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विदर्भ विकास बोर्ड फिर ‘वैधानिक’

क्या बैकलॉग दूर होगा

* अमरावती संभाग मेें भयंकर समस्याएं
अमरावती/दि.28 – विदर्भ के पिछडेपन को दूर करने के लिए स्थापित विदर्भ विकास निगम (बोर्ड) को वैधानिक नाम का दर्जा एक बार फिर दिया गया है. बोर्ड के पुनर्गठन के राज्य की नई शिंदे सरकार के निर्णय का सभी विदर्भवासी स्वागत कर रहे हैं. किंतु लाख टके का प्रश्न यहीं है कि, क्या विदर्भ का सिंचाई और अन्य क्षेत्र का महाकाय अनुशेष दूर होगा? नागपुर की तुलना में अमरावती संभाग और अधिक पिछडा है. फिर वह उद्योग धंधों की बात हो या सिंचाई अनुशेष की. ऐसे में बडे उद्यम यहां लाने की मांग भी उठाई जा रही है.
* चव्हाण ने निकाला था वैधानिक शब्द
शरद पवार के मुख्यमंत्री रहते 1994 में वैधानिक विदर्भ विकास बोर्ड का गठन किया गया था. फिर बार-बार इसे समयावृद्धि दी गई. नागपुर में बाकायदा इसका कार्यालय भी शुरु हुआ. कांग्रेस नेता पृथ्वीराज चव्हाण के मुख्यमंत्री रहते विगत 5 सितंबर 2011 को विकास बोर्ड में लगाया गया वैधानिक शब्द हटा दिया गया था. अब 11 वर्षों बाद फडणवीस-शिंदे सरकार ने यह शब्द दोबारा लागू किया है.
* सिंचाई का भयंकर अनुशेष
अमरावती संभाग के 4 जिलों अमरावती, अकोला, बुलढाणा, वाशिम में सिंचाई का 1 लाख 80 हजार हेक्टेअर का बैकलॉग बताया गया है. हालांकि महाविकास आघाडी सरकार के कार्यकाल दौरान मंत्री अजित पवार, जयंत पाटील, सुनील तटकरे ने बारंबार अनुशेष दूर करने का दावा किया था. किंतु आज भी पश्चिम विदर्भ का अनुशेष कायम है.
* कौन बनेगा अध्यक्ष
विदर्भ विकास बोर्ड का पुनर्गठन किये जाने का राज्य शासन का निर्णय है. ऐसे में बोर्ड के अध्यक्ष पद पर किनकी नियुक्ति होती है. इस ओर निगाहें लगी है. यह भी देखा जा रहा है कि, अध्यक्ष पद शिंदे गट के पास जाता है या भाजपा के किसी नेता को मौका मिलता है.
* प्रकल्पों को मिली गति
विदर्भ विकास निगम बनने के बाद अनेक सिंचाई प्रकल्पों को गति मिली थी. परियोजनाओं के लिए न केवल फंड आवंटित हुआ. अपितु प्रत्यक्ष काम की शुरुआत भी अनेक प्रकल्पों में हो गई. अमरावती संभाग के कुछ छोटे बांध इसी विकास निगम की स्थापना पश्चात आकार ले पाये है. हालांकि कुछ प्रकल्पों में भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे, यह बात अलहदा है.
* अप्रैल-2020 में खत्म हुई अवधि
विदर्भ सहित मराठवाडा और शेष महाराष्ट्र के विकास बोर्ड की अवधि विगत 30 अप्रैल 2020 को खत्म हो गई. इसके बाद आघाडी सरकार ने बोर्ड को समयावृद्धि नहीं दी. हालांकि बारंबार समयवृद्धि के लिए मांग उठाई गई. राज्यपाल से भी निवेदन किये गये. तत्कालीन मंत्री डॉ. नितिन राउत, विजय वडेट्टीवार, तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष देवेंद्र फडणवीस, सुधीर मुनगंटीवार ने बोर्ड की समयावृद्धि के लिए तब के सीएम उद्धव ठाकरे के पास गुहार लगाई थी. मगर सरकार से कोई प्रतिसाद नहीं मिला था.
* रोंघे और चांद्रायण की याचिका
महाविकास आघाडी सरकार ने बोर्ड की मुद्दत एक वर्ष बाद भी नहीं बढाई, तो महा विदर्भ जनजागरण के संयोजक नितिन रोंघे और पूर्व तज्ञ सदस्य कपील चांद्रायण ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी.
* अब होगी सदस्यों की नियुक्ति
विदर्भ विकास बोर्ड का कार्यकाल खत्म हो जाने से सदस्य सचिव नहीं है. अतिरिक्त कार्यभार भी किसी के पास नहीं दिया गया. सहसंचालक कार्यालय प्रमुख है. अब बोर्ड पर अध्यक्ष सहित विशेषज्ञ सदस्यों और विधानसभा सदस्य नियुक्त किये जाएंगे. अध्यक्ष पद के लिए भाजपा में होड होने की पूर्ण संभावना है. उसी प्रकार तज्ञ समिति सदस्य बनने के लिए भी लॉबिंग होगी.

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