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बगैर मिट्टी के उगाए सब्जियां और फल

कृषि प्रदर्शनी में खेती किसानी के कारगर नुस्खे

* तीसरे दिन रिकॉर्ड तोड भीड
* कल भी शुरु रहेगी प्रदर्शनी
अमरावती/दि.30- शिवाजी शिक्षा संस्था अंतर्गत कृषि महाविद्यालय व्दारा भाउसाहब देशमुख की जयंती उपलक्ष्य आयोजित राष्ट्रीय कृषि प्रदर्शनी में तीसरे दिन रिकॉर्ड तोड भीड रही. लाखों लोग यहां सजाए गए सैकडों स्टॉल पर खेती किसानी के नए-नए फंडे देखने उमडे. कई लोग सहपरिवार आने का नजारा रहा. माता-पिता ने बच्चों को बहुत चाव से प्रदर्शनी की अनेक चीजें गौर से देखने, पूर्ण प्रक्रिया समझने का अनुरोध किया. बगैर मिट्टी के केवल पानी से सब्जियां, छोटे फल के पौधे लगाने की तरकीब काफी लोगों को पसंद आ रही है. उसके स्टॉल पर बच्चे, बूढे उमडते दिखाई दिए. शहद संकलन और हाल के दिनों में प्रोटिन बढाने वाले मशरुम के विविध किस्म की पैदावार के बारे में भी काफी लोगों में दिलचस्पी दिखाई दी.

* केवल पानी से पैदावार
अनेक प्रकार की सब्जियां सिर्फ पानी से प्लास्टिक के गमलों, थैलियों में उगाने की हाइड्रोपोनिक, ऐरोपोनिक, सॉइललेस एग्रीकल्चर के स्टॉल पर भीड नजर आई. जहां बताया गया कि बगैर मिट्टी के सब्जियां उगाना आसान है. घर की गैलरी में भी यह काम हो सकता है. बडे प्रमाण में उगाना फायदे का सौदा रहेगा. उसकी पूर्ण जानकारी यहां दी जा रही है. लोग भी चाव से सॉइललेस फार्मिंग की जानकारी लेते नजर आए.
* एझोला संवर्धन सिखाया
वनस्पति रोग शास्त्र विभाग ने एझोला संवर्धन तकनीक का स्टॉल लगाया है. एझोला किस तरह उत्पादन करना यह बताया गया. इसके लिए कैरोलिना और पिन्नाटा दो कल्चर होते हैं. यहां पिन्नाटा कल्चर से लगभग 8 बाय 3 फीट के पौण्ड में एझोला उगाने की विधि बताई गई. 20 ग्राम सुपर फास्फेट डालकर 10 लीटर पानी में 2 किलो गोधन (गोबर) मिलाकर सरलता से एझोला बनाया जा सकता है. केवल 15 से 18 दिन में तैयार एझोला मवेशी के चारे में मिलाकर देने से दूध की गुणवत्ता और मात्रा बढती है. किसानों के लिए यह एक अच्छा पूरक व्यवसाय हो सकता है. केवल 200 रुपए लागत आती है. मार्केट में 400 रुपए से लेेकर 500 रुपए तक प्रति किलो रेट चल रहे हैं.
* 50 रुपए लागत, 150 रुपए बिकता शिंपला मशरुम
वनस्पति रोग शास्त्र विभाग के प्राध्यापक मिलिंद कांबे ने शिंपला अथवा धिंगरी मशरुम उत्पादन की विधि बतलाई. यह सोयाबीन कुटार, गेहूं के भूसे से तैयार होता है. 35 से 45 दिनों की अवधि लगती है. सामग्री नहीं के बराबर चाहिए. जिससे किसान पूरक धंधा अवश्य कर सकता है. यह मशरुम 50 रुपए में तैयार होता है. 150 रुपए किलो सहजता से विक्री संभव है. प्रा. कांबे ने बताया कि आज ही एक दर्जन से अधिक लोग दिलचस्पी दर्शा चुके हैं. कॉलेज में अभी इसका 15 से 20 किलो उत्पादन हो रहा है. जबकि इसका प्रमाण बढाया जा सकता है. यह मशरुम सूखने के बाद भी छह माह तक उपयोगी है. इसका सुप, पाउडर, बिस्किट में उपयोग होता है. अब तो प्रचलन दिनोंदिन बढ रहा है. लोगों की मान्यता है कि दिल के मरीज और मधुमेह रोगियों के लिए शिंपला मशरुम उपयोगी दवा जैसा काम करता है.
* शहद का पूरक व्यवसाय बेहद उपयोगी
शहद की डिमांड आयुर्वेद के चलन बढने के साथ सतत बढ रही है. रोजमर्रा के जीवन में शहद का उपयोग करनेवाले बढ रहे हैं. कई दवाएं शहद के साथ सेवन करने से प्रभाव बढा देती है. अत: शहद निर्मिती की जानकारी देने वाले प्रसाद पवार और साथियों को प्रदर्शनी खुलते ही बिल्कुल फुरसत नहीं मिल रही. उन्होंने बताया कि दो पेटी लगभग 30 फीट के दायरे में लगाई जा सकती है. जिसकी 20 हजार की लागत रहती है उसमें भी 50 प्रतिशत सबसीडी मिलती है. किसानों के लिए यह फायदे का सौदा है. थोडा मौसम का साथ होना आवश्यक है. मौसम शीतल होना चाहिए अथवा खेत परिसर में आर्द्रता की मात्रा अधिक रखनी होती है. 500 रुपए की लागत से बनने वाला शहद मार्केट में 800, 1 हजार किलो सहजता से बेचा जा सकता है. यहां बताए गए उत्पादन में रा शहद है. जिसकी शुद्धता की गारंटी अपने आप में है. देश में सतत खपत बढ रही है. अत: शहद का पूरक व्यवसाय किसानों को बडा आर्थिक आधार दे सकता है.
* बच्चों की जानकारीपूर्ण पिकनिक
दिसंबर के अंतिम दिनों में जब वातावरण में ठंडक है. अंग्रेजी नववर्ष शुरु होने वाला है. लोगबाग पिकनिक सैरसपाटे के मूड में है. ऐसे में कई परिवार बाल गोपालों को साथ लेकर यहां विविध स्टॉल के चाव से अवलोकन करते देखे गए. शिल्पियों ने लोगों को शिल्प गढने की भी बातें सिखलाई. खान-पान के स्टॉल्स ने लोगों की रुचि बेशक बढा दी. कल रविवार को भी प्रदर्शनी शुरु रहने की घोषणा का सभी ने स्वागत किया है.

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