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लीक से हटकर नये स्वरुप की शिक्षा के लिए समर्पित विजया स्कूल फॉर एक्सलेंस

महज 10 वर्ष के दौरान शिक्षा क्षेत्र में हासिल किया लब्ध प्रतिष्ठित स्थान

* नये दौर व नई पीढी की जरुरत के हिसाब से पढाना पहली प्राथमिकता
* किताबी पढाई के साथ ही व्यवहारिक ज्ञान व कौशल्य देने पर विशेष जोर
अमरावती/दि.1 – आज से 10 वर्ष पहले एक साधन संपन्न परिवार के युवा ने एमबीए की डिग्री हासिल करने के बाद अमरावती लौटने पर कोई नौकरी या परंपरागत व्यवसाय करने की बजाय व्यापक समाजहित को देखते हुए अपनी तरह की एक अनूठी स्कूल शुरु करने का निर्णय लिया तथा सन 2014 में सातुर्णा परिसर में किराये की जगह लेकर विजया कॉन्व्हेंट नामक छोटी सी स्कूल शुरु की, जिसमें प्री-प्रायमरी व नर्सरी की कक्षाएं चला करती थी. आज वही स्कूल एक विशाल शिक्षा संस्थान में तब्दील हो चुकी है, जिसे अमरावतीवासी विजया स्कूल फॉर एक्सलेंस के नाम से जानते है. विशेष उल्लेखनीय है कि, वर्ष 2014 में जिन बच्चों को प्री-नर्सरी व केजी में एडमिशन देकर विजया स्कूल की शुरुआत हुई थी. आज वे बच्चे कक्षा 9 वीं में पहुंचे हैं और अगले वर्ष कक्षा 10 वीं की परीक्षा में शामिल होंगे. वहीं इस शिक्षा संस्था के लिए यह विशेष उपलब्धि है कि, इस शिक्षा संस्था को कक्षा 10 वीं हेतु सीबीएसई बोर्ड की मान्यता पहले ही मिल गई थी और इस वर्ष इस स्कूल से कक्षा 10 वीं की तीसरी बैच निकली. साथ ही सीबीएसई बोर्ड ने विजया स्कूल फॉर एक्सलेंस का परीक्षा परिणाम शत-प्रतिशत रहा.
स्थानीय अकोली रेल्वे स्टेशन से रवि नगर के बीच अंबर विहार परिसर स्थित विजया स्कूल फॉर एक्सलेंस की इमारत और परिसर को हर तरह की शैक्षणिक व शिक्षासंबंधी आवश्यक सेवाओं, सुविधाओं व जरुरतों से परिपूर्ण कहा जाता है, जिसे साकार करने के पीछे इस स्कूल के संस्थापक दिग्विजय देशमुख की सोच साफ तौर पर दिखाई देती है और पता चलता है कि, दिग्विजय देशमुख इस स्कूल को लेकर इस जोश व जुनून के साथ काम करते हुए आगे बढ रहे हैं. महज 6 वर्ष पहले पूरी तरह बनकर तैयार हुई स्कूल की इमारत में आज कहीं कोई कमी नहीं है तथा वर्ष 2014 में महज 26 विद्यार्थियों के साथ शुरु हुई इस स्कूल में आज 1700 विद्यार्थी अध्ययनरत हैं, जिनके शारीरिक, मानसिक व बौद्धिक विकास हेतु विजया स्कूल फॉर एक्सलेंस में तमाम जरुरी प्रबंध हैं.
बता दें कि, तत्कालीन सीपी एण्ड बेरार प्रांत के शिक्षा मंत्री रह चुके स्व. पी. के. देशमुख के पोते दिग्विजय देशमुख ने औरंगाबाद स्थित महात्मा गांधी मिशन से एमबीए की पदव्युत्तर पदवी प्राप्त करने के बाद अपने क्षेत्र में ही रहते हुए कुछ अलग करने की सोची थी और करियर के लिहाज से रोजगार के अनेकों अवसर उपलब्ध रहने के बावजूद अपने व्यक्तिगत अभिरुचि तथा परिवार की ओर से मिली सामाजिक कामों की विरासत को देखते हुए दिग्विजय देशमुख ने काफी सोच-विचार के बाद अपने दादाजी के नाम पर पी. के. देशमुख मल्टीपर्पज सोसायटी का गठन किया और अपनी दिवंगत माताजी श्रीमती विजया देशमुख के नाम पर विजया कॉन्व्हेंट व विजया स्कूल की स्थापना की. शुरुआती दौर में किराये की जगह लेकर स्कूल शुरु करने के साथ ही दिग्विजय देशमुख ने बडी तेजी के साथ अपनी शिक्षा संस्था को विस्तार देने की योजना पर भी काम किया, ताकि शहर में अपनी तरह की एक बिल्कुल अलग और सबसे शानदार स्कूल उपलब्ध हो. जिसके लिए उन्होंने अंबर विहार परिसर स्थित अपने परिवार की जमीन को अपनी सोसायटी के नाम करते हुए वहां पर एक अति भव्य वास्तु का निर्माण करवाना शुरु किया. स्कूल की इस नई इमारत का काम वर्ष 2016 यानि अगले दो वर्षों के दौरान ही शुरु हो गया था और फिर इसके अगले दो वर्षों में यानि वर्ष 2018 तक इमारत का निर्माण पूरा होकर सातुर्णा व गोपाल नगर परिसर स्थित किराये की जगह पर चलने वाली स्कूल अपनी खुद की नई इमारत में शिफ्ट हो गई. इस समय तक विजया कॉन्व्हेंट व विजया स्कूल का नया नामकरण विजया स्कूल फॉर एक्सलेंस पर दिया गया, जो देखते ही देखते आज अमरावती शहर के शिक्षा क्षेत्र में एक बेहद भरोसेमंद नाम बन गया है. यही वजह है कि, किसी समय महज 25-26 छोटे-छोटे बच्चों के साथ प्री-प्रायमरी व नर्सरी की कक्षाओं के जरिए शुरु हुई विजया स्कूल में आज 1700 बच्चे प्रवेशित हैं और यहां पर कक्षा 10 वीं तक ही पढाई होती है. साथ ही साथ आगामी शैक्षणिक सत्र से कक्षा 11 वीं व 12 वीं की पढाई भी विजया स्कूल फॉर एक्सलेंस में शुरु हो जाएगी. इसके लिए नई राष्ट्रीय शिक्षानीति के तहत स्कूल के शिक्षकों का फिलहाल प्रशिक्षण चल रहा है.

* साढे तीन एकड क्षेत्रफल में विस्तारित कैम्पस
– पढाई-लिखाई के साथ खेल-कूद की ओर भी विशेष ध्यान
अकोली रेल्वे स्टेशन से रवि नगर मार्ग पर अंबर विहार स्थित साढे तीन एकड क्षेत्रफल वाली जमीन पर विजया स्कूल फॉर एक्सलेंस का शानदार कैम्पस स्थापित है, जिसके एक हिस्से में शाला की बहुमंजिला इमारत है. वहीं इस इमारत के तीन ओर काफी बडी जगह खाली व खुली छोडी गई है, जिसे विद्यार्थियों के लिए क्रीडांगण हेतु उपयोग में लाया जाता है. इसमें से एक प्रांगण में रनिंग ट्रैक, बैडमिंटन कोर्ट व बॉस्केट बॉल एरिना व वॉलीबॉल कोर्ट आदि की सुविधाएं उपलब्ध कराई गई हैं. वहीं दूसरे हिस्से वाले बडे मैदान को क्रिकेट व फूटबॉल जैसे खेलों हेतु रखा गया है. इसके अलावा स्कूल की इमारत से लगकर खाली पडी जमीन पर वुड गोल्फ (मिनी गोल्फ) भी साकार किया जा रहा है.

* किताबों के साथ बच्चों को दुनिया दिखाने पर जोर
– हाल ही में बच्चों का हुआ जापान दौरा
सबसे खास बात यह है कि, अपने विद्यार्थियों को घर से स्कूल और स्कूल से घर तक ही सीमित न रखते हुए स्कूल के संस्थापक दिग्विजय देशमुख उन्हें देश व दुनिया दिखाने की सोच रखते हैं, ताकि नई पीढी के बच्चों को यह पता रहे कि, अपने घर और शहर से बाहर भी कोई दुनिया है और उस दुनिया के लिए अपने कुछ तौर तरीके हैं. यही वजह है कि, बीते दिनों अपनी शाला के विद्यार्थियों को डिजास्टर मैनेजमेंट तथा टेक्नॉलॉजी के जरिए विकास की तस्वीर दिखाने व सीखाने के लिए दिग्विजय देशमुख ने विद्यार्थियों के साथ जापान का दौरा आयोजित किया था, जहां पर विद्यार्थियों को भूकंप की तीव्रता और उससे होने वाले विनाश की प्रत्यक्ष जानकारी देने के साथ ही भूकंप व आग जैसे हालात में किये जाने वाले राहत व बचाव कार्यों के प्रात्यक्षिक सीखाये गये. साथ ही साथ जापानी रेल्वे नेटवर्क को दिखाते हुए समय के प्रबंधन व व्यवस्थापन की जानकारी से अवगत कराया गया. इसके अलावा द्वितीय विश्व युद्ध में लगभग पूरी तरह तबाह हो चुके जापान ने आगे चलकर टेक्नॉलॉजी का सहारा लेते हुए अपनी मेहनत के दम पर किस तरह विकास को साध्य किया. इससे भी विद्यार्थियों को अवगत कराया गया, ताकि वे किसी भी तरह के विपरीत हालात से निपटते हुए आगे बढने और आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित हों.

* हर कक्षा खुद देती है अपना परिचय
विजया स्कूल फॉर एक्सलेंस की सबसे बडी खासियत यह है कि, यदि आप इस विद्यालय की कक्षाओं का मुआयना करें और उस समय यदि कक्षा के भीतर कोई विद्यार्थी मौजूद न हो, तो भी आप बिना किसी से पूछे समझ सकते है कि, वह कौन सी कक्षा है, क्योंकि इस स्कूल की हर कक्षा खुद अपना परिचय देती है. मसलन केजी व नर्सरी की कक्षाओं में बेहद छोटी उम्र के बच्चों हेतु ढेर सारे खेल-खिलौने उपलब्ध हैं. साथ ही कक्षा की दीवारें कुछ ऐसे चित्रों से रंगी हुई हैं कि, बच्चों का वहां पर मन लगा रहे. वहीं पहली से चौथी तक की कक्षाओं में भी बच्चों की आयु के अनुसार छोटे-छोटे डेस्क-बेंच लगे होने के साथ-साथ कक्षा की दीवारों पर उनके विषय से संबंधित चित्र बने हुए है. लगभग यही स्थिति कक्षा 5 वीं से कक्षा 7 वीं की मिडल स्कूल और कक्षा 8 वीं से कक्षा 10 वीं की हाईस्कूल वाली कक्षाओं में भी है. इसके चलते कक्षा में प्रवेश करते ही विद्यार्थी अपनी कक्षा के साथ एकरुप हो जाते है.

* एक्सलेंस यानि फूल टू एक्सलेंस
अपनी शाला के नाम के साथ एक्सलेंस शब्द जोडे जाने को लेकर शाला के संस्थापक दिग्विजय देशमुख की स्पष्ट सोच है कि, दुनिया में कोई भी काम या कोई भी क्षेत्र तब तक शानदार व सफल नहीं हो सकता, जब तक वह ‘एक्सलेंट’ न हो और ‘एक्सलेंसी’ यूं ही नहीं आती, बल्कि इसके लिए लंबा तप और प्रयास करने होते हैं. चूंकि शिक्षादान या विद्यादान एक ऐसा क्षेत्र है, जो बच्चों एवं उनके अभिभावकों के भविष्य के साथ-साथ हमारे समाज और देश के भविष्य को भी प्रभावित करता है तथा इसी क्षेत्र के जरिए यह तय होता है कि, हमारे देश में रहने वाले परिवारों और समाजों का भविष्य क्या होगा. अत: शिक्षा के क्षेत्र में किसी भी तरह की लापरवाही या कोताही की जरुरत ही नहीं है, बल्कि यह क्षेत्र ‘एक्सलेंट’ होना ही चाहिए तथा इस क्षेत्र द्वारा ‘एक्सलेंसी’ की ओर विशेष ध्यान दिया ही जाना चाहिए. यहीं वजह है कि, उन्होंने अपनी स्कूल का नाम विजया स्कूल फॉर एक्सलेंस रखा है और वे इस नाम की सार्थकता के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं.

* विद्यार्थी ही पूरी व्यवस्था का केंद्रबिंदू
विजया स्कूल फॉर एक्सलेंस में विद्यार्थियों को ही पूरी व्यवस्था के तहत केंद्रबिंदू मानकर तमाम कार्य व नियोजन किये जाते हैं. स्कूल प्रबंधन का स्पष्ट मानना है कि, हर अभिभावक के जीवन में उनके बच्चे ही उनकी सबसे बडी पूंजी होते हैं और अपनी इस बहुमूल्य पुंजी को अभिभावकों द्वारा बडे भरोसे व उम्मीद के साथ स्कूल भेजा जाता है. इसके साथ ही यह सभी बच्चे देश व समाज के भविष्य की धरोहर भी होते हैं. ऐसे में स्कूलों की सबसे बडी जिम्मेदारी होती है कि, अलग-अलग परिवारों की उम्मीद रहने के साथ ही देश व समाज की धरोहर रहने वाले बच्चों को अच्छे से संभालते हुए उन्हें बेहतर तरीके से पढा-लिखाकर काबिल बनाया जाये. ताकि हम सभी का भविष्य उन बच्चों के हाथ में सुरक्षित रह सके. इसी सोच के साथ विजया स्कूल फॉर एक्सलेंस का प्रबंधन और पूरा स्टाफ काम करता है.

* 275 समर्पित स्टाफ सदस्यों की फौज
– ट्यूशन कल्चर के लिए कोई स्थान नहीं
वर्ष 2014 में दो शिक्षकों, एक सहायक दीदी व एक एडमिन स्टाफ ऐसे कुल 4 कर्मचारियों के साथ विजया कॉन्व्हेंट की शुरुआत हुई थी. वहीं आज विजया स्कूल फॉर एक्सलेंस में कार्यरत शिक्षकों व शिक्षकेत्तर कर्मचारियों की संख्या 275 के आसपास है, जो पूरी तरह अपने विद्यार्थियों की पढाई व शिक्षा संस्था के विकास के प्रति समर्पित है. जिसके तहत सभी शिक्षकों द्वारा अपनी कक्षाओं में नियमित तौर पर पढाने-लिखाने के साथ ही जरुरत पडने पर अपने विद्यार्थियों की स्कूल में भी एक्स्ट्रा क्लास ली जाती है. जिसके चलते विजया स्कूल फॉर एक्सलेंस में पढने वाले विद्यार्थियों को ट्यूशन लगाने की कोई जरुरत भी नहीं पडती. ट्यूशन कल्चर के पूरी तरह से खिलाफ रहने वाले संस्थाध्यक्ष दिग्विजय देशमुख के मुताबिक ट्यूशन संस्कृति पनपने के पीछे दो वजह होती हैं. पहली वजह यह है कि, कई निजी स्कूलों में शिक्षकों को बेहद कम वेतन दिया जाता है. जिसके चलते वे ट्यूशन मिलने की आस लगाते है, ऐसे में उन्होंने अपनी शाला यानि विजया स्कूल फॉर एक्सलेंस के शिक्षकों को निर्धारित मानकों के अनुरुप वेतन देने की व्यवस्था की है. साथ ही साथ ट्यूशन कल्चर की दूसरी वजह माता-पिता द्वारा घर पर अपने बच्चों की पढाई की ओर ध्यान नहीं देना है. ऐसे में उन्होंने अपनी स्कूल में पढने वाले प्रत्येक बच्चे के माता-पिता को भी बच्चे की पढाई-लिखाई के साथ जोडे रखने की कुछ हद तक अनिवार्यता रखी है, ताकि बच्चों को ट्यूशन की जरुरत ही न पडे.

* विजया स्कूल में बच्चे वाकई जीते हैं अपना बचपन
विजया स्कूल फॉर एक्सलेंस इमारत का निर्माण तमाम तरह की अत्याधुनिक सुविधाओं के साथ किया गया है. जहां पर बच्चों के लिए तमाम तरह की शैक्षणिक प्रबंध भी किये गये है. साथ ही साथ इस बार की ओर भी विशेष ध्यान दिया जाता है कि, बच्चे किसी भी तरह के बोझ तले न दबे और बनावटी जीवन भी न जियें, बल्कि वे अपने बचपन को सही अर्थों में दिल खोलकर जी सकें, इस बात का खास ख्याल रखा जाता है. यही वजह है कि, प्राकृतिक हवा व रोशनी से भरपूर रहने वाले कमरों का निर्माण करते समय इस बात की तरफ भी ध्यान दिया गया है कि, बारिश के मौसम दौरान सज्जों से पानी की फुहारें भी बच्चों तक पहुंचें और वे प्रकृति से मिलने वाले इस आनंद का भी वाकई आनंद उठा सकें.

* आधुनिकता और परंपराओं का शानदार मेल
बच्चों के बचपन का ध्यान रखते हुए उन्हें आधुनिक दौर की शिक्षा उपलब्ध कराने और वैश्विक स्तर का ज्ञान देने के साथ-साथ उन्हें भारतीय परंपराओं व संस्कृति के साथ जोडे रखने की ओर भी विजया स्कूल फॉर एक्सलेंस द्वारा विशेष ध्यान दिया जाता है. संस्थाध्यक्ष दिग्विजय देशमुख के मुताबिक अपनी जडों से कटकर कोई पौधा कभी विशाल और फलदार वृक्ष नहीं बन सकता. यही वजह है कि, खुद उन्होंने अपनी जडों और जमीन को नहीं छोडा. साथ ही वे चाहते हैं कि, उनकी शिक्षा संस्था से निकला हर विद्यार्थी भी अपनी जडों और जमीन की अहमियत को समझे तथा आगे चलकर समाज के लिए विशाल व बहुपयोगी फलदार वृक्ष की भूमिका अपनाने हेतु तैयार हो सके.

* अल्पावधि में बेहद प्रेरक व उपलब्धिपूर्ण रहा सफर
महज 10 वर्ष पहले स्थापित तथा मात्र 6-7 वर्ष पहले अपनी खुद की इमारत में एक परिपूर्ण शाला के तौर पर शुरु होने वाली विजया स्कूल फॉर एक्सलेंस का यह सफर बेहद प्रेरक और उपलब्धिपूर्ण कहा जा सकता है. संस्थाध्यक्ष दिग्विजय देशमुख के कक्ष में बने ट्रॉफी सेक्शन में सजी दर्जनों ट्रॉफियों व प्रशस्तीपत्रों को देखते हुए साफ है कि, इस शाला ने बेहद अल्पावधि के भीतर शिक्षा क्षेत्र में शानदार काम किया है और आगे चलकर भी यह शाला कई नये कीर्तिमानों को स्थापित करने हेतु पूरी तरह से तैयार है.

* किसी से कोई प्रतिस्पर्धा नहीं, अपनी शर्तों पर काम
विजया स्कूल फॉर एक्सलेंस के संस्थापक संचालक दिग्विजय देशमुख के मुताबिक अमरावती शहर में कई नामी-गिरामी व बडे ब्रांड वाले स्कूल भी है, लेकिन इसके बावजूद भी विजया स्कूल फॉर एक्सलेंस ने अमरावती शहर के शिक्षा क्षेत्र में अपना एक अलग स्थान बनाया है. जिसका सीधा मतलब है कि, हम अभिभावकों के भरोसे पर खरे उतर रहे हैं और लोगबाग अपने बच्चों की पढाई को लेकर विजया स्कूल फॉर एक्सलेंस पर विश्वास कर रहे हैं. ऐसे में हम अपने आप को किसी के साथ किसी प्रतिस्पर्धा में शामिल नहीं मानते, बल्कि हम अपनी शर्तों पर और अपने तरीकों से काम करने में भरोसा रखते हैं. साथ ही शानदार नतीजा देने का प्रयास करते हैं

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