जब तक बोधी बीज की प्राप्ति नहीं, तब तक आत्मा का उत्थान नहीं
वाणीभूषण पूज्य गुरुवर्य सेजलबाई म.सा.
अमरावती/दि.20- इस अविसर्पिणी काल में जीव, उत्सर्पिणीकाल में असंख्यता जीव जन्म लेते हैं, भ्रमण करते हैं. इस भ्रमण के अंदर मानव भव भी मिल जाता है, जैन कुल भी मिल जाता है, लेकिन बोधी की प्राप्ति अति दुर्लभ है, ऐसा वाणीभूषण पूज्य सेजलबाई म.सा. ने बडनेरा में जारी चातुर्मास के दौरान अपने प्रवचन में कहा.
पूज्य सेजलबाई म.सा. ने आगे कहा कि चक्रवर्ती बनना आसान है, वासुदेव बनना आसान है, राष्ट्रपति बनना आसान है, मंत्री बनना आसान है, लेकिन मानव भव के अंदर बोधी प्राप्त करना आसान नहीं है. बोधी की प्राप्ति जब, श्रद्धा दृढ़ होती है, ज्ञान दृढ़ होता है, चारित्र दृढ़ होता है, तभी बोधी टिकी रहती है. मानव भव स्वयं में रहने के लिए मिला है, संसार में रहने के लिए नहीं. जिन शासन में आसन जमाने के लिए मानव भव मिला है, सिर्फ संसार के अंदर शासन करने के लिए नहीं. मानव भव के अंदर पर के लिए, परिवार के लिए, कितना श्रम करते हैं, पूरी ताकत लगा देते हैं, लेकिन बोधी का कभी ध्यान भी नहीं आता है. उसके लिए श्रम भी नहीं करते हैं, ताकत भी नहीं लगाते हैं, पुरुषार्थ भी नहीं करते हैं, तो समझ लेना चाहिए कि, चिंतामणी सम जो मानव भव मिला है, सिर्फ भ्रम में घूम कर फिर से निगोद में आ जायेंगे. उन्होंने आगे कहा कि, माता जो अपना सारा जीवन, ममता में रहते हुए, अपनी संतान के लिए लगा देती है, ठीक वैसे ही परमात्मा भी हमारे माता है, समय-समय संसार में रहते हुए, अगर परमात्मा का ध्यान नहीं करेंगे तो जीवन खाली रह जाएगा. द्रव्य से चारित्र से नहीं कर सकते हैं, तो कोई बात नहीं, भाव से तो चरित्र में रह सकते हैं.
पूज्य सेजलबाई म.सा. ने कहा कि वर्षा काल का मौसम है, हम सभी को कड़क चाय अच्छी लगती है, कड़क पकौड़े अच्छे लगते हैं ,कड़क कपड़ा पहनना अच्छा लगता है, तो संतों की वाणी कड़क क्यों लगती है? संत कड़क बोलते हैं तो सिर्फ अपनी आत्मा के उत्थान के लिए. काया मिली है, जिनशासन की सेवा के लिए, समय मिला है, धर्म आराधना के लिए, भव मिला है, भवणभ्रमणा मिटाने के लिए, लेकिन अभी भी साधना कम करते हैं, और साधन के पीछे भाग दौड़ होती रहती है. जिनवाणी सुनके अपनी गलतियों का पुनरावर्तन करते रहते हैं, लेकिन जीवन में परिवर्तन नहीं लाते हैं. आंध्रकुमार का प्रसंग चल रहा है, पूर्व के काम भोग के विचार के कारण, शरीर तेज हीन हो गया है, कमजोर हो गया है.
पूज्य म.सा. ने कहा कि आजकल हम एनिवर्सरी मनाते हैं, बर्थडे मनाते हैं, लेकिन समझ रखने वाली बात यह है कि लक्ष्य प्राप्ति के लिए समय कम है तो उसकी ओर ध्यान कब देंगे? तीर्थंकर मल्लिनाथ जो एक स्त्री है, चार प्रहर के अंदर केवल ज्ञान हो गया था. विकार, वासना सभी का नाश हो गया था, फिर भी व्यवहार के अंदर रहते हुए मल्लिनाथजी साध्वी उपाश्रय में रहते थे, लेकिन गणधर उपाश्रय में रात को नहीं रहते थे, क्योंकि व्यवहार को पकड़े हुए थे नववाड ब्रह्मचर्य सिर्फ साधु-संतों के लिए नहीं है, लेकिन संसार में सभी के लिए है. मानव जीवन के अंदर व्यवहार में रहते हैं, तो संस्कार आते हैं, संस्कार से समकीत में आते हैं, समकीत से निश्चय में आते हैं.जैन धर्म का मिलना उसे सिर्फ एक योग तक सीमित ना रखते हुए, प्रमाद में ना रहते हुए, उसका हर क्षण उपयोग में लाना ही जीवन की सार्थकता है. आंध्रकुमार अगले भव में मोक्ष प्राप्त करने वाले जीव है, लेकिन काम भोग कि विचार से, शरीर कमजोर हो गया है, आगे का प्रसंग जैसे अवसर बनेगा. इधर मंगलसेठ मगरमच्छ बन गए हैं, संत को देखने के बाद विचार करते हैं, मन की वजह से कितना कर्म बंध कर लिया हूं, उसी समय नदी में तूफान आता है, पानी के थपेड़े शरीर को बार-बार सता रहे हैं, लेकिन मगरमच्छ अंदर से शांत है, समभाव में है, तभी एक नाव देखते हैं, जो तूफान के कारण बार-बार तीव्र उतार-चढ़ाव, कर रहा है, नाव के अंदर से बचाओ, बचाओ, की आवाज आती हैं. मंगलसेठ नाव की तरफ दौड़ रहे हैं, तूफान से लड़ रहे हैं, उसी समय नाव पलट जाती है, और वह मानव मगरमच्छ के पीठ पर आ जाते हैं, किनारे पर जा रहे, मगरमच्छ के मन में न तो आवेग के भाव है न संवेग के भाव है, किनारे पर पहुंचते ही, मानव कृतज्ञ भाव से हाथ जोड़ता है, मगरमच्छ पहचान जाते हैं, कि यह मेरा पूर्व भव का मित्र सुभव है, जानकर संथारा ले लेते हैं, और आयुष्य पूर्ण करके, देव गति में जाते हैं. हमें भी पाप क्रिया से दूर रहकर, समकीत में आना है, भगवान की वाणी में श्रद्धा रखकर, पुरुषार्थ करना है. चातुर्मास प्रवचन में उपस्थित अर्चना मनोज गांग ने प्रवचन की यह जानकारी दी.
संकलन: अर्चना मनोज गांग, बडनेरा.