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वसुंधरा के लिए पर्यावरण की रक्षा का किया संकल्प

आज विश्व वसुंधरा दिवस

* मराठी विज्ञान परिषद का उपक्रम
अमरावती/दि.22– भोजन, वस्त्र और आश्रय प्रदान करने वाली पृथ्वी का संतुलन बनाए रखने और इस पर जीवन को जीवित रखने के लिए हर साल 22 अप्रैल को विश्व वसुंधरा दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस बीच पर्यावरण असंतुलन के कारण धरती मरुस्थलीकरण की ओर अग्रसर है. इसलिए मराठी विज्ञान परिषद ने उसकी रक्षा के लिए संकल्प लेने की अपील की है.

परिषद के विभागीय अध्यक्ष प्रवीण गुल्हाने और हौशी खगोलशास्त्री विजय गिरुलकर के अनुसार, पृथ्वी का निर्माण लगभग 4.50 अरब वर्ष पहले हुआ था. यूरेनियम बेटिंग पृथ्वी की आयु मापने की एक वैज्ञानिक विधि है. पृथ्वी की आयु रेडियोधर्मी तत्व यूरेनियम 238 के आधे जीवन पर आधारित है. सौरमंडल का तीसरा सबसे बडा ग्रह इस ग्रह पर ही जीवन है. 1970 में पहली बार पृथ्वी दिवस सैन फ्रांसिस्को (अमेरिका) में मनाया गया था. तभी से 22 अप्रैल को विश्व वसुंधरा दिवस के रूप में मनाया जाता है.

अमेरिका के गेलॉर्ड नेल्सन वसुंधरा दिवस के जनक हैं. युगों पहले, सौरमंडल का एक ग्रह अपनी कक्षा के दौरान सूर्य से टकरा गया था और एक बडा गर्म गोला उससे अलग हो गया था. वैज्ञानिकों का मानना है कि समय के साथ यह ठंडा होता गया और इस पर जीवन विकसित हुआ. हर साल पृथ्वी पर लगभग 10 लाख भूकंप आते हैं. उनमें से कुछ सूक्ष्म हैं. 2004 की सुनामी ने पृथ्वी की घूमने की गति को 3 माइक्रोसेकंड तक धीमा कर दिया. प्रत्येक एक लाख वर्ष में पृथ्वी सूर्य की ओर 1 सेंटीमीटर से खींची जा रही है. प्रत्येक वर्ष यहां तक कि चंद्रमा भी पृथ्वी से 3.8 सेमी. लंबा चल रहा है.

इस बीच वसुंधरा को रेगिस्तान बनने से अगर हमें इसे बचाना है तो अभी से ही पर्यावरण की रक्षा करना जरूरी है. अन्यथा ये वसुंधरा हमें कभी माफ नहीं करेगी. इसलिए मराठी विज्ञान परिषद ने वसुंधरा दिवस के अवसर पर पर्यावरण प्रेमी विद्यार्थियों एवं नागरिकों से अपील की है कि वे पृथ्वी को बचाने के लिए कुछ अच्छे संकल्प लें और उस पर अमल करें.

इसलिए, 100 वर्षों के बाद दिन 2 मिलीसेकंड बढ जाएगा. 5 खंड भी धीरे-धीरे आगे बढ रहे हैं. न्यूयॉर्क शहर हर साल लंदन से 2.5 सेमी दूर जा रहा है धरती का तापमान बढ रहा है. पृथ्वी का संतुलन बिगड़ रहा है. अगर भविष्य में तापमान इसी तरह बढता रहा तो भविष्य में जीवन नष्ट हो जायेगा.

* भविष्य में बिप्टटटल से टकराने का खतरा
पृथ्वी के लिए एक और बडा खतरा यानी भविष्य में बिप्टटटल जैसे विशाल धूमकेतुओं का टकराना है. इससे धरती के एक बडे हिस्से को भी नुकसान पहुंचेगा. 21 जुलाई 1994 को शुभेकरलेवी धूमकेतु बृहस्पति से टकराया था.

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