगांव रेल्वे निवासी सुगनचंद लुणावत ने अपने सहयोगियों के साथ ब्रिटीश सत्ता के खिलाफ आवाज बुलंद की. जिससे बौखलाकर ब्रिटीश सरकार ने क्रांतिकारियों व सत्याग्रहियों की धरपकड करनी शुरू कर दी. इसके तहत सुगनचंद लुणावत भी पकडे गये और उन्हें छह माह तक नागपुर की जेल में रखा गया.
महात्मा गांधी के अहिंसात्मक आंदोलन से प्रेरित होकर धामणगांव रेल्वे तहसील के देशभक्तों ने सन 1941 के दौरान भी अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी थी. जिसके यादें तहसील के बडे बुजुर्गों के मन में आज भी ताजा है. सन 1942 का दौर आते-आते पूरा देश आजादी की लडाई के लिए तैयार हो चुका था और हर कोई जीतेंगे या मरेंगे की भावना से भरकर अंग्रेजों को भगाने तथा देश को आजाद कराने के लिए कृतसंकल्प हो चुका था. जिसमें धामणगांव रेल्वे तहसील क्षेत्र के देशभक्त भी पीछे नहीं थे. इन्हीं में से एक सुगनचंद लुणावत भी थे, जो महात्मा गांधी द्वारा दिखाये गये अहिंसा के रास्ते पर चलते हुए आजादी के लिए संघर्ष कर रहे थे और उन्हें ब्रिटीश सरकार द्वारा गिरफ्तार करते हुए छह माह तक नागपुर की जेल में रखा गया था. जहां पर उन्हें अंबाडी की बेंत तैयार करने का काम दिया गया था. महात्मा गांधी व लोकमान्य तिलक जैसे महापुरूषों के साथ मिलकर आजादी के लिए संघर्ष करनेवाले सुगनचंद लुणावत के सहयोगी अंबादास भेंडे, बाबासाहब अंदुरकर, अमरसिंह ठाकुर, नारायणराव इंगले व गुलाबराव झाडे जैसे देशभक्त थे.
‘भारत छोडो’ आंदोलन की सभा में हुए थे उपस्थित
महात्मा गांधी ने सन 1930 में नमक सत्याग्रह किया था और वर्ष 1934 में जमनालाल बजाज एवं उनके सहयोगियों का आग्रह रहने के चलते महात्मा गांधी अपना साबरमतीवाला आश्रम छोडकर सेवाग्राम में रहने चले आये. वर्ष 1942 में भारत छोडो आंदोलन की पहली सभा सेवाग्राम आश्रम में ही हुई थी. जिसमें सुगनचंद लुणावत भी उपस्थित थे.
लोकमान्य तिलक के साथ किया था सात दिनों का दौरा
महाराष्ट्र में एक समय भीषण अकाल पडा था, तब लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने किसानों को संगठित होने के साथ ही अपने अधिकारों के लिए जागरूक किया. साथ ही अपने अखबार ‘केसरी’ के जरिये सरकार को उसके कर्तव्यों का एहसास भी कराया. उस समय ब्रिटीश सरकार द्वारा ‘अकाल बीमा निधी’ अंतर्गत लोगों से पैसा इकठ्ठा किया जाता था. जिसका प्रयोग आम लोगों के हित में किया जाये, ऐसा तिलक ने सरकार को स्पष्ट रूप से बताया. उस वक्त लोकमान्य तिलक के साथ सुगनचंद लुणावत ने सात दिनों का दौरा करते हुए किसानों को जागरूक करने का काम किया.