गांव के झगडे पहुंच रहे पुलिस थाने में, तंटामुक्त समिति केवल कागजों पर
अमरावती/दि.1– गांव में होने वाले विवादों को गांव में ही मिटाने हेतु प्रत्येक गांव में तंटामुक्त गांव समिति की स्थापना की गई थी. परंतु अधिकांश समितियां कागजों पर ही काम कर रही है तथा कई गांवों में समिति के अध्यक्ष पर ही अविश्वास दर्शाया जाता है. जिसके चलते गांव में होने वाला प्रत्येक विवाद अब सीधे पुलिस थाने पहुंचता है. जिसकी वजह से दखलपात्र व अदखलपात्र अपराधों से दर्ज होने का प्रमाण दिनोंदिन बढ रहा है.
ग्रामीण क्षेत्र में होने वाले छिटपूट विवादों को टालने तथा गांव में हुए विवादों का गांव में ही निपटारा करने के लिए सरकार ने प्रत्येक गांव में तंटामुक्त समिति का गठन किया. जिसके बाद कुछ वर्षों तक इन समितियों ने काफी अच्छा काम किया. परंतु धीरे-धीरे इन समितियों का प्रभाव खत्म होता चला गया और अब गांववासियों द्वारा तंटामुक्त समिति को किसी तरह का महत्व ही नहीं दिया जाता. बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में इन समितियों के अध्यक्ष केवल नामधारी ही बचे है. अमरावती जिले के ग्रामीण इलाकों में भी लगभग इसी तरह की स्थिति दिखाई देती है.
* जिले के 837 गांवों में तंटामुक्त समितियां
– वर्ष 2007 से जिले की 14 तहसीलों व 31 पुलिस थाना क्षेत्रों के अंतर्गत 837 गांवों में तंटामुक्त समितियां कार्यरत की गई थी. जो अब केवल कागजों पर ही दिखाई देती है.
– नल व रास्ते पर छोटी-मोटी बातों को लेकर होने वाले झगडे सीधे पुलिस थाने पहुंच रहे है. जिसका सीधा मतलब है कि, तंटामुक्त समितियां अब बेअसर होने के साथ ही कालबाह्य भी साबित हो रही है.
* तहसील निहाय कितने गांवों में तंटामुक्त समितियां?
ग्रामीण पुलिस की विशेष शाखा के अनुसार जिले की 837 ग्रामपंचायतों में तंटामुक्त समितियों का गठन किया गया है. जिनकी जानकारी पुलिस थाना निहाय दर्ज है. प्रत्येक पुलिस थाने की गोपनीय शाखा व डीबी विभाग के पास यह जानकारी दर्ज रहती है. परंतु विगत 5 से 7 वर्ष के दौरान इसमें से अधिकांश तंटामुक्त समितियां केवल कागजों पर ही दिखाई देती है.
* क्या है तंटामुक्त समितियाेंं का काम?
तंटामुक्त समितियों का कामकाज किसी समय पुरस्कार हेतु पात्र माना जाता था. कई गांवों की तंटामुक्त समितियों ने अपने स्तर पर फौजदारी व राजस्व सहित न्यायालयीन विवादों का निपटारा करते हुए आदर्श निर्माण किया था और गांव में आपसी सद्भाव वाला वातावरण स्थापित किया था. जिसके चलते तंटामुक्त समितियों को काफी प्रतिष्ठा भी प्राप्त हुई थी. परंतु अब स्थिति पूरी तरह से बदल गई है. क्योंकि ज्यादातर गांवों के विवाद अब सीधे पुलिस थाने पहुंचने लगे है.
* क्या है वजह?
5 वर्ष पहले जो समिति अस्तित्व में थी, आज भी वहीं समिति कायम है और समितियों का नये सिरे से गठन नहीं हुआ है. जिसके चलते तंटामुक्त समितियों के पदाधिकारियों में एक तरह से एकाधिकार वाली भावना बलवती हुई है. जिसके खिलाफ गांव में विरोध की भावना भी प्रबल हुई है. ऐसे में गांव के कई लोग तंटामुक्त समितियों की अवहेलना करने लगे है तथा कोई भी विवाद होने पर तंटामुक्त समिति के पास जाने की बजाय सीधे पुलिस थाने ही पहुंचते है.