विद्यापीठ में प्रभारी कुलगुरू को लेकर जबर्दस्त विवाद
अधिष्ठाता डॉ. एफ. सी. रघुवंशी को मिला कुलगुरू का प्रभार
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कुलगुरू व प्र-कुलगुरू बीमार रहने से है अवकाश पर
अमरावती/दि.23 – स्थानीय संत गाडगेबाबा अमरावती विद्यापीठ में विज्ञान व तंत्रज्ञान शाखा के अधिष्ठाता पद पर डॉ. एफ. सी. रघुवंशी की नियुक्ति पहले ही विवादों के घेरे में फंसी हुई है. इसके बावजूद अब उन्हें प्रभारी कुलगुरू पद की जिम्मेदारी भी सौंपी गयी है. जिसकी वजह से विद्यापीठ में इसे लेकर कई तरह की अजब-गजब चर्चाएं चल रही है.
बता दें कि, संत गाडगेबाबा अमरावती विद्यापीठ के कुलगुरू डॉ. मुरलीधर चांदेकर व प्र-कुलगुरू डॉ. राजेश जयपुरकर कोविड संक्रमित पाये जाने के बाद अवकाश पर चले गये है. अमूमन कुलगुरू की अनुपस्थिति में प्र-कुलगुरू के पास कुलगुरू पद का जिम्मा आता है. वहीं यदि प्र-कुलगुरू भी उपलब्ध नहीं है, तो विद्यापीठ अधिनियम 2016 के अनुसार किसी अधिष्ठाता अथवा वरिष्ठ प्राध्यापक को कुलगुरू पद का प्रभार सौंपा जा सकता है. इसी के तहत कुलगुरू डॉ. मुरलीधर चांदेकर ने अवकाश पर जाने से पहले अपने पद का प्रभार डॉ. एफ. सी. रघुवंशी को सौंपा.
जानकारी के मुताबिक विद्यापीठ अधिनियम के तहत कुलगुरू, प्र-कुलगुरू व कुलसचिव के बाद अधिष्ठाता पद को महत्वपूर्ण माना जाता है. कुल चार अधिष्ठाता में से दो अधिष्ठाता का चुनकर आना और दो अधिष्ठाता का साक्षात्कार प्रक्रिया के द्वारा कुलगुरू द्वारा नियुक्त किया जाना एवं किसी महाविद्यालय का प्राचार्य रहना आवश्यक होता है. विज्ञान व तंत्रविज्ञान विद्याशाखा तथा मानव विज्ञान विद्याशाखा इन दो विद्याशाखाओं के अधिष्ठाता पद हेतु विद्यापीठ द्वारा वर्ष 2019 में विज्ञापन जारी किया गया था. पश्चात मानव विज्ञान विद्याशाखा के अधिष्ठाता पद पर महिला महाविद्यालय (अमरावती) के प्राचार्य डॉ. अविनाश मोहरील की नियुक्ति कुलगुरू द्वारा की गई. वहीं विज्ञान व तंत्रज्ञान विद्याशाखा के अधिष्ठाता पद पर विद्याभारती महाविद्यालय (अमरावती) के सेवानिवृत्त प्राचार्य डॉ. एफ. सी. रघुवंशी की नियुक्ति जून 2019 में की गई थी. अधिष्ठाता पद पर किसी महाविद्यालय में प्राचार्य रहनेवाले व्यक्ति को ही नियुक्त करने का कानून रहने के बावजूद कुलगुरू द्वारा डॉ. एफ. सी. रघुवंशी को सेवानिवृत्ती पश्चात अधिष्ठाता पद पर नियुक्त किया गया. जिस पर चयन समिती में सरकार के प्रतिनिधि रहनेवाले उच्च व तंत्रशिक्षा मंडल के तत्कालीन सहसंचालक जगताप ने आपत्ति दर्ज करायी थी. इसमें भी यह विशेष उल्लेखनीय है कि, अधिष्ठाता पद पर रहनेवाले व्यक्ति को प्रतिमाह दिये जानेवाले ढाई से तीन लाख रूपये का वेतन भी डॉ. रघुवंशी को देने की मान्यता उच्च व तंत्र शिक्षा सहसंचालक द्वारा नहीं दी गई.
विद्यापीठ ने की युजीसी के पत्र की अनदेखी
ज्ञात रहे कि, मार्च महिने को शिक्षा क्षेत्र के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण महिना माना जाता है. इस समय विद्यापीठ में कुलगुरू व प्र-कुलगुरू के पद रिक्त रहना किसी भी लिहाज से योग्य नहीं है. किंतु इस समय दोनों ही बीमार है. ऐसे समय कुलगुरू ने एक ऐसे व्यक्ति को अपना प्रभार सौंपा है, जिनकी अधिष्ठाता के तौर पर नियुक्ति ही विवादास्पद है. इस आशय की जानकारी देते हुए सीनेट सदस्य तथा नूटा के अध्यक्ष डॉ. प्रवीण रघुवंशी ने कहा कि, इससे भी गंभीर बात यह है कि, यूजीसी द्वारा 9 मार्च 2002 को देश के सभी विद्यापीठों के कुलसचिवों को एक पत्र दिया गया था. जिसमें स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि, किसी भी सेवानिवृत्त प्राध्यापक व प्राचार्य को विद्यापीठ के किसी भी प्राधिकरण में नियुक्त न किया जाये. किंतु इस मामले में अमरावती विद्यापीठ द्वारा युजीसी के इस पत्र की साफ तौर पर अनदेखी की गई है.
बिना वेतन काम कर रहे डॉ. एफ. सी. रघुवंशी
डॉ. एफ. सी. रघुवंशी की अधिष्ठाता पद पर नियुक्ति विवादास्पद रहने के चलते उन्हें वेतन देने पर उच्च शिक्षा सहसंचालक कार्यालय द्वारा आपत्ति दर्ज करायी गयी है. इस बारे में विद्यापीठ की आर्थिक शाखा से मिली जानकारी के मुताबिक डॉ. एफ. सी. रघुवंशी को अधिष्ठाता पद हेतु आज तक कोई वेतन नहीं दिया गया है. हालांकि विद्यापीठ के सामान्य कोष में विद्यार्थियों के विविध शुल्क से जमा होनेवाली रकम के जरिये डॉ. एफ. सी. रघुवंशी को भविष्य में उनकी सेवा हेतु एकमुश्त बकाया राशि का भुगतान किया जा सकता है. ऐसी जानकारी है.