नाबालिगों द्वारा फर्राटे से चलाये जा रहे दुपहिया वाहन
कई बार विद्यार्थी दिखाई देते है ट्रिपल सिट
![](https://mandalnews.com/wp-content/uploads/2022/04/baik-1.jpg?x10455)
* कई शालाओं में दिखाई देती है टू विलर की भीड
* हादसा होने पर माता-पिता ही रहेंगे जिम्मेदार
अमरावती/दि.5– कानूनन अल्पवयीन बच्चों को वाहन चलाने की अनुमति नहीं होती, लेकिन इसके बावजूद भी अभिभावकों द्वारा अपने नाबालिग बच्चों के हाथ में दुपहिया वाहन थमा दिये जाते है. यहीं वजह है कि, कक्षा 7 वी, 8 वीं में पढनेवाले बच्चे भी मोपेड व मोटरबाईक जैसे दुपहिया वाहन लेकर सडकों पर घुमते दिखाई देते है. साथ ही दुपहिया वाहन लेकर ही स्कूल व ट्युशन आना-जाना करते है. यह सीधे-सीधे यातायात नियमों का उल्लंघन है और इसमें भी कई बार इन अल्पवयीन बच्चों द्वारा ट्रिपल सीट बिठाकर वाहन चलाये जाते है, जो इन बच्चों के साथ-साथ सडक से गुजरनेवाले अन्य लोगों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है. हालांकि यातायात पुलिस द्वारा अल्पवयीन बाईक सवारों पर कार्रवाई की जाती है, लेकिन इसका प्रमाण काफी सीमित है. वहीं ऐसे मामलों में सबसे पहली जिम्मेदारी बच्चों के माता-पिता की होती है, जो बेहद कम उम्र में ही अपने बच्चों को वाहन का हैण्डल थमा देते है. ऐसे में इन बच्चों द्वारा वाहन चलाते समय किसी भी तरह का कोई हादसा घटित होने पर संबंधित अभिभावकों को ही जिम्मेदार माना जाता है.
उल्लेखनीय है कि, इन दिनों अधिकांश निजी ट्युशन व कोचिंग क्लासेस के साथ-साथ शाला परिसर में साईकिलों की तुलना में मोपेड व बाईक अधिक दिखाई देती है. जबकि पहले कक्षा 10 वीं तक सभी बच्चे साईकिलों से ही आना-जाना करते थे और पदवी परीक्षा उत्तीर्ण होने के आसपास तक उनके हाथ में मोपेड या बाईक आया करती थी. समय बदलने के साथ ही कक्षा 10 वीं व कक्षा 12 वीं के आसपास 16 से 18 वर्ष आयुवाले बच्चे मोपेड चलाते दिखाई देने लगे है. लेकिन इन दिनों कक्षा 7 वीं-8 वीं में पढनेवाले बच्चों द्वारा मोपेड या बाईक का उपयोग करना बेहद आम हो गया है.
* 18 वर्ष से कम आयु रहने पर…
18 वर्ष से कम आयुवाले बच्चों को वाहन चलाने का लाईसेन्स ही नहीं दिया जाता. ऐसे में इससे कम आयुवाले बच्चों को वाहन चलाने देना खतरनाक हो सकता है. किंतु अभिभावकों द्वारा अपनी व्यस्तता के चलते धडल्ले के साथ अपने बच्चों को वाहनों की चाबी सौंप दी जाती है. साथ ही आजकल ऐसा करना ‘स्टेटस् सिंबल’ भी माना जाने लगा है. लेकिन इसके काफी गंभीर परिणाम हो सकते है.
* कॉलेज के लिए धडल्ले से वाहनों का प्रयोग
इन दिनों कक्षा 9 वीं व 10 वीं से ही बच्चों के हाथ में वाहन दे दिये जाते है. अलग-अलग विषयों की अलग-अलग ट्युशन व कोचिंग के साथ-साथ स्कूल आने-जाने के लिए बच्चों को शहर में एक कोने से दूसरे कोने तक रोजाना यात्रा करनी पडती है. ऐसे में यदि इतनी दूरी को रोजाना साईकिल से पूरा किया जाये, तो काफी अधिक समय और शारीरिक श्रम खर्च होता है. जिसके चलते बच्चे काफी अधिक थक सकते है और उनके पास पढाई करने के लिए समय शेष नहीं रहता. इस बात के मद्देनजर अभिभावकों द्वारा अपने बच्चों को स्कूल, कॉलेज अथवा ट्युशन व कोचिंग क्लास में आने-जाने हेतु वाहन थमा दिये जाते है. लेकिन ऐसा करना बच्चों के साथ-साथ खुद उनके अभिभावकों के लिए भी खतरनाक साबित हो सकता है.
* किसी भी हादसे की जिम्मेदारी अभिभावकों पर
चूंकि 18 वर्ष से कम आयुवाले बच्चों के नाम पर न तो ड्राईविंग लाईसेन्स जारी होता है और न ही उनके नाम पर वाहन खरीदे जा सकते है. ऐसे में घर के किसी बडे सदस्य के नाम पर पंजीकृत रहनेवाले वाहन बच्चों को दिये जाते है, लेकिन यदि ऐसे वाहनों को चलानेवाले बच्चों के हाथ से कोई सडक हादसा घटित होता है, तो इसकी जिम्मेदारी जिस व्यक्ति के नाम पर वाहन पंजीकृत है, उसकी होती है और ऐसे मामलों में बच्चों के अभिभावकों के खिलाफ ही पुलिस द्वारा कार्रवाई की जाती हे.
* तीन माह से कोई कार्रवाई नहीं
यहां यह विशेष उल्लेखनीय है कि, सडक सुरक्षा नियमों का उल्लंघन करने पर यातायात पुलिस द्वारा दंडात्मक कार्रवाई की जाती है. लेकिन आश्चर्य का विषय है कि, विगत तीन माह के दौरान शहर यातायात शाखा द्वारा सडकों पर खुलेआम वाहन चलानेवाले अल्पवयीन बच्चों के खिलाफ एक भी कार्रवाई नहीं की गई है. जबकि शहर के लगभग सभी इलाकों में अल्पवयीनों द्वारा बडे धडल्ले के साथ यातायात नियमोें का उल्लंघन करते हुए दुपहिया वाहन लेकर फर्राटा भरा जाता है.
किसी भी अल्पवयीन बच्चे को वाहन चलाते हुए पकडे जाने पर यातायात पुलिस द्वारा उसका समुपदेशन करने के साथ-साथ उसके अभिभावकों को भी बुलाकर समझा जाता है. साथ ही कई बार उनसे दंड की राशि भी वसूल की जाती है और भविष्य के लिए आवश्यक हिदायत भी दी जाती है.
– विक्रम साली
पुलिस उपायुक्त, अमरावती शहर