बांबू गार्डन में मिला दो गिलहरियों को जीवनदान
रैटकिल दवा खाने में आने की बात वैद्यकीय रिपोर्ट में स्पष्ट
अमरावती/दि.13-वडाली वनपरिक्षेत्र अंतर्गत आने वाले बांबू गार्डन का सुश्रुषा केंद्र यह वन्यप्राणियों के लिए वरदान साबित हो रहा है. यहां पर जख्मी अवस्था में पाये जाने वाले प्राणियों पर उपचार कर उन्हें जीवनदान दिया जाता है.
शहर के प्रशांतनगर परिसर से रेस्क्यू की गई तीन गिलहरियों को शुश्रुषा केंद्र में उपचारार्थ दाखल किया गया. इन गिलहरियों को विषबाधा होने की बात वैद्यकीय जांच रिपोर्ट में स्पष्ट हुई है. दो गिलहरियों को उपचार के पश्चात जंगल में छोड़ दिया गया, वहीं एक गिलहरी की उपचार के दरमियान मृत्यु हो गई.
आधुनिक तकनीकीज्ञान के काल में काँक्रिटीकरण किया गया है. जंगल नष्ट हो रहे हैं. जिसके चलते वन्यप्राणियों का अन्न व नैसर्गिक अधिवास संपुष्ट मे आ रहा है. इसलिए मनुष्य एवं प्राणियों के बीच संघर्ष बढ़ा है. वन्यप्राणी भोजन की तलाश में गांव-शहरों की तरफ पहुंचते है. जिसके कारण प्राणियों को तकलीफ होती है. छोटे पक्षी, पशु, रेंघने वाले प्राणियों को जीवित हानि का धोखा निर्माण होता है. खेत शिवार मेें किसान फवारणी के लिए रासायनिक दवाओं का इस्तेमाल करते हैं वहीं दूसरी ओर नागरिक चूहा, घुस को मारने के लिए रॅटकिल समान विषजन्य दवाओं का इस्तेमाल करते हैं. कभी-कभी इन दवाओं को बाहर परिसर में फेंका जाता है. जिसे वृक्षों पर के छोटे वन्यजीव खाते है और उन्हें विषबाधा होने से उनकी मृत्यु हो जाती है. ऐसी घटनाएं बढ़ी है. कुछ दिनों पहले प्रशांतनगर परिसर के एक पेड़ के नीचे तीन गिलहरियां अधमरी अवस्था में पायी गई. उन्हें उपचारार्थ बांबू उद्यान के शुश्रूषा केंद्र में लाया गया. इन गिलहरियों को चूहा मारने की रॅटकिल दवा खाने में आने की बात वैद्यकीय रिपोर्ट में स्पष्ट हुई. इन तीनों गिलहरियों पर डॉ. गजानन महल्ले के मार्गदर्शन में शुश्रूषा केंद्र में उपचार किया गया. जिसमें एक गिलहरी के बच्चे की उपचार के दौरान मौत हो गई. शेष दो गिलहरियों पर उपचार के दौरान उन्हें नैसर्गिक अधिवास में छोड़ दिया गया है.
रॅटकिल दवा गिलहरी, चूहे व अन्य छोटे प्राणियों व पक्षियों के लिए धोखादायक साबित हो रही है. चूहे व तत्सम प्राणी वनविभाग की संरक्षित सूची में आने के कारण इन दवाओं पर बंदी लाकर वनविभाग द्वारा कड़ी कार्रवाई करना आवश्यक है.
– सागर मैदानकर, अध्यक्ष, जीवनरक्षा संस्था.